कृषि विभाग द्वारा किसानों को समसामयिक सलाह
फसल को बचाने के लिए बीजोपचार करने और बीज जनित एवं मृदा जनित रोगों से बचाव के लिए सलाह जारी
कोरबा 11 जून 2021। बीज जनित एवं मृदा जनित रोगों से फसल को बचाने के लिए कृषि विभाग द्वारा किसानों के लिए आवश्यक सलाह जारी की गई है। बीज अनेक रोगाणु जैसे कवक, जीवाणु, कोड़ों व सूत्रकृमि आदि के वाहन होते है, जो भंडारित बीज एवं खेत में बोये गये बीज को नुकसान पहुंचाते है। जिससे बीज की गुणवत्ता एवं अंकुरण के साथ-साथ फसल की बढ़वार, रोग से लडने की क्षमता, उत्पादकता एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए बीज भंडारण के पूर्व अथवा बोवाई के पूर्व जैविक या रासायनिक अथवा दोनों द्वारा बीज का उपचार किया जाना चाहिए। बीजोपचार विभिन्न माध्यम से किया जाता है। बीजोपचार ड्रम में बीज और दवा डालकर ढक्कर बंद करके हैंडल द्वारा ड्रम को 5 मिनट तक घुमाया जाता है। इस विधि से एक बार में 25-30 किलोग्राम बीज का उपचार किया जा सकता है। बीजोपचार ड्रम कृषि विभाग के माध्यम से अनुदान में अथवा कृषि सेवा केन्द्र से प्राप्त किया जा सकता है।
उप संचालक कृषि ने बताया कि बीज उपचार की पारम्परिक विधि घड़ा विधि है। इस विधि से बीज और दावा को घड़ा में निश्चित मात्रा में डालकर घड़े के मुंह को पालीथीन से बांधकर 10 मिनट तक अच्छी तरह से हिलाया जाता है। थोड़ी देर बाद घड़े का मुंह खोलकर उपचारित बीज को अलग बोरे में रखते है। बीज उपचार की अन्य विधि प्लास्टिक बोरा विधि है। इस विधि में बीज और दवा को डालकर बोरे के मुंह को रस्सी से बांध दिया जाता है और 10 मिनट तक अच्छी तरह हिलाने के बाद जब दवा की परत बीज के ऊपर अच्छी तरह लग जाये तब बीज को भंडारित अथवा बुआई करें। बीज का उपचार रासायनिक विधि से भी किया जाता है। इस विधि में 10 लीटर पानी मेें कार्बेन्डाजाइम या वीटावेक्स की निर्धारित मात्रा 2 से 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर गन्ना, आलू, अन्य कंद वाले फसल को 10 मिनट तक घोल में डुबाकर बुआई करें।
धान बीजोपचार 17 प्रतिशत नमक घोल से किया जाता है। इस विधि में साधारण नमक के 17 प्रतिशत घोल में बीज को डुबोया जाता है। जिससे बदरा, मटबदरा, कीट से प्रभावित बीज, खरपतवार के बीज ऊपर तैरने लगते है और स्वस्थ्य एवं हष्ट पुष्ट बीज नीचे बैठ जाता है। जिसे अलग कर साफ पानी से धोकर भंडारित करें अथवा सीधे खेत में बुआई करें। बीज जनित बीमारी जैसे उकटा, जडगलन आदि के उपचार हेतु जैविक फफूंदनाशी जैसे ट्राइकोडर्मा या स्यूडोमोनास से 5 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें, इससे उकटा अथवा जड़ गलन से फसल प्रभावित नहीं होता है।
बीजोपचार के लाभ
बीज एवं मृदा जनित रोग जैसे ब्लास्ट, फाल्सस्मट (लाई फूटना) उकटा, जडगलन आदि बीमारी से फसल प्रभावित नहीं होता है। बीजाउपचार करने से बीज के ऊपर एक दवाई का परत चढ़ जाता है, जो बीज को अथवा मृदा जनित सूक्ष्म जीवों के नुकसान से बचाता है। बीज की अकुंरण क्षमता को बनाये रखने के लिए बीजोपचार जरूरी होता है, क्योंकि बीज उपचार करने से कीड़ों अथवा बीमारियों का प्रकोप भंडारित बीज में कम होता है। बुआई पूर्व कीटनाशी से बीज का उपचार करने पर मृदा में उपस्थित हानिकारक कीटो से बीज की सुरक्षा होती है। उपचारित बीज की बुआई करने से बीज की मात्रा कम लगता है एवं बीज स्वस्थ्य होने के कारण उत्पादकता एवं उत्पादन में वृद्धि होती है।