बंद रजगामार खदान का संचालन निजी कंपनी को
कोरबा 21 अगस्त। साउथ इस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड एसईसीएल की पिछले 10 वर्षों से बंद रजगामार की 6-7 नंबर भूमिगत कोयला खदान को पुन: प्रारंभ किए जाने की प्रक्रिया प्रबंधन ने शुरू कर दी है। इसके लिए डायरेक्टर जनरल माइंस आफ सेफ्टी डीजीएमएस ने भी अपनी सहमति जता दी है। केंद्रीय वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से इसके लिए स्वीकृति मांगी गई है। खदान के संचालन की जिम्मेदारी निजी कंपनी को सौंपी जाएगी।
कोल इंडिया ने वर्ष 2023-24 तक 10 हजार लाख टन कोयले के उत्पादन का लक्ष्य रखा है। 12 साल के अंदर देश भर की 293 भूमिगत अलग-अलग कारणों से बंद की गई है। इनमें एसईसीएल के 57 खदान शामिल हैं। बंद किए गए खदानों में 20 खदान पुन: करने चिंहित किया गया है। एसईसीएल की रजगामार स्थित 6.7 नंबर भूमिगत खदान को वर्ष 2014 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति नहीं मिलने की वजह बंद करना पड़ा। इसे एक बार फिर शुरू करने की कवायद की जा रही। एसईसीएल प्रबंधन की जगह इस खदान को आउटसोर्सिंग में दिया जाएगा। महाराष्ट्र की खनन क्षेत्र में अनुभव रखने वाली तीन कंपनी संचेती माइनिंग, एसएमएस माइनिंग व गो.वाह माइनिंग ने इसमें रूचि दिखाई है। इन कंपनियों की टीम भी बंद खदान का जायजा ले चुकी है। रजगामार के उपक्षेत्रीय प्रबंधक प्रभाकर मृदुली ने बताया कि आधुनिक मशीन कंटीन्यूअस माइनर का उपयोग कोयला उत्पादन के लिए किया जाएगा। हाल ही में एसईसीएल मुख्यालय से महाप्रबंधक बीएन झा व आरएल प्रसाद समेत चार अधिकारी भी खदान का निरीक्षण कर चुके हैं। यहां बताना होगा कि बंद खदान से अभी पानी निकासी का काम चल रहा है। इसके लिए यहां 25 नियमित कर्मचारी पदस्थ किए गए हैं। ये कर्मचारी तीनों शिफ्ट में पानी निकासी के लिए लगाए पंप का संचालन करते हैं। इसके अलावा खदान की निगरानी भी करते हैं
एसईसीएल की गेवरा, दीपका, कुसमुंडा व मानिकपुर खुली खदान से उत्पादित कोयले के मुकाबले रजगामार भूमिगत खदान का कोयला उत्कृष्ट है। यहां से बी ग्रेड का कोयले का उत्खनन होगा। इसकी कीमत 5500 रुपये प्रति टन है। इस कोयले का ताप अधिक होता है व राख कम निकलता है। प्रबंधन ने खदान प्रारंभ करने वन विभाग में 25 करोड़ रूपये रक्षा निधि के रूप में जमा कर दी है। बंकर समेत स्ट्रक्चर में रंगरोगन का काम भी चल रहा। इस खदान में अभी भी कोयले का पर्याप्त मात्रा में कोयला का भंडार है। प्रतिदिन एक हजार टन कोयला का उत्पादन किया जाएगा। साथ ही पांच साल तक खदान से कोयला उत्खनन होगा। खदान बंद होने से पहले प्रतिदिन 1400 टन कोयला का उत्पादन हो रहा था। पर्यावरणीय अनुमति मिलने के साथ ही खदान के अंदर सुरक्षागत कारणों से छोड़े गए पिल्लर भी हटाया डिप्लेयरिंग जाएगा।