November 21, 2024

गर्मी में भी कुम्हारों का धंधा है मंदा, देसी पर भारी पड़ रहा इलेक्ट्रॉनिक फ्रिज

कोरबा। आधुनिक युग में अधिकाश कार्य मशीनों से किये जाने से कई परपंरागत व्यवसाय से जुड़े लोगों का व्यापार ठप हो रहे हैं। मिट्टी के घड़े, दीया व अन्य बर्तन बनाने के व्यवसाय से जुड़े कुम्हार आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। घड़ों की मांग गर्मी में कम होने से इनका लागत भी नहीं निकल पा रहा है। इससे परेशान होकर कुम्हार अपने परंपरागत व्यवसाय को छोड़ अन्य व्यवसाय करने में रूचि दिखा रहे हैं।
एक समय था जब आमजन मिट्टी के बर्तनों का उपयोग अधिक करते थे और मिट्टी के बर्तनों से इस व्यवसाय से जुड़े कुम्हारों की कमाई भी अच्छी खासी हो जाती थी। गर्मी के दिनों में मिट्टी के लाल घड़े का उपयोग पानी पीने के लिए ज्यादातर लोग करते थे, परंतु आज आधुनिक युग में पानी ठंडा करने के कई तरह के यंत्र बाजार में आने से मिट्टी के घड़े की मांग कम हो गई है। इससे मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के सामने रोजी रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है। गर्मी का मौसम शुरू होने के एक माह पहले से कुम्हार मिट्टी के लाल घड़े बनाने का कार्य शुरू कर देते थे और गर्मी लगते ही लाल घड़े की खरीदी शुरू हो जाती थी, लेकिन आज इसकी मांग कम हो गई है। मिट्टी के बर्तनों का उपयोग कई मांगलिक कार्य में किया जाता रहा है और बिक्री भी खूब होती थी। आज बाजार में मिट्टी के बर्तनों की मांग घटने से कुम्हार भी इस कार्य से नाता तोड़ने लगे हैं।
मिट्टी के बर्तन बनाकर परिवार का पालन पोषण करने वाले कुम्हार बताते हैं कि उनकी कई पीढ़ी मिट्टी के बर्तन बनाने के कार्य में लगे हैं। इसे परिवार के लोग आगे बढ़ाने के प्रयास में जुटे हुए हैं, परंतु पहले जैसा लाभ नहीं हो रहा है। पहले बारहों माह मिट्टी से निर्मित पात्रों की मांग होती थी, गर्मियों मे ठंडे पानी के लिए लोग लाल घड़े का उपयोग करते थे। शादी विवाह में अधिकतर मटके का उपयोग किया जाता रहा है, जिस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में शादी के समय इसकी मांग बढ़ जाती थी। परंतु जब से फ्रिज, वाटर कूलर बाजार में आया है तब से घड़ों की मांग घट गई है। कुम्हारों का इस व्यवसाय के सहारे परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल हो गया है।
पहले बर्तन बनाने के लिए आसानी से मिट्टी मिल जाती थी तथा बर्तन पकाने के लिए भूसा, लकड़ी कोयला कम दाम पर मिल जाते थे। आज यह सामग्री रुपये से खरीदने पर भी नहीं मिल रहे। सभी सामग्री महंगे होने से मिट्टी के बर्तन बनाने की लागत तक नहीं निकल पा रहा है। इस कारण कुछ लोग इस व्यवसाय को छोड़ अन्य व्यवसाय करने लगे हैं। वहीं कच्चे मकानों में उपयोग होने वाली खपरैल, दीपावली का दीया तथा भोजन पकाने में भी मिट्टी के बर्तन का उपयोग किया जाता रहा है लेकिन आज सभी मकान पक्के व सीट के बनाए जाने से खपरैल की मांग कम हो गई है। कुम्हारों का कहना है कि जिस प्रकार शासन प्रशासन अन्य समाज के लोगों को योजना का लाभ देकर उनके व्यवसाय को बढ़ाने उपाय कर रही है, उसी तरह कुम्हार समाज को भी शासन की योजना का लाभ देना चाहिए।

Spread the word