November 24, 2024

कोरबा लोकसभा में कभी नहीं जीता ब्राह्मण प्रत्याशी, फिर भी भाजपा ने तीसरी बार उतारा इसी वर्ग से

0 कांग्रेस लगातार इस सीट से उतार रही ओबीसी कैंडिडेट
कोरबा।
भाजपा एक बार फिर से कोरबा लोकसभा के लिए बाहरी प्रत्याशी उतार दिया है। पार्टी ने ब्राम्हण चेहरे राज्यसभा सांसद सरोज पांडेय पर दांव लगा दिया है। पार्टी का फैसला कितना सही रहेगा अभी कहना मुश्किल है, लेकिन अगर पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो पार्टी ने जब भी बाहरी प्रत्याशी को कोरबा लोकसभा में उतारा है उसे हार का मुंह देखना पड़ा है।
पार्टी ने साल 2009 में भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को कोरबा की पहली लोकसभा में किस्मत आजमाइश का मौका दिया था तब डॉ. चरणदास महंत ने उनको हराकर संसद पहुंचे थे। वहीं इसके उल्ट जब साल 2014 में डॉ. बंशीलाल महतो को चुनाव मैदान में पार्टी ने उतारा तब उनकी जीत हुई। लोग कोरबा को कांग्रेस का गढ़ मानते हैं ऐसा इसलिए जब पूरे देश में मोदी लहर चल रही था तब भी भाजपा इस सीट को साल 2019 में हार गई। जबकि कोरबा विधानसभा समेत शहरी इलाके से ताल्लुक रखने वाले विधानसभा से भाजपा को बढ़त मिली थी। बावजूद 8 विधानसभा वाले इस लोकसभा सीट से कांग्रेस ने अपनी जीत का परचम लहरा डॉ. चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत को संसद भेजने में कामयाबी हासिल की।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि बाहरी प्रत्याशी को इस सीट में जीत के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है, जबकि स्थानीय प्रत्याशी आसानी से जीत के करीब पहुंच सकता है। हालांकि इस बार खुद डॉ. चरणदास महंत मजबूत हैं, क्योंकि पिछले बार विधानसभा अध्यक्ष रहते संवैधानिक पद के कारण वो खुलकर प्रचार नहीं कर सके थे लेकिन अब डॉ. महंत स्वतंत्र है ऐसे में भाजपा प्रत्याशी कोरबा को गंभीरता से लेना चाहिए। वहीं इस सीट का दूसरा पहलू ये है कि यहां से कभी भी ब्राह्मण कैंडिडेट जीतकर संसद नहीं पहुंचा है। भाजपा ने अब यहां से तीसरी बार ब्राह्मण कैंडिडेट को मैदान में उतारा है। पहले 2009 में करुणा शुक्ला, 2019 में ज्योतिनंद दुबे, अब 2024 में सरोज पांडेय। इनमें से साल 2009 और 2019 में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था, जबकि ओबीसी चेहरे डॉ. बंशीलाल महतो ने साल 2014 में यहां जीत दर्ज की थी। 2019 में भाजपा के ज्योतिनंद दुबे ने वैसे तो काफी वोट मोदी लहर में ले आये थे, लेकिन फिर भी 26 हजार वोटों से हार गए। इस बार न तो मोदी लहर है न राष्ट्रवाद का मुद्दा, ऐसे में प्रत्याशी को अपने दमखम से चुनाव लड़ना होगा। आज की तारीख में दोनों नेत्रियां प्रचार में बराबरी में है, लेकिन जनादेश 7 मई को आएगा तब ही पता लगेगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा।

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