November 8, 2024

माता के क्रोध के भय से धमनागुड़ी एवं खरहरी मड़वारानी में नहीं मनाई जाती होली

0 न करते हैं होलिका दहन और नहीं खेलते रंग गुलाल
-सुखदेव कैवर्त

कोरबा (बरपाली)।
कोरबा जिले के करतला विकासखंड के गांव धमनागुड़ी एवं खरहरी मड़वारानी में आज भी होलिका दहन नहीं की जाती। न ही रंग गुलाल खेला जाता है। दोनों गांव की अलग-अलग किंदवतियां है। आज के इस विज्ञान के युग में पूर्व में बुजुर्गों के लगाए गए प्रतिबंध को तोड़ने की हिम्मत कोई नहीं कर पाये हैं और इस त्योहार को नहीं मानते।

करतला विकासखंड के पठियापाली पंचायत के आश्रित गांव धमनागुड़ी में दो सौ से अधिक वर्ष पूर्व गांव के ग्रामीणों ने होलिका दहन किया और फाग गीत वहां गाया गया। इससे गांव की देवी डंगाही माता नाराज हो गई, ऐसा ग्रामीणों ने बताया। उन्होंने कहा कि जब गांव के लोग अपने अपने घर आये तो सभी घर में वहां की महिलाओं ने डंडा उर्फ डांग से पुरुषों को पीटना शुरू कर दिया। उनके ऊपर डंगाही माता सवार हो गईं थीं। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था वे मारते हुए कह रहीं थीं कि होलिका माता के सामने अपशब्द कह रहे थे और अपशब्द फाग गीत गा रहे थे। मैं इस गांव की देवी हूं। मुझे ऐसा अपशब्द बोलने से अच्छा नहीं लगता। फिर सभी गांव के बैगा धोंधू गौटिया के पास गये और सभी हाल बताया। गांव की देवी के सामने पूजा अर्चना कर माफी मांगने पर सभी महिलाएं शांत हो गईं। वहीं बैगा को रात्रि में स्वप्न में आकर डंगाही माता ने कहा कि होलिका दहन कर माता के सामने गाली अपशब्द आदि का उपयोग करते हो, अपशब्द फाग गीत गाते हो मुझे अच्छा नहीं लगता। अब होलिका दहन मत करना। मैं गांव की महिलाओं के ऊपर सवार थी। सबको सबक सिखाया एवं गुलाल रंग लगाने को भी मना किया। तब से आज तक करीब दो सौ साल से अधिक से धमनागुड़ी में होलिका दहन एवं होली त्योहार नहीं मनाया जाता। त्योहार के दिन घर में कुछ मिष्ठान, बड़ा, पकौड़ा, पूड़ी बनाकर खा लेते हैं, लेकिन रंग गुलाल आज भी नहीं लगाते। आज भी बुजुर्गों से चली आ रही परंपरा को तोड़ने की हिम्मत किसी में नहीं है। कहीं फिर कोई बड़ी अनहोनी न हो जाए।

इसी तरह कोरबा-चांपा मुख्य मार्ग के बीच मड़वारानी खरहरी में भी सैकड़ों वर्ष से होलिका दहन नहीं किया जाता है और न ही रंग गुलाल खेला जाता है। यहां के बुजुर्गों ने बताया कि दादा-परदादा के समय सैकड़ों वर्ष पूर्व होली के खरहरी गांव में अचानक आग गई। आग पहाड़ ऊपर मंदिर स्थल तरफ से आने की बात कही गई। होलिका दहन से मड़वारानी नाराज हो गई, जिस कारण गांव में आग लग गई। तब से यहां होलिका दहन नहीं किया जाता। वहीं कोरबा-चांपा मुख्य मार्ग में स्थित मां मडवारानी क्षेत्र खरहरी गांव के अंतर्गत आता है। इस कारण मड़वारानी क्षेत्र में भी होलिका दहन नहीं किया जाता है और न ही रंग गुलाल खेला जाता है। यहां भी बुजुर्गों की बनाई गई परंपरा को तोड़ने की हिम्मत आज तक कोई नहीं कर पाया। बुजुर्गों की परंपरा के अनुसार ही चल रहे हैं।
0 अपशब्दों से नाराज हो गई थी देवी डंगाही

धमनागुड़ी के भुनेश्वर प्रसाद शर्मा ने बताया कि गांव में दो सौ वर्ष पूर्व से भी होलिका दहन नहीं किया जा रहा है। पूर्व में मेरे पिताजी ने बताया था कि मेरे परदादा के समय होलिका दहन से गांव की देवी डंगाही माता होलिका स्थल पर अपशब्दों से नाराज हो गई थी। यहां सभी घरों में महिलाओं के ऊपर डंगाही माता सवार होकर होलिका दहन के पश्चात आने पर डांग से पिटाई की और होलिका दहन न करने की चेतावनी बैगा को स्वप्न में दिया। तब से यहां होली त्योहार नहीं मनाते हैं। धौंधू बैगा में इतनी शक्ति थी कि धमनागुड़ी, साजापानी, काशीपानी गांव में एक साथ गांव के देवी-देवताओं के सामने दीपक जला दिया करता था। यहां की आबादी लगभग सात सौ है। सभी इस परंपरा का निर्वाह करते आ रहे हैं।
0 महिलाओं पर सवार होकर की पिटाई

धमनागुड़ी के गनपत सिंह कंवर ने कहा कि पूर्व में गांव की देवी डंगाही माता होलिका दहन एवं अपशब्दों से नाराज होकर गांव के पुरुषों की घर की महिलाओं के ऊपर सवार होकर डांग से पिटाई की थी। रंग गुलाल नहीं खेलने की हिदायत बैगा को स्वप्न में दिया। साधारण होली त्योहार मनाने को कहा था। इस दिन बड़ा, पूड़ी, भजिया बनाकर खा लेते हैं। होलिका दहन नहीं करते न ही रंग गुलाल खेला जाता है।
0 बुजुर्गों की चली आ रही परंपरा

खरहरी मड़वारानी के साधराम धनुहार ने बताया कि बुजुर्गों की परंपरा चली आ रही है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व होली के दिन मड़वारानी पहाड़ ऊपर की तरफ से आग आकर गांव को जला दिया। तब से यहां होली त्योहार नहीं मनाया जाता। होलिका दहन भी नहीं किया जाता और न ही गुलाल खेला जाता है। बच्चों में होली त्योहार न मनाने की कसक रहती है, लेकिन बुजुर्गों की चली आ रही परंपरा को तोड़ने की आज तक हिम्मत नहीं कर पाए हैं।

0 गांव में अचानक लग गई आग

खरहरी के सहायक शिक्षक जागेश्वर प्रसाद कंवर ने कहा कि बुजुर्गों का कहना है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व होली त्योहार के दिन गांव में अचानक आग लग गई। कहा जाता है कि मड़वारानी नाराज तो नहीं हो गई। तब से यहां होली त्योहार नहीं मनाया जाता है।

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