November 22, 2024

पालक से हरा, लाल भाजी से गुलाबी, चुकंदर से लाल तो हल्दी से बन रहा पीला हर्बल गुलाल

अमरपुर और ढेलवाडीह गौठानों की 60 महिलाएं सुगंधित हर्बल गुलाल बनाने में लगी

कोरबा 27 दिसम्बर 2020. वैसे तो होली के त्यौहार में अभी दो-तीन महीने बाकीं हैं पर कोरबा जिले के कटघोरा विकासखण्ड के अमरपुर और ढेलवाडीह आदर्श गौठानों में काम करने वालीं लगभग 60 महिलाओं ने होली पर गुलाल बेचकर 50 से 60 हजार रूपए की अतिरिक्त आमदनी की तैयारी अभी से कर ली है। दोनो गौठानों से संलग्न आठ महिला स्व-सहायता समूहों की यह महिलाएं सब्जियों, फूलों की पंखुड़ियों, गुलाब जल, चंदन जल, खस के इत्र आदि से हर्बल गुलाल बना रहीं हैं। खास बात यह है कि इस गुलाल में किसी तरह का कोई हानिकारक रासायन उपयोग नहीं किया जा रहा है। गुलाल को पालक की भाजी से हरा रंग, लाल भाजी से गुलाबी रंग, चुकंदर से लाल रंग, हल्दी से पीला रंग दिया जा रहा है। गुलाब, गेंदा, टेसु जैसे फूलांे की पुखड़ियों से भी यह महिलाएं प्रीमियम क्वालिटी का हर्बल गुलाल भी बना रहीं हैं। गुलाल में सुगंध के लिए गुलाब जल, चंदन का इत्र, खस का इत्र आदि प्राकृतिक चीजों का उपयोग किया जा रहा है। महिलाओं ने आगामी होली के त्यौहार तक अलग-अलग रंग के लगभग पांच क्विंटल हर्बल गुलाल बनाने का लक्ष्य तय किया है जिससे उन्हें होली पर 50 से 60 हजार रूपए की अतिरिक्त आमदनी होगी। अभी तक 30 किलो से अधिक हर्बल गुलाल इन महिलाओं ने बना भी लिया है। जिला प्रशासन की मदद से इस गुलाल की बिक्री के लिए समूहों को कटघोरा-कोरबा सहित स्थानीय बाजार भी उपलब्ध कराने की तैयारी की गई है।

धवईपुर जननी महिला क्लस्टर संगठन की अध्यक्ष देवेश्वरी जायसवाल बताती हैं कि उन्हें और उनके जैसी लगभग 60 महिलाओं को दो चरणों में आजीविका मिशन के तहत हर्बल गुलाल बनाने की ट्रेनिंग मिली है। स्टार्च को फल और सब्जियों के प्राकृतिक रंगो से रंग कर और उसमें गुलाब जल, इत्र आदि मिलाकर हर्बल गुलाल बनाने के गुर उन्हंे सिखाए गए हैं। गुलाब, गेंदा, टेसु के फूलों की पंखुड़ियों से प्रीमियम क्वालिटी का हर्बल गुलाल भी बनाना इन महिलाओं को सिखाया गया है। सब्जियों और फलों के अलावा अलग रंगो के लिए स्टार्च में खाने का रंग भी मिलाकर हर्बल गुलाल बनाया जा रहा है। श्रीमती जायसवाल बताती हैं कि हर्बल गुलाल बनाने में किसी भी तरह के रासायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं होता है बल्कि इसमें चेहरे में निखार के लिए हल्दी, चंदन, गुलाब जल आदि भी मिलाया जा रहा है। रासायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं होने से यह गुलाल त्वचा, आंख, बाल आदि के लिए हानिकारक नहीं होगा और इसे बिना किसी चिंता के लोग होली मंे उपयोग कर सकेंगे। इसके साथ ही यह आसानी से शरीर से छुट भी जाएगा।

अमरपुर गौठान से जुड़ी महिला समूह की सदस्य श्रीमती ललिता बिंझवार और संतोषी यादव ने बताया कि एक किला हर्बल गुलाल बनाने में 75 से 80 रूपए का खर्च आता है जबकि स्थानीय बाजार में इसकी औसतन कीमत 130 से 140 रूपए प्रतिकिलो है। होली के सीजन में यह दाम 10-15 रूपए और बढ़ सकता है। फूलों की पंखुड़ियों से बने प्रीमियम क्वालिटी के हर्बल गुलाल की कीमत इससे भी ज्यादा है। ऐसे मंे हर्बल गुलाल से आमदनी का गणित बताते हुए देवेश्वरी जायसवाल ने आशा जताई है कि पांच क्विंटल हर्बल गुलाल से समूहांे को होली के सीजन में 50 से 60 हजार रूपए का फायदा हो सकता है। समूहों ने आजीविका मिशन के अधिकारियों के साथ मिलकर स्थानीय थोक एवं फुटकर व्यापारियों के साथ-साथ स्वयं भी दुकानें लगाकर इस गुलाल की बिक्री की योजना तैयार कर ली है। प्लास्टिक की डब्बों में 200 ग्राम की पैकिंग में प्रीमियम क्वालिटी हर्बल गुलाल और जिपर पैकिंग में दूसरे हर्बल गुलाल को आकर्षक रूप से पैकिंग कर बिक्री की तैयारी भी समूहों द्वारा की जा रही है।

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