जिले में छठ पूजा के अंतिम दिन पूर्वांचल श्रद्धालुओं ने उगते सूर्य को दिया अर्घ्य
कोरबा 11 नवंबर। औद्योगिक जिले में एक बार फिर पूर्वांचल के सबसे बड़े पर्व छठ पूजा ने अपने इंद्रधनुषी रंग बिखेरे। चार दिन में पूरे हुए इस पर्व के आकर्षण और परंपरा ने पूर्वांचल के साथ.साथ स्थानीय लोगों को अपने प्रभाव में लिया। अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ अगली सुबह भी यही क्रम दोहराया गया। छठ का संदेश यह था कि जो सूर्य अस्त होता है उसे कुछ अंतराल में सृष्टि के लिए उदय भी होना है।
युगों-युगों से देश और दुनिया में हिंदू सनातन संस्कृति से संबंधित पर्व त्योहारों को मनाने का चलन है। समय के साथ इनकी जड़ें अपने स्थान पर ना केवल जमीं हुईं हैं बल्कि इन्हें मजबूती भी मिल रही है। कोरबा जिले में रहने वाले विभिन्न राज्यों के लोग अलग.अलग पर्व त्योहार के अपने अस्तित्व को परिभाषित करते हैं। वर्ष में सर्वाधिक उपस्थिति और भारत की प्राचीनतम संस्कृति का दर्शन जिस पर्व के साथ सामने आता है उसे छठ के नाम से जाना जा रहा है। कोरबा शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के अनेक स्थानों पर छठ पूजा पर आयोजन किये गए। सरकारी तंत्र के आंशिक सहयोग के साथ व्रत करने वालों के परिजनों ने तैयारियों को अंतिम रूप दिया। ढेंगुरनाला, पंपहाउस नहरपारा, प्रगति नगर, सर्वमंगला घाट, बरमपुर, कुसमुंडा, बांकीमोंगरा, राम मंदिर बालकोनगर, एसईसीएल सुभाष ब्लॉक, मानिकपुर पोखरी, कोहडिय़ा, रूमगरा, शिवनगर, जमनीपाली समेत बहुत बड़े हिस्से ने इस पर्व ने इस बार भी अपनी अद्भूत छंटा बिखेरी। भगवान सूर्य और प्रकृति को समर्पित इस पर्व के अंतर्गत व्रत करने वालों ने अस्त होते और उदित होते सूर्य को वेद मंत्रों के साथ अर्घ्य दिया। इसके माध्यम से अपने साथ-साथ परिवार, समाज और देश की प्रगति के लिए कामना की गई। कुछ घाटों में प्रशासन के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति रही।
छठ पूजा करने के लिए नियम बेहद सख्त हैं। लेकिन परंपरा उतना ही मजबूत और प्रभावशाली। कहा जाता है कि जिन परिवारों ने इस पूजा के साथ खुद को जोड़ लिया उसका नाता अटूट बना रहता है। पीढ़ी दर पीढ़ी इस परंपरा को साथ लेकर आगे बढऩे की हरसंभव कोशिश की जाती है। किसी भी कारण से क्रम विखंडित ना होए इसके लिए जतन किये जाते हैं। अनुष्ठान को करने वाले बताते हैं कि कुल मिलाकर लोक मंगल की भावना इस अनुष्ठान के साथ जुड़ी हुई है और इसके जरिए हर किसी के कल्याण का भाव समाहित रहता है। महसूस किया गया है कि पूजा पद्धति से सीधे तौर पर जुडऩे के कारण लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आए हैं और उन्होंने खुद को बदलते हुए देखा है।