पाली एतिहासिक शिव मंदिर परिसर सहित आसपास में गंदगी की भरमार
कोरबा 21 अक्टूबर। पाली के एतिहासिक शिव मंदिर परिसर सहित आसपास गंदगी की भरमार देखी जा रही। नियमित स्वच्छता के अभाव में पुरातात्विक महत्व के स्थल की छवि धूमिल हो रही है। परिसर में प्रतिदिन श्रद्धालु के अलावा पर्यटक आते हैं जो पूजा अनुष्ठान के बाद अगरबत्ती माचिस के रेपर के अलावा पूजा सामाग्री रख कर लाए पालीथीन यहां वहां फेक देते हैं। परिसर में सफाई तो दूर कचरों को रखने के लिए एक डस्टबीन की भी सुविधा नहीं है।
मंदिर जैसे आत्मीय सुकुन वाले स्थल के आसपास गंदगी का होना विडंबना ही है। पाली शिव मंदिर परिसर में धूल और ध्वनि प्रदूषण के साथ अब पालीथीन प्रदूषण का विस्तार हो रहा है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु पूजन की सामाग्री के अलावा चढ़ावा के लिए मिठाई व अन्य सामाग्री लेकर आते हैं, उपयोगिता के मंदिर परिसर के बाहर फेंक देते हैं। अक्सर मंदिर गेट और तालाब के बीच कचरा फैला रहता है। पालीथीन प्रदूषण के बाद सबसे बड़ी समस्या धूल की है। मंदिर मुख्य मार्ग के निकट है। बिलासपुर से कोरबा के बीच चलने वाली भारी वाहनों के कारण मार्ग में धूल का गुबार उठते रहता है। बीते तीन सालों से सड़क निर्माण का काम पूरा नहीं होने पूरा मंदिर परिस धूल से भरा रहता था। कुछ दिन पहले बिलासपुर मार्ग की ओर से आ रही हाइवा अनियंत्रित होकर मंदिर परिसर की दीवार से जा टकराया था। पेनाल्टी के तौर वाहन मालिक को क्षतिग्रस्त स्थल की मरम्मत कराने के लिए कहा गया। स्थल की मरम्मत तो हुई लेकिन जिस मजबूती के साथ काम किया जाना था, वह केवल औपचारिक है। वाहनों के धुंआ और धूल से एतिहासिक सौंदर्य का क्षरण हो रहा है। इस दिशा में सुरक्षा को लेकर जिला प्रशासन की ओर से अब तक कोई कदम नहीं उठाया है। मंदिर की सुरक्षा भी भगवान भरोसे है। वर्षों पहले हुई प्रतिमा की चोरी का अब तक तक पता नहीं चला। शिव मंदिर जिले ही नहीं बल्कि राज्य भर में प्रसिद्ध है। पुरातात्विक महत्व के स्थल होने के बाद भी पर्याप्त संरक्षण नहीं मिला रहा।
मंदिर किनारे एतिहासिक नौकोनिहा तालाब में नगरीय निकाय के नाले का पानी समा रहा है। तालाब के सौंदर्यीकरण के लिए छह साल पहले जिला खनिज मद राशि स्वीकृत हुई थी। प्राकृतिक दशा में हुई छेड़छाड़ से तालाब की उपयोगिता घट गई है। दस साल पहले तालाब में नगर भर के लोग निस्तारी करते थे। अब मुश्किल 20 फीसद लोग तालाब का उपयोग करते हैं। बारिश के बाद तालाब के पानी की दशा कमोबेश अच्छी रहती है। तालाब में नाली को पानी और पूजन सामाग्री पालीथीन आदि से अटन के कारण गंदगी फैल रही है।
परातात्विक जानकारों के अनुसार शिव मंदिर का निर्माण बाणवंश के शासक ने नवीं शताब्दी में कराया था। मंदिर परिसर में प्रति वर्ष मार्च महीने के शिवरात्रि के अवसर पर जिला प्रशासन की ओर पाली महोत्सव आयोजित किया जाता है। इसी तरह सावन महीने में भी श्रद्धालु भक्तों की यहां कतार लगी रहती है। कमोबेश प्रशासनिक आयोजन के दौरान साल भर में मार्च माह में पाली महोत्सव पर ही पूछ मंदिर की परख होती है शेष दिनों में उसे उसके हालिया स्थिति में छोड़ दिया जाता है। एतिहासिक शिव मंदिर को देखने के लिए प्रतिदिन दूर दराज से लोग पहुंचते हैं। पाली महोत्सव के शिवरात्रि मेला और सावन महीन में लोगों की अपार भीड़ रहती है। मंदिर परिसर के आसपास वाहनों की बेतरतीब पार्किंग होती है। स्थाई पार्किंग की सुविधा नगरी प्रशासन द्वारा किया जाना चाहिए।
मंदिर परिससर सहित आसपस में स्वच्छता की जिम्मेदारी नगरीय प्रशासन की है। एतिहासिक महत्व के स्थल में गंदगी की भरमार है। मंदिर में प्रतिदिन दर्शनार्थी भक्त आते हैं। महिलाओं के लिए शौचालय की सुविधा नहीं है। मंदिर परिसर में एतिहासिक कुंआ भी है जो कचरों से अट गया है। कभी इस कुएं के पानी से शिवलिंग को अभिषेक किया जाता था। लोगों के लिए असुरक्षित मानकर कुएं की सफाई नहीं कराई जा रही। साथ ही परिसर में सोलर लाईट लगाया जाए, बिजली गुल होने पर भर रात के समय तालाब का सौंदर्य बनी रहे।