दौड़ी हसदेव एक्सप्रेस, पर मूलभूत सुविधाएं कब आएगी पटरी पर
न्यूज एक्शन। जब भी जिले को कोई सौगात मिलती है। इसका श्रेय लेने वालों की होड़ मच जाती है। चाहे किसी के प्रयास से सौगात मिली हो, लेकिन शेखी बघारने वाले अपनी आदत से बाज नहीं आते। हसदेव एक्सप्रेस के संचालन के बाद भी ऐसे वाहवाही लूटने वालों की होड़ सी मची हुई है। जनता भी कन्फ्यूज है कि आखिर किसके प्रयास से हसदेव एक्सप्रेस का संचालन शुरू हुआ है। वाहवाही लूटने वालों की तो बड़ी जमात है। मगर शायद ऐसे वाहवाही लूटने वालों को शहर की मूलभूत समस्याएं नजर नहीं आती। जिस तरह से टे्रन को लेकर जमीन, आसमान एक करने का दावा किया जा रहा है। क्या ऐसे दावा करने वाले लोगों को शहर की मूलभूत समस्याएं बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा नजर नहीं आता। अगर नजर आता है तो इसके सुधार के लिए प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है।
कोरबा जिला में मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा सहित बुनियादी सुविधाओं से आमजन वंचित हैं। शहर की सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे बन चुके हैं। पावर हब होने के बाद भी बिजली की आंख मिचौली शहर सहित पूरे जिले में चलती रहती है। पानी की व्यवस्था भी समुचित नहीं है। स्वास्थ्य और शिक्षा का तो बुरा हाल है। इन तमाम तरह की कमियों के बीच ऊर्जाधानी कोरबा को हसदेव एक्सप्रेस की सौगात दी गई है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि केंद्र की भाजपा सरकार ने कोरबा जिले के लोगों को रेल सुविधा के रूप में बड़ी सौगात दी है। इसी के साथ रेल सुविधाओं के श्रेय लेने की होड़ मच गई है। टे्रन चलाने के पीछे खुद का श्रेय बताते हुए वाहवाही लूटने वालों की तनिक भी कमी नहीं है, लेकिन ऐसे वाहवाही लूटने वालों से आम जनता का एक सवाल है कि क्या उन्हें शहर की अन्य समस्याएं नजर नहीं आती। जिले में भाजपा के एक सांसद, एक विधायक (संसदीय सचिव) व कांग्रेस के तीन विधायक व एक महापौर है। जिन पर शासकीय योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन एवं विकास का जिम्मा है। कोरबा जिला राजस्व कमाई के मामले में अग्रणी है। इस लिहाज से रेल सुविधाओं का विस्तार तनिक भी नहीं है। इसे लेकर पिछले कई वर्षों से आवाज उठाई जाती रही है। इसी कड़ी में पिछले लोक सभा चुनाव के बाद बंद कर दी गई इंटरसिटी एक्सप्रेस के पुन: संचालन को लेकर विशेष प्रयास किया गया। कुछ जनप्रतिनिधियों ने जोर लगाया तो कुछ प्रबुद्धजनों ने संगठन बनाकर रेल प्रबंधन व मंत्रियों के सामने कोरबा की आवाज बुलंद की। इसके अलावा विभिन्न संगठनों ने अपनी-अपनी जिम्मेदारी निर्वहन का दावा किया। आखिर तमाम तरह के प्रयासों के बाद इंटरसिटी एक्सप्रेस नाम बदलकर पटरी पर लौट गई। यह कोरबावासियों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है, लेकिन कोरबा जिला में मूलभूत सुविधाओं की कमी लंबे वर्षों से बनी हुई है। जिस जोरशोर से टे्रन का मुद्दा उठाया गया, क्या उस अंदाज में जर्जर सड़कों, बदहाल विद्युत व्यवस्था, पेयजल की समस्या, कमजोर शिक्षा व्यवस्था व बीमार स्वास्थ्य सेवाओं का मुद्दा उठाया गया। कोरबा में निगम की सत्ता कांग्रेस के हाथ और विधायक भी कांग्रेसी है। सांसद भाजपा के हैं। इसके बाद भी शहर की मूलभूत सुविधाओं की गत क्यों नहीं सुधरी? श्रेय लेने वालों ने इन मुद्दों को लेकर क्या प्रयास किया? इसका जवाब कोरबा की भोलीभाली जनता तलाश रही है।
भूविस्थापितों की समस्या बरकरार
लगभग पिछले 15 सालों से विभिन्न खदान विस्तार परियोजना से प्रभावित भूविस्थापित नौकरी, मुआवजा व पुनर्वास की बाट जोह रहे हैं। लगभग हर दल के नेता के पास अपनी समस्या का रोना भूविस्थापित रो चुके हैं। उनकी समस्याओं के निपटारे का आश्वासन तो हर कार्यालय से मिला, लेकिन धरातल पर उनकी मांगे अब तक जस की तस बनी हुई है। नौकरी, मुआवजा व पुनर्वास के इंतजार में जवान आंखे अब बुढ़ी हो चली है। अपनी मांगों को लेकर भूविस्थापित आंदोलन तक कर चुके हैं। क्या ट्रेन चलाने का श्रेय लेने वाले लोगों को भूविस्थापितों की समस्या नजर नहीं आती? ऐसे श्रेय लेने वालों ने भूविस्थापितों के लिए क्या किया, यह भी सवाल हमेशा बना रहेगा।