पेट्रोल पदार्थ को जीएसटी के दायरे में लाया जाए, मिलेगी उपभोक्ताओं को राहत
कोरबा 21 अक्टूबर। खाड़ी देशों के भरोसे डीजल पेट्रोल की निर्भरता कब खत्म होगी यह कहा नहीं जा सकता, लेकिन इसके लिए सरकारी स्तर पर प्रयास जारी हैं। इधर क्रूड आयल की दरों में बढ़ोतरी का सीधा असर डीजल-पेट्रोल की कीमतों पर पड़ रहा है। ऐसे में जनता बेहाल है। ऐसे में जरूरत इस बात की जताई जा रही है कि क्यों ना सभी तरह के पेट्रोल पदार्थ को जीएसटी के दायरे में लाया जाए ताकि उपभोक्ताओं को राहत मिल सके।
देश के अनेक राज्यों में डीजल व पेट्रोल की कीमतें कई महीने पहले ही 110 रूपए के पार जा चुकी हैं और वहां यह स्तर लगातार आगे जा रहा है। इस मामले में छत्तीसगढ़ भी अब छलांग लगाता प्रतीत हो रहा है। औद्योगिक जिला कोरबा में डीजल पेट्रोल की दरें 100 रूपये के ऊपर आ गई है। इस स्थिति में माल भाड़ा, यात्री परिवहन के साथ लोगों से जुड़ी जरूरतें बुरी तरह से बाधित हो रही हैं। अलग-अलग स्तर पर विश्लेषण करने से पता चलता है कि पेट्रो पदार्थों की कीमतों से बहुत बड़ा हिस्सा बहुत होता है और यह वर्तमान में साफ नजर आ रहा है। डीजल पेट्रोल की दरों में बढ़ोतरी के पीछे सरकार और तेल उत्पादक कंपनियों के अपने-अपने तर्क हैं। इसका उपयोग करने वाला वर्ग तकनीकी समीकरण को जानने के बजाय केवल ऊंची होती कीमतों पर ही चिंता जता रहा है। व्यवसाय से जुड़े जानकारों का कहना है कि इन पदार्थों की आधारभूत कीमत 50 रूपए प्रति लीटर के आस पास ही है। जबकि इसकी खरीदी पर केंद्रीय और राज्य सरकार के द्वारा वसूल किए जाने वाले कर की राशि भी 50 के आसपास है। इसके अलावा प्रति लीटर डीजल के पीछे डीलर को 2.43 रूपए और पेट्रोल के पीछे 3.20 रूपए का कमीशन प्राप्त होता है। आए दिन पेट्रो पदार्थों जिनमें रसोई गैस और सीएनजी भी शामिल है, इसकी बढ़ती हुई कीमतों में सरकार के द्वारा बेइंतहा लिए जाने वाले टैक्स का सबसे बड़ा योगदान है इसीलिए लगातार मांग की जाती रही है कि इन पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाया जाए। भारत सरकार की ओर से इस दिशा में पहल भी की गई। लेकिन पिछले दिनों केरल, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने हुए आपत्ती दर्ज कराई। इसका नतीजा यह हुआ कि उपभोक्ताओं को मिलने जा रही राहत की हत्या हो गई।
परिवहन क्षेत्र में काम करने वाला वर्ग वर्तमान में महंगाई की मार को लेकर खुद परेशान है। इसके कारण सभी वर्ग के सामने दुश्वारियां पेश आ रही हैं। कारण बताया जा रहा है कि डीजल की दरों में बढ़ोतरी होने से प्रति किलोमीटर माल भाड़ा पर सीधा असर पड़ता है। ट्रांसपोर्टर ऐसे में वसूली उन लोगों से करता है जो माल भेजते हैं। इस स्थिति में सर्विस प्रोवाइडर भी अपने कुल खर्चे और मुनाफा निकालने के लिए ग्राहकों की जेब पर हाथ डालता ही है । इसलिए खाद्यान्न, कपड़ा, निर्माण सामग्री, दवा से लेकर हर सेक्टर इसके असर को महसूस करता है। इसी तरह जो लोग अपने उपयोग के लिए पेट्रोल गाडिय़ां चलाते हैं, उनका बजट भी प्रभावित होता है। बेशक, अगर डीजल पेट्रोल पर टैक्स कम होते हैं तो इनकी कीमतें कम होंगी और हर स्तर पर इसका फायदा होगा। इसलिए देश के सभी राज्यों को डीजल पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए पहल करने के साथ अपनी ओर से सहयोग करना चाहिए क्योंकि यह व्यापक उपभोक्ता समुदाय से जुड़ा हुआ विषय है।
महंगाई के दौर में डीजल पेट्रोल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी के बाबजूद सबसे राहत में केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी ही हैं। पर्याप्त वेतन के साथ इन्हें समय-समय पर बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता देने की सुविधा सरकार दे रही है। दूसरे व्यवसाय से जुड़े कुछ उच्च आय वर्ग के लोग के सामने समस्याएं नहीं है। अगर पूरी परिस्थितियों में सर्वाधिक दिक्कत कोई वर्ग लेना है तो वह है सबसे कम वेतन जिसे मानदेय कहना सही होगा। समय.समय पर घोषित की जाने वाली अनेक योजनाएं भी इनका कोई भला नहीं कर पा रही हैं। ऐसे में यह वर्ग आखिर करे तो क्या। अटकलें लगाई जा रही है कि आगामी चुनाव से पहले तुष्टिकरण के सिद्धांत पर चलते हुए आम लोगों के बारे में कुछ सोचा जा सकता है। ऐसा मानने में आखिर हर्ज क्या है। पेट्रो पदार्थ पर दो तरफा टैक्स लिए जाने से कुल मिलाकर इसका सीधा असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ रहा है। अगर इन पदार्थों को जीएसटी के दायरे में शामिल कर लिया जाता है तो निश्चित रूप से इसके बड़े परिणाम सामने आएंगे और प्रत्यक्ष रूप से ग्राहकों को इसका लाभ मिलेगा।