July 7, 2024

देवू: अब कोरबा में उठ रही किसानों को उनकी जमीन वापस दिलाने की मांग

कोरबा 16 मई । ऊर्जानगरी कोरबा में लगभग ढाई दशक पहले साउथ कोरिया की कंपनी देवू के लिए 300 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी, यहां के किसान अब अपनी जमीन वापस मांग रहे हैं। वहीं विभिन्न राजनैतिक दलों के नेता भी अब इस मामले को लेकर सक्रिय हो गए हैं, और किसानों को उनकी जमीन वापस दिलाने की मांग कर रहे हैं।

आपको बता दें कि देवू के प्रस्तावित बिजली कारखाने के लिए सन 1994 -95 में कोरबा शहर के रिस्दी, रिस्दा और कुछ अन्य बस्तियों के लोगो की जमीन अधिग्रहित की गई। तब स्थानीय भूस्वामियों को 3 लाख रूपये प्रति एकड़ की दर से जमीन का मुआवजा दिया गया। उस दौरान यह मुआवजा राशि भारत में सर्वाधिक थी। लोग मुआवजा लेने के बाद नौकरी और अन्य सुविधाओं का इंतजार कर रहे थे। मगर इसी बीच देवू कंपनी दिवालिया हो गयी। इस दौरान ग्रामीणों ने कुछ साल के बाद वापस अपनी जमीनों पर खेती बड़ी शुरू कर दी।

देवू कंपनी के लिए अपनी जमीन देने वाले किसानो के समर्थन में छत्तीसगढ़ किसान सभा आगे आया है। किसान सभा ने भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों के तहत कोरबा जिले में पावर प्लांट के लिए दक्षिण कोरिया की विद्युत कंपनी देवू द्वारा अधिग्रहित जमीन को मूल भूस्वामी किसानों को वापस करने की मांग की है।

इसी तरह भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय पदाधिकारियों ने भी मौके पर पहुँच कर सीमांकन का विरोध किया और कहा की देवू का इस जमीन पर अब कोई हक़ नहीं है। किसान सभा की तरह भाजपा की भी मांग है सरकार ने जिस तरह बस्तर के आदिवासियों की टाटा के लिए अधिग्रहित जमीन को वापस किया गया है, कोरबा जिले के इस मामले में भी किसानों को जमीन वापसी की प्रक्रिया को शुरू किया जाये।

छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने राजस्व विभाग द्वारा किये जा रहे सीमांकन को ही अवैध करार दिया है। उन्होंने कहा कि कोरबा जिला प्रशासन को सीमांकन का आदेश हाईकोर्ट से नहीं मिला है। इसके बाद भी देवू के आवेदन के पक्ष में जिला प्रशासन की सक्रियता से यह स्पष्ट है कि वह कॉर्पोरेट कंपनियों के पक्ष में काम कर रहा है, जबकि कोरबा जिले में सीमांकन के हजारों प्रकरण सालों से लंबित पड़े हुए हैं।

उल्लेखनीय है कि 90 के दशक में मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकर थी। उस दौरान देवू कंपनी ने सरकार को 100 करोड़ रूपये की गारंटी की रकम दी थी। कालांतर में दिग्विजय सिंह चुनाव हार गए, और इधर देवू की गारंटी की रकम का हिसाब किताब भी गायब हो गया। विभाजन के बाद मध्यप्रदेश ने इसका जिम्मा छत्तीसगढ़ पर डाल दिया। तब से यह मामला हाईकोर्ट बिलासपुर में चल रहा है।

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