March 24, 2025
विकास के पीछे हादसों का मंजर देखा है।
शिलान्यास के पाषाणों का मंजर देखा है।

काल का आना तो तय है जिंदगी में,
उस पे बहानों का बवंडर देखा है।

ख्वाब देखने की मनाही भला किसे है,
शेखचिल्ली के सपनों का खंडहर देखा है।

वो गहराई जहाँ मिलती है ऊचाईयाँ,
कभी मां-बाप के आँखों का समंदर देखा है।

बदचलन हुई हवा तालीमगाह की,
कलम वाले हाथों का खंजर देखा है।

औरों से मदद की चाह में निर्मल,
ख्वाहिशों का अस्थि पंजर देखा है।

संस्थापक/संयोजक
*कविता चौराहे पर*
मुंगेली, जिला-मुंगेली, छत्तीसगढ़
मो- 093027 76220
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