November 22, 2024
प्रस्तुति- विजय सिंह

स्त्री हूँ मैं
…………

मौन रह कर भी मुखर हूँ मैं
जैसे
पानी के भीतर जलजला
आग के भीतर उसकी धधक
हवा के भीतर उसकी लय
और मिट्टी के भीतर उसका
गीलापन
साथ लिये
हरियाने पृथ्वी को
वर्षो वर्षो से
हाँ मैं एक स्त्री हूँ
हाँ मैं सहस्त्र स्त्री हूँ

@@@@@@@@@@#@#
समय की आवाज
.……………………
यह समय कहता है
चुप रहो
बिना बोले
सुनो
सदाओ को
सुनो
उन हवाओं को
जो सरसरा कर ठिठकती है
पत्थरों को तोड़कर सुनो उसकी आवाज
कितने ,
हौले से दरक रही है मिट्टी
चुग कर जाती चिड़िया
को देखो,
कैसे समेट ली है पंखो को
तितलियां कहा गई इन दिनों
आसमान भी पूछता है,
यह वह समय है
जब बात – बात पर
हिल उठते हैं वृक्ष
हां ये,
गुमसुम समय की आवाज है।

Spread the word