November 22, 2024

तरेंम नक्सली हमले का मास्टर माइंड हिड़मा ने ही रची थी- झीरमघाटी में कांग्रेस नेताओं की सामूहिक हत्या की साजिश, अनेक जघन्य नरसंहारों में आता रहा है इसका नाम

♦400 नक्सलियों ने आधुनिक हथियारों से जवानों को बनाया निशान♦

♦पहले एंबुश में मौजूद रहकर जवानों से लूटे वॉकी-टॉकी से फोर्स को पीछे लौटने की देते रहा चेतावनी♦

♦ड्रोन कैमरे से नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना के बाद ऑपरेशन पर निकले जवान एंबुश में फंसे♦

♦अब तक 23 जवानों के शव बरामद, 31 घायलों का अस्पताल में चल रहा इलाज♦

जगदलपुर 5 अप्रैल।  बीजापुर के तर्रेम में शनिवार को नक्सलियों से हुए मुठभेड़ में अब तक 23 शहीद जवानों के शव बरामद किए जा चुके हैं।

♦शहीदों में कोबरा बटालियन के 9, डीआरजी के 8 व 6 एसटीएफ के जवान शामिल है। 31 घायल जवानों को अस्पताल में इलाज चल रहा है। इसकी पुष्टि बीजापुर एसपी कमलोचन कश्यप ने की है। इस मुठभेड़ में फोर्स को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। नक्सली हथियार भी लूट ले गए हैं।

♦सूत्रों के मुताबिक इस पूरे हमले के पीछे नक्सलियों के बटालियन नंबर एक का कमांडेट हिड़मा बताया जा रहा है। यहां बता दें, कांग्रेसी नेताओं पर हुए झीरम घाटी हमले के पीछे भी हिड़मा को ही मास्टरमाइंड बताया जाता है।

♦शनिवार को हुए हमले में तकरीबन 700 के करीब नक्सली वहां मौजूद थे। उनके पास आधुनिक हथियार थे जो उन्होंने विगत हमले में फोर्स से ही लूटा था।

♦इंसास रायफल, एलएमजी व रॉकेट लांचर सरीखे आधुनिक हथियारों से जवानों पर हमला किया गया। बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि तकरीबन नौ नक्सली मारे गए हैं। इनमें से एक महिला नक्सली का शव बरामद किया गया है। नक्सली अपने  साथ दो टै्क्टर में मारे गए व घायल नक्सलियों को लादकर ले गए हैं।

♦पहले एंबुश में पहाड़ी के नीचे से दे रहा था निर्देश♦

♦मुठभेड़ में शामिल स्थानीय जवानों के मुताबिक हिड़मा मुठभेड़ के दौरान पूरे समय वहां मौजूद था। नक्सलियों के लगाए गए पहले एंबुश के दौरान वह पहाड़ी के नीचे से फ्रंट में आकर इस हमले का नेतृत्व कर रहा था।

♦उसने अपने पास वॉकी-टॉकी रखा था जो कि संभवत: फोर्स से ही लूटा गया था। वॉकी-टॉकी के जरिए उसने फोर्स को पीछे लौटने की चेतावनी भी दी। सशस्त्र बलों में शामिल स्थानीय डीआरजी के जवानों ने हिड़मा को पहचानने की बात कही है।

♦हमले से पहले गांव खाली कराया फिर घेरकर मारा♦

♦ग्राउंड जीरो से यह बात निकल सामने आ रही है कि फोर्स के मूवमेंट की पहले से ही नक्सलियों को खबर थी। हमले से पहले ही मुठभेड़ स्थल के आसपास के जीरागांव को खाली करा दिया गया था। इसके बाद टेकुलगुड़म के नजदीक सुनियोजित तरीके से यू, वी व जेड शेप के तीन एंबुश लगाए गए।

♦इस एंबुश में तर्रेम से निकले जवानों की पार्टी के फंसने के बाद जवानों के पास कोई रास्ता नहीं बचा था। पहले एंबुश में ही नक्सलियों के हमले में जवानों को खासा नुकसान उठाना पड़ गया।

♦एक सप्ताह से नक्सलियों की मौजूदगी, अंदाजा लगाने में चूक♦

♦फोर्स के बाद तर्रेम के निकट जंगलों में नक्सलियों की मौजूदगी की पहले से सूचना थी। पुलिस सूत्रों के मुताबिक ड्रोन कैमरे में नक्सलियों के होने की बात पता चली थी। अंदाजा यह लगाया जा रहा था कि 200-250 नक्सली वहां मौजूद होंगे।

♦इसके बाद अलग-अलग थाना क्षेत्र से डीआरजी, एसटीएफ व कोबरा बटालियन के करीब दो हजार जवानों को बड़े ऑपरेशन के लिए भेजा गया था। लेकिन यहां फोर्स से शायद नक्सलियों के ताकत के बारे में अंदाजा लगाने में चूक हो गई।

♦आईजी ने बताया बटालियन नंबर एक से हुआ सामना♦

♦बस्तर आईजी सुंदरराज पी के इस बयान से भी घटना के दौरान हिड़मा के मौजूद होने की पुष्टि होती है। बस्तर आईजी ने पत्रकारों को बताया कि नक्सलियों के बटालियन नंबर एक जिसकी क्षमता 180 है के अलावा पामेड़ एरिया कमेटी, कोंटा एरिया कमेटी, जगरगुण्डा व बासागुड़ा एरिया कमेटी के नक्सली समेत 250 नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना थी।

♦इसके बाद बीजापुर के तर्रेम, उसूर, पामेड़, सुकमा के मीनपा व नारसापुर से करीब दो हजार जवान ऑपरेशन पर निकले थे। बीजापुर व सुकमा जिले की सीमा पर स्थित टेकुलगुडेम में सशस्त्र बलों का सामना नक्सलियों से हुआ।

♦बड़े हमलों को अंजाम देने में माहिर हिड़मा बोलता है फर्राटेदार अंग्रेजी♦

🔹शनिवार को सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ की घटना हिड़मा के गांव के करीब हुई है।

🔹हिड़मा को संतोष उर्फ इंदमुल उर्फ पोडिय़ाम भीमा जैसे कई और नामों से भी जाना जाता है।

🔹कद-काठी में छोटे से दिखने वाले हिड़मा नक्सलियों के नेतृत्व की काबिलियत के कारण ही सबसे कम उम्र में माओवादियों की टॉप सेंट्रल कमेटी का मेम्बर बन गया है।

🔹बस्तर में कई नक्सली हमलों को अंजाम देने वाले दुर्दांत नक्सली का जन्म सुकमा जिले के पुवर्ती गांव में हुआ था।

🔹यह गांव दुर्गम पहाडिय़ों और घने जंगलों के बीच में बसा हुआ है।

🔹हिड़मा के गांव में बीते लगभग 20 सालों से स्कूल नहीं लगा है। यहां आज भी नक्सलियों की जनताना सरकार का बोलबाला है।

🔹हिड़मा सिर्फ दसवीं क्लास तक पढ़ा है, लेकिन पढऩे-लिखने में रूचि होने के कारण वह फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोल लेता है।

🔹बताया जाता है कि हिडमा अपने साथ हमेशा एक नोटबुक लेकर चलता है, जिसमें वह अपने नोट्स बनाता रहता है।

🔹हिड़मा की पहचान को लेकर कहा जाता है कि उसके बाएं हाथ में एक अंगुली नहीं है ।

🔹यही उसकी सबसे बड़ी पहचान है। हिड़मा साल 1990 में माओवादियों के साथ जुड़ा। लेकिन कुछ ही सालों में यह नक्सली संगठनों का एक बड़ा  ही नाम बन गया।

🔹साल 2010 में ताड़मेटला में हुए हमले में 76 जवानों की मौत में हिड़मा कि अहम भूमिका थी।

🔹साल 2013 में हुए झीरम हमले में भी हिड़मा की अहम भूमिका थी।

🔹इस हमले में कई बड़े कांग्रेसी नेताओं सहित 31 लोगों की मौत हो गई थी। साल 2017 में बुरकापाल में हुए हमले में भी हिड़मा की अहम भूमिका बताई गई थी। इस हमले में 25 जवान शहीद हो गए थे।

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