November 22, 2024

मिर्ची @ गेंदलाल शुक्ल

बुधवार 12 जनवरी 2022

रंगदारी बंदः धौंसबाजी शुरू

कोरबा जिले के सरपंच-सचिव खासे मुसीबत में है। कारण है-राजनीतिक धौंसबाजी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रंगदारी पर तो पूरी दमदारी के साथ रोक लगाई, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की राजनीतिक धौंसबाजी पर अभी रोक नहीं लग पाई है। जिले भर के सरपंच सचिव इसीलिए मुसीबत में है। यहां सांसद मद हो, विधायक मद हो, विभागीय मद हो, डी एम एफ हो अथवा सी.एस.आर.सभी मदों के कामों पर धौंसबाजों ने एक तरफा कब्जा जमा लिया है। विभिन्न तरह के काम ग्राम पंचायतों को दिये जाते हैं। माना जाता है कि पंचायत स्तर पर सरपंच-सचिव कार्य संपादित करायेंगे। लेकिन सच्चाई इसके ठीक विपरित है। दरअसल पंचों-सरपंचों के प्रस्ताव पर किसी मद का कोई काम सीधे-सीधे स्वीकृत ही नहीं होता। धौंसबाज उनसे प्रस्ताव तैयार कराते हैं और अपने-अपने नेताओं के मार्फत स्वीकृति दिलाते हैं। काम खुद करते हैं। मलाई खुद खाते हैं और सरपंच- सचिव को छाछ पर गुजारा करना पड़ता है। वे इस पर ही-संतोष कर लेते हैं, लेकिन उनकी तकलीफ तब बढ़ जाती है, जब धौंसबाज पैसा लेकर काम किये बिना चम्पत हो जाते हैं और काम अधूरा पड़ा रहता है। कोरबा जिले के अधिकांश ग्राम पंचायतों में धौंसबाज यही खेल कर रहे हैं। पूरे जिले में स्तरहीन काम हो रहा है और क्या काम पूरा होगा? क्या अधूरा रह जायेगा? कहना कठिन है।

हुए बेरोजगार, सप्लायर और ठेकेदार

कोरबा जिले के ठेकेदार और सप्लायर पिछले अर्सा से बेरोजगार हो गये हैं। अधिकांश सप्लायर और ठेकेदार काम के अभाव में टाईम पास कर रहे हैं। उम्मीद है समय बदलेगा, तो काम फिर हाथ आयेगा। इनका कहना है कि जैसे सैकड़ों नदियां अलग-अलग हिस्सों से निकलकर समुद्र में समाहित होती हैं, उसी तरह केन्द्रीय और राज्य शासन के उद्योगों और विभागों के काम अलग-अलग निकल कर भी एक ही दफ्तर में समायोजित हो जाते हैं। बताया जाता है कि हर फिल्ड में नये-नये चेहरे चमक रहे हैं। नये-नये लोग, पुराने ठेकेदारों सप्लायरों को दर किनार कर हर काम पर कब्जा कर रहे हैं। पुराने लोगों की अफसर भी कोई सुनवाई नहीं कर रहे। बेचारों को प्रतिस्पर्धा का भी मौका नहीं दिया जा रहा है। रही बात रेट की तो वह भी मुंहमांगा मिल रहा है। कुल मिलाकर जिले में लोकसभा और विधानसभा की तरह की एक दर्शक दीर्घा अस्तित्व में आ गया है, जहां बैठकर जिले भर के सप्लायर और ठेकेदार अपनी रोजी-रोटी गंवाने का नजारा देख रहे हैं।

दो की लड़ाई में तीसरे की भलाई

पुरानी कहावत है-दो की लड़ाई में तीसरे की भलाई। यह कहावत कोरबा में चरितार्थ होती नजर आ रही है। दरअसल पिछले दिनों शहर के वकीलों और जिले के आला अफसर के बीच गलत फहमी पैदा हो गयी थी। परिणाम स्वरूप वकील साहबान धरना पर बैठ गये। मामला सुलझता नजर नहीं आ रहा था। ऐसे में कहीं से पहल हुई और बात आई गयी हो गयी। लेकिन इसी दौरान शहर का चर्चित बहुरूपिया नमूदार हो गया। उसकी सुलह-सफाई में कितनी भूमिका थी या नहीं? लेकिन इसका पूरा श्रेय लूटने में उसने कोई कसर बाकी नहीं रखा। यहां तक तो गनीमत थी, लेकिन अब उसकी नजर करोड़ों के डी. एम. एफ. और सी. एस. आर. मद पर टिक गयी है। आश्चर्य नहीं यदि वह आने वाले दिनों में आला अफसर को झांसा देकर करोड़ों का खेल कर जाये। वैसे पिछले वर्ष वह शिक्षा विभाग में बड़ा खेल कर भी चुका है, ऐसी चर्चा है। वर्तमान में भी लम्बा खेल चल रहा है, यह भी सुनने में आ रहा है।

हमको भी इज्जत दो

कहते हैं-इज्जत मांगने से नहीं, कर्मों से मिलती है। लेकिन बहुत से लोग मांग कर इज्जत पाने में यकीन करते हैं। दीन-दुनिया को पाठ पढ़ाने वाले कई लोग इन दिनों इज्जत की तलाश में है। हठ है कि रामू ने श्यामू को पहले नमस्ते क्यों किया? पहले हमको नमस्ते करना था। उन्हें यह भी नहीं पता कि रामू उन्हें नमस्ते करना भी चाहता है या नहीं? लेकिन साहब हमें भी नमस्ते चाहिये। कैसे नमस्ते नहीं करेंगे? हमें भी नमस्ते करो, इज्जत दो। इज्जत नहीं दोगे तो …..। है न अजीब बात। लोग हंस रहे हैं। सवाल कर रहे हैं-इज्जत क्या इतनी सस्ती चीज है, जितनी गरीब की लुगाई कहावत में है? रास्ता चलता कोई भी आदमी गरीब की लुगाई को भौजाई कह देता है। क्या बात-बात में किसी की इज्जत चली जाती है?

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