November 22, 2024

आज जितने राम के मंदिर नहीं उससे कहीं ज्यादा हनुमान के : त्रिपाठी

0 दशहरा मैदान में श्री शिव महापुराण कथा
कोरबा।
अपने धन-बल के अहंकार को त्याग कर निष्कपट भाव से जो भक्त अपने आराध्य और इष्ट की सेवा करते हैं, वह अपने आराध्य से भी ज्यादा पूजनीय हो जाते हैं। महावीर हनुमानजी ने अपने बल और अहंकार त्याग कर श्रीराम की सेवा की। लंका पर विजय कर धरती पर राम राज्य की स्थापना में प्रभु श्रीराम की सेवा की। श्रीराम के आशीर्वाद से हनुमानजी पूजनीय बने और आज जितने भगवान राम के मंदिर नहीं हैं, उससे कहीं ज्यादा हनुमान जी के मंदिर हैं।
यह बातें नेताजी सुभाष चौक निहारिका स्थित दशहरा मैदान में चल रहे श्री शिव महापुराण कथा में प्रयागराज से आए आचार्य पवन कुमार त्रिपाठी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने महापुराण कथा शिव अवतारों की कथा में हनुमानजी के अवतार का प्रसंग सुनाते हुए यह महत्वपूर्ण बातें विस्तार से व्यक्त की। आचार्यश्री ने कहा कि पुराण का विद्वान वक्ता चाहे बालक, युवा, वृद्ध, दरिद्र अथवा दुर्बल, वह कैसा भी हो सदैव वंदनीय पूजनीय होता है। वक्ता के मुख से निकली वाणी देहधारियों के लिए कामधेनु के समान होती है, इसलिए उसके प्रति तुच्छबुद्धि नहीं रखनी चाहिए। जो मनुष्य भक्ति रहित होकर इस कथा को सुनते हैं उन्हें इसका पुण्य फल नहीं मिलता है। श्री शिव महापुराण कथा का श्रवण करते समय किन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए, इस पर उन्होंने विस्तार से जानकारी प्रदान की।
आचार्य त्रिपाठी ने बताया कि भगवान शिव की भक्ति प्राप्त करने के लिए श्रावण से उत्तम कोई अन्य मास नहीं। इस पूरे मास में भक्त श्रद्धा भक्ति पूर्वक चित्त को एकाग्र कर शिव महापुराण कथा का श्रवण करते हैं, तो उन्हें भगवान की शिव की कृपा से आनंददायक जीवन की प्राप्ति होती है। हनुमानजी की पूजा से स्वयं भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं। आचार्य त्रिपाठी ने कहा कि भगवान श्रीरामचन्द्र सारी दुनिया के बिगड़े काम बनाते हैं। उन्हीं रामजी के काम हनुमानजी करते हैं। नंदीश्वर के अवतार की कथा सुनाते हुए आचार्यश्री ने कहा कि जो झुक जाता है वो तर जाता है जैसे नंदी झुक गए तो पशु होने के बावजूद भगवान भोलेनाथ के साथ मंदिर में स्थापित होकर पंचमहादेव के रूप में पूजनीय हुए। इसलिए मंदिर, गुरु, मातापिता, संतों के सामने हमेशा झुककर जाना चाहिए। अहंकार को जो साधक त्याग देते हैं, वह साधक सफल होते हैं। अहंकार आठ प्रकार के होते हैं पहला सत्ता का, दूसरा संपत्ति का, तीसरा ऊंचे कुल, चौथा शरीर का, पांचवा विद्या का, छटा तप का, सातवां प्रभुता का, आठवां अपने रूप का अहंकार। यह आठों अहंकार होंगे तो व्यक्ति साधना में आगे नहीं बढ़ सकता, लेकिन अहंकार का समन समर्पण करने से होता है, जो अपने माता-पिता को समर्पित होता है। अपने गुरु को समर्पित होता है, अपने इष्ट को समर्पित होता है वह कभी भी अहंकार नहीं कर सकता।

Spread the word