पिछले तीन चुनाव में भाजपा को 1 सीट से करना पड़ा है संतोष
कोरबा विधानसभा गठन के बाद से नहीं बदला है आंकड़ा
कोरबा। जिले में भाजपा को पिछले तीन चुनाव में एक सीट से ही संतोष करना पड़ रहा है। कोरबा विधानसभा गठन के बाद से हुए चुनाव में भाजपा को 1 सीट ही हासिल हो रही है। पिछले तीन विधानसभा चुनाव में भाजपा के एक-एक प्रत्याशी ही जीत अर्जित कर पाए हैं। वर्ष 2008, 2013 और 2018 के चुनाव में कोरबा जिले में भाजपा की जीत का आंकड़ा 1-3 रहा है। इस बार इस आंकड़े को बदलने की चुनौती भाजपा के सामने होगी।
भारतीय जनता पार्टी ने जिले की चार में से केवल एक सीट पर नए चेहरे को मौका दिया है। वहीं लखनलाल देवांगन जिन्हें पिछले चुनाव में कटघोरा से हार मिली थी उन्हें इस बार कोरबा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा गया है। ननकीराम कंवर रामपुर से अपना 12वां चुनाव लड़ेंगे। इससे पहले 6 बार ननकीराम कंवर विधायक रह चुके हैं। रामदयाल उइके पाली-तानाखार से अपना पांचवा चुनाव लड़ेंगे। वे चार बार विधायक रह चुके हैं, जिसमें उन्होंने अपना राजनीतिक सफर पटवारी की नौकरी छोड़कर मरवाही से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतकर शुरू की थी। 2003, 2008 व 2013 का चुनाव उन्होंने पाली-तानाखार से कांगे्रस प्रत्याशी के रूप में जीतकर हैट्रिक बनाई थी। भाजपा प्रवेश के बाद 2018 के चुनाव में कमल छाप से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। पिछले तीन विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो जिले की एक-एक सीट पर भाजपा को जीत मिली है। वर्ष 2008 में रामपुर से ननकीराम कंवर जीते थे। इस चुनाव में कांगे्रस के जयसिंह अग्रवाल कोरबा, बोधराम कंवर कटघोरा व रामदयाल उइके पाली-तानाखार से विजयी हुए थे। 2013 के चुनाव में फिर एक सीट पर ही कमल खिला था। कटघोरा विधानसभा में लखनलाल देवांगन ने बोधराम कंवर को हराकर चुनाव जीता था। जिले के तीन कांगे्रसी विधायकों में जयसिंह कोरबा, श्यामलाल कंवर रामपुर और पाली-तानाखार से रामदयाल उइके रहे। 2018 के चुनाव में रामपुर से ननकीराम कंवर फिर एकमात्र भाजपा के विजयी प्रत्याशी रहे। 2018 में भी अन्य तीनों सीट पर कांगे्रस के प्रत्याशी ही चुनाव जीते। इस बार कटघोरा छोड़कर तीन सीटों पर पुन: पुराने चेहरों को भाजपा ने मौका दिया है। पुराने चेहरों पर पुराना रिकॉर्ड बदलने का दारोमदार होगा।
0 कोरबा में जय रहे हैं अजेय
पिछले तीन विधानसभा चुनाव में कोरबा सीट पर भाजपा का कोई भी प्रत्याशी जीत हासिल नहीं कर सका है। वर्ष 2008 में पार्टी ने बनवारी लाल अग्रवाल 2013 में जोगेश लांबा व 2018 में विकास महतो को टिकट दिया। बनवारी लाल अग्रवाल को कांगे्रस प्रत्याशी जयसिंह अग्रवाल से 587 वोटों से हार मिली। जोगेश लांबा 14 हजार 449 और विकास महतो 11 हजार 806 वोटों से चुनाव हारे थे। इस बार इस सीट पर लखनलाल देवांगन को टिकट दिया गया है, जिनके कंधों पर कांगे्रस के अभेद किले को भेदने का जिम्मा होगा।
0 रामपुर में जीत दोहराने का दबाव
पिछले तीन विधानसभा चुनाव में ननकीराम कंवर दो बार विधायक चुने जा चुके हैं। 2008 में ननकी 8321 वोटों से जीते थे। 2013 के चुनाव में उन्हें कांगे्रस प्रत्याशी श्यामलाल कंवर से 9915 वोट से हार मिली थी। 2018 में वोटों का यह फासला 18175 रहा जिसमें ननकीराम कंवर ने जोगी कांगे्रस के फुल सिंह राठिया को हराया था। कांगे्रस इस सीट पर तीसरे नंबर पर रही थी। इस सीट पर कंवर, राठिया वोट फैक्टर हमेशा काम करता है। ननकीराम कंवर को 80 बरस की उमर के बाद भी पार्टी ने इसी आंकड़ों को देखते हुए मौका दिया है। ननकी के सामने अपनी जीत को दोहराने की चुनौती होगी।
0 कटघोरा में लखन जैसी उलटफेर की उम्मीद
कटघोरा विधानसभा से कोरबा सीट 2008 में अलग बनी। यहां 2008 में बोधराम कंवर विधायक बने। कटघोरा से यह सातवीं बार था जब बोधराम को जीत मिली। 2013 में बीजेपी ने लखनलाल देवांगन को प्रत्याशी बनाया और उन्होंने बोधराम कंवर को हरा दिया। 2018 के चुनाव में लखनलाल को बोधराम के पुत्र पुरुषोत्तम कंवर ने चुनाव हराया। कटघोरा में सर्वाधिक मतदाता ओबीसी से लगभग 85 हजार के करीब हैं, जिसमें मरार पटेल वोटर्स ही 13 हजार के करीब हैं। इसी वर्ग से भाजपा प्रत्याशी प्रेमचंद पटेल हैं। इस सीट पर भाजपा ने पटेल मरार वोटर को साधने दांव खेला है। लखन की तरह प्रेमचंद से भी पार्टी को उम्मीद है कि वे जीत अर्जित करने में सफल होंगे। पिछले तीन चुनावों में इस सीट पर हार जीत का अंतर 7 से 13 हजार के बीच रहा है।
0 पाली-तानाखार में रहा है निराशाजनक प्रदर्शन
पाली तानाखार सीट पर पिछले तीन विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी जीत हासिल नहीं कर सके हैं। भाजपा यहां तीसरी पार्टी रही है। इस सीट पर कांगे्रस बनाम गोंगपा की ही लड़ाई रही है। वर्ष 2008 और 2013 के चुनाव में कांगे्रस प्रत्याशी के रूप में गोंगपा के हीरासिंह मरकाम को 28 और 29 हजार वोटों से हराया था। 2008 में भाजपा के प्रत्याशी रहे शिवमोहन सिंह उइके के वोट हार जीत के अंतर वोटों से भी कम थे। 2013 में श्याम मरावी भी हार गए थे। 2018 में जीत की हैट्रिक लगाने वाले रामदयाल उइके भाजपा में शामिल होकर प्रत्याशी के रूप मेें उतरे लेकिन वे भी हार गए। एक बार फिर भाजपा ने पाली-तानाखार सीट पर रामदयाल उइके को उतारा है। इस सीट पर हार-जीत का अंतर जिले की अन्य तीन सीटों से काफी अधिक होता है। ऐसे में रामदयाल के सामने वोटों की इस खाई को पाटकर भाजपा के जीत का खाता खोलने की चुनौती होगी।