November 23, 2024

किसान चतुरदास ने छोटा तालाब निर्माण कर पुरखों की असिंचित खेती को सिंचित बनाया

कोरबा 27 सितंबर। किसान चतुरदास ने अपनी सुझबूझ से पुरखों की असिंचित खेती को सिंचित बना दिया है। अब उसे और उसके आने वाली पीढ़ियों को अच्छी फसल के लिए मानसून पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। रोजगार गारंटी से उसने खेत के किनारे बंजर जमीन पर डबरी छोटा तालाब निर्माण कराया है। इसके लिए उसे एक रुपया भी खर्च नहीं करना पड़ा। उल्टे 100 दिन की मजदूरी के एवज में उसे 16 हजार 200 रुपये मिले।

केंद्र सरकार की महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना मनरेगा जरूरत मंद किसानों के लिए संजीवनी साबित हो रही। कोरबा जिले के पंडरीपानी गांव के रहने वाले किसान चतुरदास महंत 40 वर्ष के पास एक एकड़ कृषि भूमि तो थी पर वह मानसून पर आधारित होने की वजह से उसे पर्याप्त धान नहीं मिलता था। अच्छी बारिश होने पर भी उसके हाथ केवल चार से पांच से क्विंटल धान लगता था, इसकी प्रमुख वजह खेत में पानी का नहीं ठहरना है। नजदीक में ही करीब 40 डिसमिल बंजर जमीन में डबरी निर्माण करने की युक्ति उसने लगाई। इसमें 1.30 लाख का खर्च आना था, पर आर्थिक क्षमता उसकी इतनी नहीं थी। इस बीच उसे यह जानकारी मिली कि मनरेगा के तहत जल संरक्षण का कार्य किया जा रहा। उसने पंचायत की ग्रामसभा में आवेदन प्रस्तुत किया। चतुरदास की जमीन पर डबरी बनाए जाने का कार्य प्रशासन ने स्वीकृत कर लिया। इसमें चतुरदास समेत गांव के 40 ग्रामीणों को काम मिला और 100 दिन में डबरी बन कर तैयार हो गया। इस वर्ष डबरी से उसके खेत में पर्याप्त पानी पहुंचा और धान की फसल लहलहा रही। उसे उम्मीद है कि इस बार पहले से तीन गुना अधिक धान मिलेगा।
खेत से करीब तीन फीट ऊंचे स्थान पर डबरी का निर्माण किया गया है। किसी इलेक्ट्रानिक उपकरण के उपयोग के बिना ही पानी सीधे खेत तक पहुंच रहा। यही नहीं चतुरदास के खेत से लगे आसपास के किसानों के खेतों को भी इसका लाभ मिल रहा। जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी कुंदन कुमार का कहना है कि डबरी निर्माण से अनुपयोगी जमीन का उपयोग होने के साथ असंचित खेतों को पानी मिल रहा और जल संरक्षण का उद्देश्य भी पूरा हो रहा।

चतुरदास के लिए न केवल खरीफ फसल आसान हो गया है बल्कि वह रबी फसल भी ले सकेगा। वह मछली पालन कर अब अतिरिक्त कमाई की भी योजना बना रहा। आसपास के किसानों के खेत को मिला कर सामुदायिक बाड़ी विकसित करने की तैयारी की जा रही। ग्रामीणों को पहले दूर तालाब निस्तारी के लिए जाना पड़ता था पर अब नजदीक में ही यह सुविधा मिलने लगी है।

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