November 7, 2024

कही-सुनी ( 20 JUNE-21)

रवि भोई

चर्चा में बिलासपुर के विश्वविद्यालय

बिलासपुर के गुरु घासीदास विश्वविद्यालय और अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय दोनों ही इन दिनों सुर्ख़ियों में हैं। एक कुलपति के अनोखे तौर-तरीके के लिए चर्चा में है, तो एक कुलपति की नियुक्ति को लेकर जिज्ञासा का केंद्र बना है। अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय राज्य सरकार के अधीन है। यहां के कुलपति प्रो. अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी रिवाल्विंग चेयर को छोड़कर दफ्तर में तखत में बैठने और फाउंटेन या डाटपेन की जगह सरकंडा के पेन से फाइलों पर दस्तखत से चर्चा में हैं। कहते हैं कोरोना से बचने के लिए उनकी नीमपत्ती खाने की सलाह से लोगों के दिमाग की बत्ती जल-बुझ रही है, वहीं लंबे इंतजार के बाद गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी में कुलपति की नियुक्ति का अब समय आया है। कार्यकाल खत्म होने बाद भी करीब दस महीने से कुलपति प्रो.अंजिला गुप्ता एक्सटेंसन पर चल रही हैं। कहते हैं गुरु घासीदास विश्व विद्यालय बिलासपुर के कुलपति के लिए पांच लोगों का पैनल राष्ट्रपति को भेजा गया है। पैनल में गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश से वास्ता रखने वाले शिक्षाविदों के नाम की चर्चा है । माना जा रहा है कि इस महीने के अंत तक छत्तीसगढ़ के सेंट्रल यूनिवर्सिटी को नया कुलपति मिल जाएगा। अब देखते हैं किसकी लाटरी खुलती है , पर यहां के अगले कुलपति के नाम को लेकर लोगों में उत्सुकता कुछ ज्यादा ही देखी जा रही है।

मंत्री बड़ा या मेयर

छत्तीसगढ़ में बारिश के साथ ‘मंत्री बड़ा या मेयर’ विषय पर गर्मागरम चर्चा हो रही है। कहते हैं एक मंत्री जी एक जिले में अपनी पसंद का कलेक्टर पोस्ट करवाना चाहते थे , पर बाजी मार गए मेयर साहब। चर्चा है कि मेयर साहब अपनी पसंद के आईएएस अफसर को कलेक्टर बनवाने में कामयाब रहे। मजेदार बात तो यह है कि मंत्री जी और मेयर साहब दोनों ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी माने जाते हैं। कहा जाता है राजनीतिक और व्यक्तिगत साख के लिए मंत्री जी और मेयर दोनों ही जिले में अपनी धाक चाहते हैं। अब देखते हैं आगे क्या होता है ? पर सत्ता ऐसी है, जो साख और धाक की लड़ाई शुरू करवा ही देती है। रमन राज में भी एक जिले में उनके दो मंत्री पवार गेम में हमेशा ताल ठोंकते दिखते थे।

फिर जागा निगम-मंडल का जिन्न

छत्तीसगढ़ में निगम-मंडलों में पद का जिन्न फिर जाग गया है। प्रभारी महासचिव पीएल पुनिया और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के संकेतों के बाद कांग्रेसी नेताओं के मन में लड्डू फूटने लगा है , लेकिन इंतजार का भूत रह-रहकर डरा भी रहा है। पहली और दूसरी लिस्ट के बाद अंतर इतना हो गया है कि कुछ सपने की तरह पद को देखने लगे हैं। कहते हैं कुछ लोग कोप भवन में बैठ गए तो कुछ मुँह सील लिए हैं, पर उम्मीद नहीं छोड़ी है। किसी ने सच ही कहा है उम्मीद पर तो दुनिया कायम है। अभी तो बीज विकास निगम, पर्यटन मंडल, बेवरेज कार्पोरेशन और दूसरे-निगम मंडलों में अध्यक्ष-उपाध्यक्ष और सदस्यों के पद खाली हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष की कुर्सी छह महीने से खाली है। यहां सदस्य के तौर पर भी कई कांग्रेस नेता एडजेस्ट हो जाएंगे। करुणा शुक्ला के निधन से समाज कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष का पद भी रिक्त हो गया है। कहते हैं सरकार सौ से अधिक लोगों को सार्वजानिक उपक्रमों और आयोगों की रेवड़ी बाँट सकती है।लेकिन सवाल मुहूर्त निकलने का है।

एफआईआर-एफआईआर का खेल

लगता है एफआईआर राजनीतिक अस्त्र बन गया है। सत्ता चाहे किसी की भी हो, एफआईआर अस्त्र से विरोधी पर वार का चलन सा बन गया है, भले यह अस्त्र अदालत में जाकर भोथरा हो जाय। कहा जा रहा है एफआईआर का पिक्चर दिखाकर कांग्रेसी हाईकमान से जरूर पीठ थपथपवा ले रहे हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेसजनों ने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणी करने के आरोप में रिपल्बिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी के खिलाफ राज्य के 26 जिलों में 101 एफआईआर दर्ज कराया था। एफआईआर के आधार पर अर्णब के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई, शायद ही किसी को पता हो। टूल किट मामले में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा के खिलाफ भी एफआईआर हुई, पर अदालत में दांव काम नहीं आया। अब एलोपैथी डॉक्टरों के खिलाफ टिप्पणी के आरोप में आईएमए की शिकायत पर योग गुरु बाबा रामदेव के खिलाफ रायपुर के सिविल लाइन थाने में एफआईआर दर्ज की गई है। कहते हैं कांग्रेस से जुड़े आईएमए सदस्यों की शिकायत पर ही एफआईआर काटी गई है, अब देखते हैं इसका क्या हश्र होता है ?

आईएएस अफसरों में हेरफेर के कयास

माना जा रहा है कि 30 जून को आईएएस अफसरों की एक छोटी लिस्ट निकल सकती है। इस दिन सामान्य प्रशासन, आदिमजाति कल्याण और जनसंपर्क विभाग के सचिव डीडी सिंह रिटायर हो रहे हैं। सेवानिवृति के बाद डीडी सिंह की संविदा नियुक्ति तय मानी जा रही है, पर सभी पुराने विभाग उनके पास रहेंगे, इसकी संभावना कम बताई जा रही है। अनुमान है कि 2007 बैच की आईएएस शम्मी आबिदी को ट्राइबल डिपार्टमेंट का चार्ज दिया जा सकता है। वे अभी संचालक आदिमजाति कल्याण हैं। जनसंपर्क सचिव का दायित्व आयुक्त जनसंपर्क डॉ. एस. भारतीदासन को ही सौंपे जाने की चर्चा है। खबर है कि डीडी सिंह को सामान्य प्रशासन विभाग में बनाए रखा जा सकता है। सामान्य प्रशासन विभाग में अभी कमलप्रीत सिंह भी सचिव हैं।

लटकी आईपीएस की सूची

कहा जा रहा है आईपीएस अफसरों की तबादला सूची बीरबल की खिचड़ी की तरह हो गई है। इस लिस्ट में कई जिलों के एसपी के साथ डीआईजी और आईजी स्तर के अफसरों में भी हेरफेर का प्रस्ताव है। माना जा रहा है कि आधिकारिक स्तर पर लिस्ट को लेकर तीन-चार बार चर्चा के बावजूद प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिल पा रही है। आईपीएस अफसरों की तबादला सूची को लेकर छह -सात महीने से अटकलें चल रही है। कहते हैं आईपीएस और राज्य पुलिस सेवा के अफसरों के प्रमोशन को लेकर कवायद चल रही है, पर आदेश कब जारी होता है, इसको लेकर संशय बना है। 1996 बैच के आईपीएस दुर्ग आईजी विवेकांनद सिन्हा एडीजी प्रमोट होने वाले हैं। दुर्ग आईजी का पद रिक्त होने पर किसी डीआईजी को प्रभारी आईजी बनाए जाने की संभावना जताई जा रही है। चर्चा है कि डीआईजी स्तर के कुछ अधिकारियों ने इसके लिए प्रयास भी शुरू कर दिया है।

छत्तीसगढ़ में चुनाव के पहले बवाल

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को ढाई साल बचे हैं , पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही कोरोना को भूलकर मैदान पर ऐसे ताल ठोंक रहे हैं, मानों चुनाव सिर पर आ पड़ा है। भाजपा भूपेश सरकार को घेरकर 2018 की हार का बदला लेने का कोई मौका गवांना नहीं चाहती, वह कांग्रेस राज के ढाई साल पूरे होने पर ही सरकार पर चढ़ाई कर वादाखिलाफी के ढ़ोल बजाने में लग गई, तो कांग्रेस महंगाई को हथियार बनाकर मोदी सरकार और भाजपा को निशाने पर ले रही है।

इसके लिए कांग्रेस ने अपने महिला और युवा विंग समेत सबको मैदान में उतार दिया। भाजपा विपक्ष में है, जनता में अपना वजूद और सक्रियता के लिए सरकार पर हमले स्वाभाविक है, पर भाजपा से मुकाबले के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने की योजना और विधायकों को प्रवक्ता का दायित्व सौपने के फैसले को लोग कांग्रेस की हड़बड़ी के रूप में देख रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस की रणनीति से राज्य का राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है। सवाल यह है कि अगले ढाई साल तक दोनों दल ऊँचे तापमान को कैसे बनाए रखेंगे , जिससे जनता को राजनीतिक गर्मी का अहसास होता रहे। भाजपा यहाँ कांग्रेस में कलह पर अपनी रोटी सेंकने की भी जुगाड़ में दिखती है। हवा देने पर भी फिलहाल उसे अब तक मौका तो नहीं मिला है। साम-दाम -दंड -भेद राजनीति के अंग है, यह तो चलता रहता है। दोनों दलों की सक्रियता या दांवपेंच से जनता को क्या फायदा होता है, यह देखना होगा।

(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

(डिस्क्लेमर – कुछ न्यूज पोर्टल इस कालम का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी से आग्रह है कि तथ्यों से छेड़छाड़ न करें। कोई न्यूज पोर्टल कोई बदलाव करता है, तो लेखक उसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। )

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