November 23, 2024

160 साल के संघर्ष के बाद रेल ड्राइवर्स को मिला था टॉयलेट, उससे पहले की कहानी भी काफ़ी विचित्र है

【【आज रेलवे अपने यात्रियों को सुखद और बेहतर सुविधायें देने का प्रयास करता है. सोचिये रेल ड्राइवर्स ने वो दिन भी देखे हैं, जब उसमें टॉयलेट की सुविधा नहीं थी】】

नई दिल्ली 8 जुलाई: भारतीय रेलवे का इतिहास काफ़ी पुराना और रोचक रहा है. 176 साल के अब तक के सफ़र में भारतीय रेलवे ने कई उतार-चढ़ाव भरे दिन देखे है. इस दौरान रेलवे में कई बड़े बदलाव भी आये. आज भले रेलवे अपने यात्रियों को सुखद और बेहतर सुविधायें देने का प्रयास करता है. पर सालों तक रेल ड्राइवर्स ने वो दिन भी देखे हैं, जब उनके पास टॉयलेट की सुविधा नहीं थी.

आपको जानकर हैरानी होगी कि ट्रेन डाइवर्स को लगभग 160 साल बाद टॉयलेट की सुविधा दी गई थी. अब यहां सवाल ये है कि आखिर उससे पहले ड्राइवर्स शौच के लिये कहां जाते होंगे? आखिर घंटों के सफ़र में टॉयलेट रोक कर रखना भी तो सुरक्षित नहीं है. फिर बिना टॉयलेट वो चीज़ों को कैसे हैंडल करते थे.

हम सब जानते हैं कि भारत में पहली ट्रेन 16 अप्रैल 1853 को चली थी. 1909 में पहली बार यात्रियों को टॉयलेट की सुविधा मिली. हालांकि, ये सुविधा सिर्फ़ फ़र्स्ट क्लास से यात्रा करने वालों के लिये थी. इसके बाद धीरे-धीरे बाकी कोच में भी टॉयलेट बना दिये गये. अब ट्रेन से यात्रा करने वालों को कोई दिक्कत नहीं थी. पर ड्राइवर्स अभी भी परेशान थे. काफ़ी मांग के बाद 2016 में लोको पायलट को भी ट्रेन में टॉयलेट की सौगात दे गई.

रिपोर्ट्स के अनुसार, 1853 के बाद से ट्रेन चलाने वाले ड्राइवर्स शौच के लिये ट्रेन रुकने का इंतज़ार करते थे. किसी भी हालत में वो ट्रेन के अंदर शौच नहीं कर सकते थे. इसलिये ट्रेन रुकते ही वो हल्का होने के लिये इंजन से बाहर चले जाते. इमरजेंसी होने पर नजदीक के स्टेशन पर मैसेज भेज कर वहां ट्रेन रोक देते थे. इसके बाद वो स्टेशन पर बने टॉयलेट चले जाते. कहा जाता है कि 2016 से पहले अधिकतर ट्रेन इसी वजह से लेट भी होती थी.

सुरक्षा कारणों से 160 साल तक इंजन में टॉयलेट नहीं बनवाये गये. लोको पायलट्स की मांग के कारण मामले पर विचार-विमर्श किया गया. इसके बाद 2016 में लोको पायलट के भी टॉयलेट बनवा दिये गये.

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