ट्रिपल मर्डर: 50 लाख रुपये का दिया जाए मुआवजा- कोरबा जिला भाजपा
कोरबा 5 फरवरी। जिले के वनांचल ग्राम लेमरू थाना अंतर्गत जंगल मार्ग में पहाड़ी कोरवा तथा उसकी 4 साल की मासूम पोती की हत्या और उसकी किशोरवय बेटी से बलात्कार कर निर्मम हत्या के मामले में जिला भाजपा ने आज पत्रकारों से चर्चा की।
भारतीय जनता पार्टी जिलाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार सिंह ने पार्टी कार्यालय पंडित दीनदयाल कुंज में पत्रकारों से चर्चा करते हुए बताया कि जिला संगठन के द्वारा एक प्रतिनिधि मंडल भेजकर घटना स्थल एवं पीड़ित पक्ष से संपर्क कर घटना की जानकारी ली गई। पार्टी द्वारा शासन-प्रशासन से मांग की गई है कि पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने हेतु सख्त-से-सख्त कार्यवाही की जाये। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय द्वारा उक्त घटना पर संवेदना व्यक्त करते हुए सख्त कार्यवाही की मांग की गई है। उनके द्वारा कहा गया है कि आदिवासी क्षेत्रों की सचिंग की व्यवस्था पुलिस विभाग को सही ढंग से सुनिश्चित किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में इसी तरह की अन्य घटनाओं की पुनरावृति ना हो। विष्णुदेव साय द्वारा यह भी कहा गया है कि आदिवासी क्षेत्रों पर सही ढंग से देख-रेख नहीं की जाती है तथा पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने में कोताही की जाती है तो भारतीय जनता पार्टी प्रदेश स्तर पर आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर वृहद आंदोलन करेगी। जिला भाजपा ने शासन- प्रशासन से पीड़ित परिवार हेतु मुआवजा स्वरूप 50 लाख रूपये तथा पीड़ित परिवार के किसी भी एक सदस्य को नौकरी देने की मांग की है। साथ ही यह भी मांग की है कि कोरवा जनजाति जो कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाते हैं, उनके रहन-सहन, खान-पान एवं रोजगार की समुचित व्यवस्था की जाय।
बुधवार को मृतक व पीड़ित परिवार के गांव पहुंचे उक्त प्रतिनिधि मंडल में भाजपा महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष मीना शर्मा, उमा भारती सराफ, अविनाश सिंह कंवर भाजपा जनजाति मोर्चा जिलाध्यक्ष, श्याम लाल मरावी, सरजू अजय , पुष्पराज सिंह ठाकुर , टिकेश्वर राठिया आदि शामिल थे। इन्होंने मृतक की पत्नी, पुत्र व अन्य परिजनों से भेंट कर पीड़ित परिवार को उचित न्याय दिलाने का आश्वासन दिया है। इस दौरान महिला मोर्चा जिला अध्यक्ष श्रीमती मीना शर्मा ने कहा कि बीहड़ जंगलों में ग्रामीण, आदिवासी कैसे रह रहे हैं प्रशासन इनकी सुध नहीं लेता। वे उपेक्षित पड़े हुए हैं। इनके भोलेपन का लोग फायदा उठा रहे हैं। इस तरह की दुखद घटना में शामिल सभी लोगों को फांसी होनी चाहिए और कानून में भी इसके लिए प्रावधान है। इस परिवार को न्याय दिलाने के लिए हम पूरा प्रयास करेंगे।
पहाड़ी कोरवाओं को मुख्य धारा में लाने की योजनाएं फेल, जनजातियों के लोग राजनीतिक व प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार…
यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि पहाड़ी कोरवा आदिवासी के नाम से पहचाने जाने वाले इस कोरबा जिले में कोरवा जनजाति के लोग जहां विलुप्त प्राय होते जा रहे हैं वहीं इन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयास और तमाम तरह की योजनाएं लगभग असफल साबित हो रही हैं। इन पहाड़ी कोरवाओं को पहाड़ से नीचे उतारकर बसाने की योजना जहां फेल है वहीं उनके रहन-सहन, गुजर-बसर के तौर-तरीकों में बदलाव ला सकने में भी प्रशासन विफल ही साबित हो रहा है। अनेक ऐसे पहाड़ी कोरवा हैं जिन्हें शासन की आवास योजना का न लाभ मिला है न ही वे इंदिरा आवास योजना का लाभ उठा सके हैं। अनेक पहाड़ी कोरवा राशन कार्ड, वोटर कार्ड और अन्य मूलभूत आवश्यकता और सुविधाओं से वंचित हैं। पूर्व में कई बार इस तरह के मामले सामने व प्रशासन के संज्ञान में लाए जा चुके हैं। पहाड़ी कोरवाओं अन्य जनजातियों के आवास योजना का पैसा आवास मित्र व संबंधित लोग उनसे हासिल कर डकार चुके हैं लेकिन जिला प्रशासन ने कभी भी संज्ञान नहीं लिया जिसका नतीजा है कि कोरवा सहित अन्य जनजातियों को आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। उनके नाम से राशि तो जारी हो गई है लेकिन आज भी आधे-अधूरे, कच्चे, टूटे-फूटे मिट्टी व खपरैल एवं जंगल की लकड़ियों के सहारे बनी झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर हैं। उन्हें शौचालय तक की सुविधा प्राप्त नहीं है जबकि इनके नाम पर राशि निकालकर बंदरबांट हो चुकी है। कंदमूल, फल, कोदो-कुटकी खाकर अपनी जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं। इन तक शासन की योजनाओं को पूरी तरह से पहुंचाने का दावा खोखला ही साबित होता दिखता है। खेद जनक है कि खबरों के माध्यम से शासन-प्रशासन तक इस तरह की जानकारियां पहुंचाए जाने के बाद भी उस पर न तो अधीनस्थ और ना ही शीर्ष अधिकारी किसी तरह का संज्ञान लेते हैं। हालांकि गाहे-बगाहे खास अवसरों पर और बीच-बीच में समाजसेवी संगठनों, कभी कभार पुलिस अधिकारियों के आयोजनों के माध्यम से मिलने वाली खाद्य और पहनने की सामग्रियों के रहमों करम पर इन आदिवासियों को थोड़ा बहुत लाभ मिल जाता है बाकी इनकी ओर झांकने की जहमत ना तो उस पंचायत के सरपंच, सचिव न ही सीईओ और ना ही जिम्मेदार अधिकारी उठाते हैं। प्रशासनिक पहुंच भी इन तक न जाने क्यों अधूरी ही हो पाती है और यदि पहुंची भी है तो थोड़ा बहुत लाभ देकर ज्यादा कुछ बताने की कोशिश की जाती है। जमीनी हकीकत यही है कि पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, पंडो सहित अन्य जनजातीय लोग आज भी कहीं ना कहीं राजनैतिक और प्रशासनिक उपेक्षा का दंश झेलने के लिए विवश हैं।