November 22, 2024

गरीब आदिवासी कोरोना के इलाज के नाम पर लूटे जा रहे और प्रदेश सरकार निठल्लेपन का प्रदर्शन कर रही है- विष्णुदेव साय

रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने कहा है कि प्रदेश में लगातार तेज़ी से बढ़ रहे कोरोना संक्रमण की रोकथाम में तो राज्य सरकार बुरी तरह विफल साबित हो चुकी है, अब कोरोना के इलाज के नाम पर निजी अस्पतालों में मची लूट-खसोट पर भी वह अपने निठल्लेपन का प्रदर्शन कर रही है। प्रदेश के मध्यमवर्गीय और ग़रीब आदिवासी ज़मीन-ज़ायदाद व गहने बेचकर इलाज कराने को मज़बूर होकर लुट रहे हैं। निजी अस्पतालों में कोरोना के उपचार के लिए कोई गाइडलाइन और इलाज की राशि निश्चित करने के मामले में प्रदेश सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही है। निजी स्कूलों में ट्यूशन फीस को लेकर विधेयक तक लाकर दखल देने वाली सरकार यह कहकर कि, वह निजी अस्पतालों के मामले में दखल नहीं दे सकती, अपने दोहरे राजनीतिक चरित्र का परिचय दे रही है।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष साय ने भाटापारा-बलौदाबाजार ज़िले के पलारी की एक आदिवासी महिला के वायरल हो रहे वीडियो का जिक्र करते हुए कहा कि उक्त महिला अपने पति का इलाज राजधानी के जिस निजी अस्पताल में करा रही है, वहाँ उक्त अस्पताल प्रबंधन ने उसके पति को कोरोना पॉज़ीटिव बताकर पहले तीन दिन का 01.15 लाख रुपए ऐंठ लिया है और 07 दिन बाद अब उससे अपने पति को लेकर जाने के लिए 01.75 लाख रुपए और जमा करने को कहा जा रहा है, जबकि उक्त महिला ने शुरू में ही अपनी तंग आर्थिक दशा का हवाला देकर अपने पति को किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती कराने की बात कही थी लेकिन उक्त अस्पताल प्रबंधन ने बहुत-सी इधर-उधर की बातें करके महिला को अपने अस्पताल में रोक कर इलाज कराने के लिए लगभग बाध्य किया। प्रदेश सरकार एक तरफ ग़रीबों, आदिवासियों की हितैषी होने का ढोल पीट रही है, वहीं दूसरी तरफ उसकी नाक के नीचे राजधानी में निजी अस्पताल कोरोना के नाम पर ग़रीब मज़दूरों व आदिवासियों तक को कंगाल करने पर आमादा हैं और राज्य सरकार निठल्ली होकर बैठी यह लूट-खसोट देख रही है। जब राजधानी का आलम यह है तो प्रदेश के दूसरे स्थानों पर कैसी लूट मची होगी, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। ‘बदलापुर की राजनीति’ न करके प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल यदि प्रदेश में केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना को जारी रखते तो आज सभी कोरोना समेत अन्य गंभीर बीमारियों के नि:शुल्क इलाज की सुविधा मरीजों को मिली होती।

साय ने कहा कि कोरोना के मोर्चे पर प्रदेश सरकार को अपनी विफलता पर कोई शर्मिन्दगी तक महसूस नहीं हो रही है और वह अब भी झूठे आँकड़ों का रायता फैलाकर अपनी शेखी बघार रही है और राजनीतिक प्रलाप कर रही है, जबकि आँकड़े और ज़मीनी सच इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि कोरोना के मामलों में छत्तीसगढ़ का रिकवरी रेट अब भी सबसे खराब है। छत्तीसगढ़ के बाद सबसे खराब स्थिति मेघालय की है। जुलाई माह के आख़िरी में छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमितों की संख्या जहाँ 9,192 और मृतकों की संख्या 54 थी वहीं अगस्त माह के आख़िरी में संक्रमितों का आँकड़ा 31,502 और मृतकों का आँकड़ा 277 हो चला है। ये ताज़ा आंकड़े चीख-चीखकर प्रदेश सरकार को लापरवाह बता रहे हैं, संवेदनहीन बता रहे हैं और प्रदेश की भूपेश सरकार को इस बात का दोषी ठहरा रहे हैं कि इस सरकार की लापरवाही के चलते प्रदेश कोरोना काल के गाल में समाता जा रहा है। क्वारेंटाइन सेंटर्स की ही तरह अब कोविड अस्पताल से भी लोग भागने और आत्महत्या करने लगे हैं। बस्तर संभाग के कोविड सेंटर में मरीज के तड़प-तड़पकर मर जाने की ख़बर प्रदेश सरकार की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि प्रदेशभर क्वारेंटाइन सेंटर्स की तरह प्रदेश सरकार अब कोविड-19 उपचार केंद्रों को भी नर्क बनाने पर तुली हुई है। इन कोविड सेंटर्स में भर्ती मरीजों को न दवा समय पर मिल रही है, न चाय और न ही निर्धारित मैन्यू के मुताबिक़ समय पर भोजन। जगदलपुर के धरमपुरा स्थित कोरोना हॉस्पिटल में मरीजों को घटिया और बासी खाना परोसा जा रहा है। खाने की गुणवत्ता इतनी ख़राब है कि मरीज पूरा खाना डस्टबिन में डालने को मज़बूर हो रहे हैं। इन मरीजों को सुबह की चाय तक नहीं दी जा रही है। हालात ये हैं कि कोरोना ठीक करने की हाईडोज़ की दवा मरीज खाली पेट लेने को विवश हैं। हैरत जताई कि सीएमएचओ और कोविड अस्पताल के प्रभारी ने भी भोजन के ख़राब स्तर की तस्दीक की है, लेकिन व्यवस्था में सुधार की कोई ठोस पहल नहीं हुई है। प्रदेश के अधिकांश कोविड अस्पताल इसी तरह की बदइंतज़ामी के चलते बदहाल हैं। साय ने कटाक्ष कर क्वारेंटाइन सेंटर्स के लिए 580 रुपए किलो टमाटर खरीदने वाली, बोर का पानी पिलाकर सीलबंद पानी बोतल का बिल पेश करने वाली और सरकारी राशन का चावल खिलाकर बाजार मूल्य का बिल दर्शाने वाली प्रदेश सरकार से यह सवाल किया है कि आख़िर कोविड अस्पतालों में मरीजों की चाय कौन गटक रहा है और मरीजों का खाना कौन हजम कर रहा है?

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