12 साल बाद भी रेलवे के पिट लाइन का नहीं हो सका सुनिश्चित उपयोग
0 तकनीकी फॉल्ट बता नए कार्यों के लिए करोड़ों की मांग
कोरबा। लगभग 18 करोड़ रुपये खर्च कर कोरबा में ईस्ट केबिन के आगे तैयार की गई पिट लाइन सफेद हाथी बनकर रह गई है। 12 साल का लंबा समय बीतने के बाद भी इसका उपयोग सुनिश्चित नहीं हो सका है और तो और अब तकनीकी फॉल्ट बताकर इस पर नए कार्यों के लिए करोड़ों की मांग की जा रही है। कुल मिलाकर इन कारणों से लंबी दूरी की गाड़ियों का रखरखाव न होने के चलते रेलवे को बहाना मिल गया है कि ऐसी गाड़ियां सीधे कोरबा से नहीं चलाई जा सकती।
वर्ष 2011 में पिटलाइन निर्माण का काम पूरा किया जा चुका है। वर्ष 2008 में रेलवे ने इस काम को हाथ में लिया था। कोरबा में लंबे समय से इसकी मांग की जा रही थी। इसके पीछे उद्देश्य यही था कि औद्योगिक नगर से विभिन्न राज्यों के लिए सुपरफास्ट ट्रेन का परिचालन किया जाए। शर्तों के अनुसार जरूरी होता है कि शुरुआती प्वाइंट पर गाड़ियों की वाशिंग और मेंटेनेंस सुविधा उपलब्ध हो। अन्य स्तर पर ऐसे काम कराए जाने से न केवल समय जाया होता है बल्कि संबंधित क्षेत्र को अवसर से वंचित होना पड़ता है। कोरबा के नागरिक संगठनों सहित रेल से जुड़े मामलों के लिए काम करने वाले लोगों ने इस बारे में व्यापक स्तर पर पत्राचार किया और मंत्रालय से लेकर रेल जोन के अधिकारियों को तैयार किया कि वे कोरबा के हित में कुछ करें, तब पिट लाइन को स्वीकृति मिली और इस पर बजट देने के साथ काम कराया गया। सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि 2011 में पिट लाइन का निर्माण पूरा होने पर रेल अधिकारियों ने परीक्षण करने के साथ पाया कि इसमें कई फाल्ट हैं और इसके चलते वे कार्य नहीं हो सकते, जिनके लिए यह प्रोजेक्ट तैयार किया गया। बताया जा रहा है कि वर्ष 11 से अब तक इसी बात का रोना रोते हुए पिट लाइन को उसके हाल पर छोड़ दिया गया है। कहा जा रहा है कि खामियों को दूर करने और टेक्निकली फिट करने के लिए यहां पर कई जरूरी काम करने होंगे और तब कहीं जाकर यह अपनी उपयोगिता साबित कर सकेगी। जानकार बताते हैं कि समय के साथ इसकी पुनरीक्षित लागत लगातार बढ़ रही है और रेल जोन पर इसका बोझ बढ़ रहा है। अलग-अलग कारणों से वह मामले को टाल रहा है। ऐसी स्थिति में औपचारिक रूप से कुछ ही ट्रेनें कोरबा से चल पा रही है और यहां की जनता को अधिकतम सेवाओं से वंचित होना पड़ रहा है।