November 22, 2024

आईपीएस दीपका में हरेली पर्व के उपलक्ष्य आयोजित हुए विभिन्न रंगारंग कार्यक्रम

0 गिल्ली-डंडा, कबड्डी, रस्सी खींच, फुगड़ी, डंडा पचरंगा, सत्तुल इत्यादि खेलों का विद्यार्थियों ने लिया आनंद
कोरबा।
दीपका स्थित इंडस पब्लिक स्कूल में हरेली पर्व के उपलक्ष्य में बच्चों ने पौधारोपण कर हरियाली के महत्व को बताते हुए पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया। विद्यालय में अध्ययनरत विभिन्न कक्षाओं के विद्यार्थियों ने छत्तीसगढ़ की माटी एवं छत्तीसगढ़ी लोक कला का बखान करने वाली सुआ, करमा, राउत नाचा, जस गीत आदि रमणीय एवं मनमोहक गीतों पर अपनी मनभावन नृत्य से समां बांध दिया। विद्यालय के खेल शिक्षक लीलाराम यादव एवं सुमन महंत ने विद्यालय में विभिन्न क्षेत्रीय खेलों का आयोजन कर विद्यार्थियों को छत्तीसगढ़ के खेलों से अवगत कराया। विद्यालय में विद्यार्थियों ने गिल्ली-डंडा, कबड्डी, रस्सी खींच, डंडा पचरंगा, सत्तुल इत्यादि खेलों का आनंद लिया।

इस अवसर पर विद्यालय के प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता ने बताया कि हरेली तिहार किसानों का सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण त्योहार है। हरेली शब्द हिंदी शब्द हरियाली से उत्पन्न हुआ है। हरेली जिसे हरियाली के नाम से भी जाना जाता है इसे छत्तीसगढ़ में प्रथम त्योहार के रूप में माना जाता है। लोक पर्व हरेली पर किसान खेती-किसानी में काम आने वाले उपकरण और बैलों की पूजा करते हैं। करीब डेढ़ माह तक जी तोड़ मेहनत कर किसान लगभग बुआई और रोपाई का कार्य समाप्त होने के बाद अच्छी फसल की कामना लिये सावन के दूसरे पक्ष में हरेली का त्योहार मनाते हैं। यह किसानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन किसान खेती में उपयोग होने वाले सभी औजारों की पूजा करते हैं। गाय बैलों की भी पूजा की जाती है और गेंड़ी सहित कई तरह के पारंपरिक खेल भी हरेली तिहार के आकर्षण होते हैं। सुबह से ही किसान अपने जीवन सहचर पशुधन और किसान की गति के प्रतीक कृषि यंत्र नांगर, जुड़ा, चतवार, हंसिया, टंगिया, बसूला, बिंधना, रापा, कुदारी, आरी, भंवारी के प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हैं। वहीं किसानिन घर में पूरे मन से गेंहू आटे में गुड़ मिलाकर चिला रोटी, बड़ा बनाती हैं। चिला रोटी, बड़ा कृषि यंत्रों को समर्पित किया जाता है। छत्तीसगढ़ हम जहां रहते हैं वहां की संस्कृति व परंपरा को हमें आत्मसात करना चाहिए। कला एवं संस्कृति के विकास में ही सभ्यता का विकास निहित होता है। हमें हमेशा अपनी कला, संस्कृति व परंपराओं को सहेजकर रखने का प्रयास करना चाहिए।

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