November 23, 2024

कोहरे की स्थिति में रेल फ्रैक्चर का खतरा, ट्रैकमैन संभाल रहे जिम्मेदारी

कोरबा। सर्दियों के मौसम में आमतौर पर रेल परिचालन बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण हो जाता है। खासकर कोहरे की स्थिति में रेल फ्रैक्चर की घटनाएं भी काफी दर्ज की जाती हैं। हड्डी कंपा देने वाली ठंड में भी इन दिनों रात के घुप्प अंधेरे में ट्रैकमैन रेल लाइन की देखभाल करते हुए रेल यात्रियों की यात्रा को सुरक्षित बनाने में बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के चांपा-कोरबा खंड में भी पेट्रोलमैन अंधेरे में जंगली जानवरों के क्षेत्र में अपनी ड्यूटी पूरी जिम्मेदारी के साथ निभा रहे हैं। विपरीत मौसम में सर्दी के समय जब रात को कड़ाके की ठंड पड़ती है, ऐसे में भी पेट्रोलमैन अपना कार्य कर रहे हैं, ताकि रेल यात्रियों का सफर संरक्षा के साथ पूरा हो सके। ट्रेनों का संरक्षित परिचालन सुनिश्चित करना रेलवे की पहली प्राथमिकता रही है। इसके लिए समय-समय पर दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में अनेक अभियान चलाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में ठंड के दिनों में भी सुगम व निर्बाध रूप से व्यवधान-मुक्त रेल सेवा सुनिश्चित करने प्रतिवर्ष की भांति शीतकालीन पेट्रोलिंग शुरू किया गया है। इस कार्य में जुटे ट्रैकमैन भारतीय रेल के रीढ़ की हड्डी हैं। वे सेना के जवान की तरह काम करते हैं। ठंड हो या गर्मी यहां तक कि खराब मौसम में भी ट्रैकमैन रेलवे ट्रैक पर अपनी ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। सर्दियों में रेल लाइनों पर संरक्षा को और अधिक मजबूत बनाने के लिए चंपा-कोरबा समेत सभी रेलखंडों में पेट्रोलिंग कर्मचारियों की तैनाती की गई है। कोरबा समेत रेलवे के सभी संबंधित विभागों द्वारा भी शीतकालीन विशेष संरक्षा अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत समपार फाटकों, रेल पुलों, रेल पथों, संरक्षा व सुरक्षा से जुड़े संसाधनों, ओएचई लाइन, संबद्ध उपकरणों, सिग्नल प्रणाली की सघन जांच-निरीक्षण कर आवश्यकतानुसार उनका अनुरक्षण किया गया है, ताकि शीतकालीन के दौरान भी रेल परिचालन निर्बाध और सुचारू रूप से चलता रहे।
0 921 बीट और प्रत्येक 2 किलोमीटर का
इस कार्य में पेट्रोलिंग की जिम्मेदारियों को सफलता पूर्वक निभाने कार्यक्षेत्र को अलग-अलग बीट में विभाजित किया गया है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में 921 बीट है और प्रत्येक बीट 2 किलोमीटर का होता है, जिसमें ट्रैकमैन, कीमेन समेत दो पेट्रोलिंग कर्मचारी होते हैं। प्रतिदिन रात्रि 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक 4 चक्कर लगते हैं। इस प्रकार प्रत्येक पेट्रोलिंग दल प्रतिदिन 16 किलोमीटर चलकर रेल लाइनों का निरीक्षण करता है। सभी पेट्रोलमैन को जीपीएस ट्रैकर यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम दिया गया, जिससे पेट्रोलिंग के समय इन पर निगरानी रखी जा सके। इसके अलावा, आपातकालीन स्थिति में इसी ट्रैकर की मदद से मोबाइल फोन द्वारा पेट्रोलमैन से कम्युनिकेशन किया जा सकता है।
0 16 से 20 किमी पैदल पटरी जांच
रेलवे का पेट्रोलमैन आपात स्थिति में रेलवे लाइन को सुधारने वाले सभी आवश्यक उपकरणों जो कि लगभग 20 से 25 किलो सामान उठाकर रोजाना 16 से 20 किलोमीटर चलता है। रात के वक्त ट्रैक की पेट्रोलिंग करने वाले कर्मचारियों को एचएसएल लैंप (रात को इंडीकेशन करने वाली लैंप), लाल झंडी, नट बोल्ट कसने के लिए चाबी व पटाखे दिए जाते हैं। रात के वक्त यदि कोई नट बोल्ट अथवा क्लैंप ढीला पाया जाता है तो उसे तुरंत कस दिया जाता है। अगर ट्रैक में कोई दरार पाई जाती है तो पेट्रोलिंग कर्मचारी तुरंत इसकी सूचना देने के साथ लगते स्टेशन के स्टेशन मास्टर को देते हैं, ताकि समय रहते किसी भी अनहोनी को टाला जा सके।

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