September 19, 2024

छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार दीपक पाचपोर ने की देहदान की घोषणा, एम्स ने दी सहमति

रायपुर 10 मई। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार दीपक पाचपोर ने देहदान की घोषणा की है।एम्स रायपुर ने अपनी सहमति भी प्रदान कर दी है।

भारतीय संस्कृति में देहदान की परंपरा आदिकाल से ही रही है। वर्तमान में धार्मिक भ्रांतियों व मान्यताओं के चलते लोग देहदान के लिए आगे नहीं आते, जबकि लोगों को पता होना चाहिए कि चिकित्सा जगत के लिए मृतदेह अमूल्य है। सिर्फ जनरल पढ़ाई लिखाई ही नहीं, आगे के शोध और जटिल ऑपरेशन में दिग्गज सर्जंन के लिए भी यह देह नई दिशा देकर कई जिंदगियां बचाती है। इसलिए रक्तदान, नेत्रदान की तरह ही देहदान को भी शासन व सामाजिक संस्थाओं द्वारा प्रोत्साहित करना चाहिए।

देहदानन का अर्थ है ‘देह का दान’ अर्थात किसी उत्तम कार्य में अपना जीवन ही दे देना। राजकुमार सत्त्व ने साथ शावकों को भूख से मरने से बचाने के लिए अपने शरीर का त्याग कर दिया था। दधीचि ने अपना शरीर इसलिए त्याग दिया था ताकि उनकी हड्डियों से धनुष बनाया जा सके जिससे दैत्यों का संहार हो सके। राजा शिवि ने कपोत को बचाने के लिए अपने शरीर को प्रस्तुत कर दिया था।

अनेक समुदायों में देह को नदी में प्रवाहित करने की परंपरा है, ताकि पानी में रहने वाले विभिन्न जीवों को आहार उपलब्ध हो सके। पारसी समुदाय में मृत्यु के उपरांत देह को एक ‘कुएं’ में रखने की परंपरा है, ताकि पक्षी उस देह को आहार बना सकें।
भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भारत एल्युमीनियम कं. कोरबा में करीब 2 दशक तक अपनी सेवा प्रदान कर चुके दीपक पाचपोर जो इन दिनों बतौर स्वतंत्र पत्रकार राजधानी रायपुर में लंबे अरसे से सक्रिय हैं, उन्होंने अपना देहदान करने का संकल्प लिया है और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), रायपुर को प्रदान कर शरीर विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. डी के शर्मा को स्वीकृति पत्र सौंपकर प्रमाणपत्र लिया है।

उन्होंने इस पुनीत-पुण्य योगदान को फेसबुक पर अपने टाइम लाइन में कुछ ऐसे व्यक्त किया है :-
देहदान: अपना शरीर अब विज्ञान के हवाले
विज्ञान का थोड़ा सा कर्जा वापस
दुनिया यानी प्रकृति और प्रकृति यानी विज्ञान। हमारे अस्तित्व से लेकर विकास में प्रमुख भूमिका निभाने वाले विज्ञान के ऋण को चुका पाना तो किसी के लिये भी संभव नहीं है, पर एक छोटी सी कोशिश अपुन ने कर ही ली।

आज अपना यह नश्वर शरीर मैंने एम्स यानी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, रायपुर को प्रदान कर दिया। जब तक जीना है, विश्व को खूब संवारने की कोशिश करते रहेंगे और जब भी आपसे विदा लेंगे, तो किसी शासकीय मेडिकल कॉलेज में उन चिकित्सकों और वैज्ञानिकों की सेवा में डिसेक्शन टेबल पर पहुंच जायेंगे जो ज्ञान और शोध के बल पर दुनिया को स्वस्थ और खुशहाल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। मरने के बाद मुस्कुराना संभव होता, तो अपनी करनी पर थोड़ा सा इठला लेते कि ये युवा मेडिकल छात्र आज जो सीख रहे हैं, उसका वे मानवता की सेवा में उपयोग करेंगे।
अब तो बाबा कबीर याद आ रहे हैं-
जिस मरने से जग डरे, मेरे मन में आनंद
कब मरूं कब पाऊं पूरन परमानंद
एम्स मेडिकल कॉलेज के शरीर विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. डी के शर्मा को आज मैंने स्वीकृति पत्र सौंपकर प्रमाणपत्र हासिल किया।
तो अपना यह माटी का चोला आज ही से उनकी अमानत हो गयी है जो विज्ञान के बूते दुनिया को कहीं अधिक रहने योग्य बना रहे हैं।

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