अचानकमार अभयारण्य के वन ग्राम लमनी में जिस झोपड़ी में बैगा आदिवासियों के लिए समर्पित शख्स ने सालों-साल गुजारे…उस झोपड़ी और डॉक्टर खेरा के सामान समेत उनकी सभी यादों को सहेजने का संकल्प
(शशि कोन्हेर द्वारा)
बिलासपुर 18 अगस्त। पाकिस्तान के खेड़ा गांव से पंजाब और वहां से दिल्ली में प्रोफेसरी करने के बाद अचानकमार अभयारण्य के वन ग्रामों में बैगा आदिवासियों के बीच आकर बस जाने वाले डॉक्टर खेरा..कब इन वनवासियों के लिए देवदूत बन गए… यह कोई नहीं जान पाया। कंधे पर रखें एक गांधी झोले मैं चिरौंजी दाना और मूंगफली लेकर बच्चों को बांटते-बांटते उनके समग्र विकास की चिंता करने वाले शख्स का नाम था.. डॉक्टर प्रभु दत्त खेरा.. उन्होंने अचानकमार में बैगा आदिवासियों के लिए जिस तरह अपने आप को समर्पित कर दिया उनकी इस समर्पण भावना ने बिलासपुर शहर के असंख्य पर्यावरण और वन प्रेमियों को उनका दीवाना बना दिया। वे हर उस शख्स के लिए आदर्श बन गए..जो हमारे जंगलों..वहां के पेड़ पौधों..और उनके बीच..घोर अभावों में भी मस्त रहने वाले वनवासियों से प्रेम किया करते हैं। और उनकी बेहतरी चाहते हैं।
दरअसल, डॉक्टर खेरा एक व्यक्ति नहीं वरन दर्शन थे। एक अलग ही तरह से जिंदगी जीने का फलसफा थे..और इसी फलसफे के लकीर की फकीरी मे़ खुद को झोंक दिया उन्होंने.. अचानकमार अभ्यारण्य के लमनी गांव में किसी वानप्रस्थी की तरह बैगा आदिवासियों की सुख समृद्धि और स्वास्थ्य की चिंता में एक दधीची की तरह अपना समग्र जीवन समर्पित कर दिया। 23 सितंबर 2019 को हुए उनके देहावसान से ना केवल लमनी वरन अचानकमार क्षेत्र के वन ग्रामों में रहने वाले वनवासियों ने अपना वह देवदूत खो दिया… जिसका सपना, बैगा आदिवासियों की झोपड़ियों को विकास के सूरज की रोशनी से रूबरू कराना था। यह अच्छी बात है कि सोमवार को लमनी में स्वर्गीय डॉक्टर प्रभुदत्त खेरा की झोपड़ी तक पहुंचे बिलासपुर के पर्यावरण और वन प्रेमियों ने यह संकल्प लिया कि वे ऐसी कोई ठोस परिणाममूलक पहल करेंगे जिससे वनवासियों के लिए समर्पित इस मनीषी की स्मृतियां, हमेशा हमेशा के लिए सहेजी जा सकें।
बिलासपुर से पहुंचे इन संकल्पवान लोगों..प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव, आर्किटेक्ट श्री श्याम शुक्ला, बिलासपुर शहर कांग्रेस अध्यक्ष श्री प्रमोद नायक एवं श्री बाजपेई ने यह तय किया कि डॉक्टर खेरा की झोपड़ी, उनकी पुस्तकें, उनके द्वारा सहेजी गई जड़ी बूटियों की गठरियों समेत उन तमाम चीजों को हमेशा हमेशा के लिए सहेज संवार कर रखने की कोशिश की जाएगी, जिससे हमारी आने वाली पीढ़ियां उस देवदूत के बारे में जान सके..जिन्होंने पंजाब और दिल्ली जैसी सर्व सुविधायुक्त जिंदगी वनवासियों की बेहतरी के सपने के नाम पर कुर्बान कर दी। बिना लोकेषणा के चुपचाप ऐसी तपस्या करने वाले डॉक्टर खेरा की तरह के लोग अब शायद ही मिलेंगे। हम उम्मीद करते हैं कि उनकी झोपड़ी तक पहुंचने वाले महानुभाव ऐसी कोई पहल जरूर करेंगे..जिससे लमनी पहुंचते ही लोगों को उस गोरे चिट्टे, देवदूत के इरादों..और वनवासियों की बेहतरी के उनके सपनों का अहसास हो जाए..!