सूत्र पटल @ नीरज नीर
एक बार पूरनी के गाँव में रोजलिन नाम की एक औरत आई, जो वहीं पड़ोस के गाँव की थी। वह दिल्ली में रहती थी। वह पूरनी की माँ से मिली और उससे पूरनी के बाबत पूछा।
पूरनी की माँ ने उसे बताया कि वह रांची में काम करती है और खिला पिला के उसे दो हज़ार रुपये मिल जाते हैं।
“दो हज़ार बस” ! रोजलिन ने बुरा सा मुंह बनाकर कहा।
“दिल्ली में तो लोग रोज़ का दो हज़ार कमाते हैं।“
“रोज़ का दो हज़ार !!” पूरनी की माँ ने आश्चर्य से कहा।
“तो ! वहां दो हज़ार महीना में कौन काम करता है? मैंने तो कितने लोगों को वहाँ काम पर रखवाया है । तुम पता कर लो” और उसने अड़ोस पड़ोस के गाँव के एक दर्ज़न से ज्यादा लोगों के नाम बता दिए। पूरनी की माँ उनमे से किसी को नहीं जानती थी।
तुम चाहो तो पूरनी को भी दिल्ली में काम लगवा दें। कम से कम दस हज़ार रुपये महीने के तो मिल ही जायेंगे। ऊपर से अच्छा खाएगी, पहनेगी, दिल्ली में सिनेमा देखेगी , घूमेगी सो अलग। तुम नहीं जानती वहां पंजाबी लोग दिन भर में एक पाव मक्खन खा जाते हैं । जब वे खायेंगे तो तुम्हें क्या लगता है , तुम्हारी बेटी को नहीं देंगे क्या?
“एक पाँव मक्खन” अरे बाप रे पूरनी की माँ की आंखे फटी रह गयी
“तो और क्या , कभी किसी पंजाबी को दुबला पतला देखा है?” रोजलिन ने कहा
सच तो यही था कि पूरनी की माँ को पंजाबी क्या होता है यही पता नहीं था, फिर भी उसने सहमति में सिर हिलाया।
“हमारी पूरनी को दस हज़ार महीना मिल जायेगा? उसने पूछा, पूरनी की माँ ने ध्यान नहीं दिया कि दो हज़ार रुपये रोज़ का दावा करने वाली रोजलिन दस हज़ार महीना पर आ गयी थी।
हाँ मिल जायेगा, नहीं तो मैं क्या झूठ बोलती हूँ? तुम पूछ लो किसी से जिनको मैंने वहां लगवाया है। वह फिर से एक सिरे से नाम गिनवाने लगी, जिनमे से किसी को पूरनी की माँ नहीं जानती थी।
दो महीने का एडवांस तो मैं तुम्हें अभी के अभी दे देती हूँ और उसने अपने हैण्ड बैग से पैसे निकाले और गिनकर बीस हज़ार रुपये उसके हाथ में रख दिए। पूरनी की माँ की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने इतने सारे पैसे एक साथ कभी नहीं देखे थे। उसने रोजलिन के सामने हाथ जोड़ दिए। वह समझ नहीं पा रही थी कि इस अचानक से आये फ़रिश्ते के प्रति वह कैसे अपनी कृतज्ञता अर्पित करे। गरीब आदमी को जब पैसे मिलते हैं तो उसको आगे पीछे देखने की दृष्टि कम हो जाती है। इसी बीच पूरनी का बाप आ गया। उसने रुपये देखे तो उसमें से अपना हिस्सा मांगने लगा। किसी तरह पाँच सौ रुपये देकर पूरनी की माँ ने उससे पिंड छुड़ाया और वह दारू पीने चला गया।
पूरनी को किसी बहाने से उसकी माँ राँची से काम छुड़ा कर ले आई।
पूरनी दस हज़ार रुपये महीना कमाएगी तो घर का सारा दारिद्रय दूर हो जाएगा। एक बार पूरनी जम गयी तो फिर धीरे-धीरे उससे छोटी वाली को भी दिल्ली ही भेज देंगे। वह सोच रही थी। कोई राँची में भला क्यों काम करे, जब दिल्ली में दस हज़ार रुपये मिलते हैं? वहां अच्छा खाएगी पहनेगी तो देह में भी लगेगा। राँची में तो खाली ठगी है ठगी। पूरनी की माँ सोचने लगी।