November 7, 2024

कही-सुनी ( 30 MAY-21)

रवि भोई

तरह-तरह के अफसर

भूपेश सरकार ने सूरजपुर के थप्पड़मार कलेक्टर रणबीर शर्मा को तत्काल हटाकर धूल झाड़ लिया , लेकिन खबर है कि रणबीर शर्मा के दाएं-बांए चलने वाले सूरजपुर जिले के दो एसडीएम पद पर बने हैं। एक एसडीएम साहब तो डंडा लेकर चलने के लिए ख्यात बताए जाते हैं। अब नए कलेक्टर गौरव सिंह पर छवि सुधारने का भार है। सबसे मजेदार बात तो यह है कि आईएएस एसोसिएशन ने रणबीर शर्मा के आचरण की निंदा की है । लेकिन रणबीर शर्मा भानुप्रतापपुर के एसडीएम रहते रिश्वत मामले में ट्रैप हुए थे और लोगों ने उन्हें हटाने के लिए जुलूस निकाला था, तब छत्तीसगढ़ के आईएएस एसोसिएशन ने खुलकर उनका साथ देते हुए बचाव किया था । कहा जाता है आईएएस एसोसिएशन आगे नहीं आता तो वे एक पुलिस अफसर के जाल में फंस जाते। कहते हैं आदमी नहीं, समय बलवान होता है। रणबीर शर्मा समय के फेर में फंसे और सूरजपुर में एक युवक को थप्पड़ मारने के चक्कर में अपनी किरकिरी करा बैठे और पद भी गंवा दिया। रणबीर शर्मा का पुराना रिकार्ड अच्छा न होते हुए भी कलेक्टरी कैसे मिल गई, यह अब शोध का विषय बन गया है। जितना मुंह , उतनी बातें हो रही है। रणबीर का किस्सा सामने आने के बाद लोग और भी अफसरों के बारे में बातें करने लगे हैं। कहने लगे हैं इन दिनों छत्तीसगढ़ में छेड़छाड़, भ्रष्टाचार और कई तरह के आरोपों से घिरे कई आईएएस और नान आईएएस अफसरों के दोनों हाथ मलाई में है। कई रिटायर अफसर भी संविदा के बहाने मजे कर रहे हैं।

बिलासपुर के चर्चित साहब

बिलासपुर में एक स्लोगन बड़ा लोकप्रिय हो गया है और हर किसी की जुबान से सुनने को मिलता है, वह है – छत्तीसगढ़ में बघेल और बिलासपुर में गभेल। कहते हैं गभेल साहब कार्यपालक अफसर है और जिले में उनकी तूती बोलती है। साहब सालों से बिलासपुर से हिले नहीं हैं। बिलासपुर में पोस्टिंग और प्रमोशन सब कुछ। लोग कहने लगे हैं- ‘साहब को अगला प्रमोशन भी बिलासपुर में मिलने वाला है।’ साहब की जिले की नब्ज पर जबर्दस्त पकड़ के चलते उनके सीनियर भी उन्हें कुछ बोलने या उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने से डरते हैं। चर्चा है कि साहब का मन होता है , तो आफिस पहुँच जाते हैं , नहीं तो घर से ही कैमरे से सब कुछ मानिटरिंग कर लेते हैं। माना जाता है कि साहब को आजकल प्रदेश के एक मंत्री जी का संरक्षण मिला हुआ है। साहब को मंत्री और अपने आला अफसरों का आशीर्वाद है , तो फिर उनका कोई क्या बिगाड़ सकता है। जनता हलाकान हो, तो हो।

ताल ठोंकते कांग्रेस-भाजपा

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को अभी ढाई साल बचे हैं , लेकिन कांग्रेस और भाजपा के कदमताल से लगने लगा कि दोनों ही चुनाव के लिए अभी से कमर कसने लगे हैं। इस हफ्ते भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश ने राजधानी रायपुर में लगातार तीन दिन तक प्रदेश पदाधिकारियों, मोर्चा-प्रकोष्ठों के पदाधिकारियों और प्रवक्ताओं की बैठक लेकर नेताओं में जोश भरने का काम किया और कांग्रेस सरकार पर हमले करने के लिए टिप्स दिए। वैसे तो राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश ने छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी मिलने के बाद पहली बार नेताओं की मैराथन बैठक ली। पश्चिम बंगाल चुनाव निपटाकर छत्तीसगढ़ पर उनकी निगाह के कई मायने निकाले जा रहे हैं। भाजपा की बैठक से कांग्रेस के कान खड़े हो गए। कहते हैं भाजपा पर हमले और निशाना साधने के लिए कांग्रेस प्रशिक्षित लोगों की फौज खड़ी करने की दिशा में विचार कर रही है , साथ ही भाजपा पर हमला करने के लिए सरकार और संगठन के लोगों ने कांग्रेस के प्रवक्ताओं को प्रशिक्षण और रोजाना टिप्स देने की परंपरा शुरू कर दी है।

ट्राइबल अफसर का तानाशाही आदेश

गोरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में ट्राइबल डिपार्टमेंट के सहायक आयुक्त के एक तानाशाही वाले आदेश ने उनके मातहत काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को सकते में डाल दिया। सहायक आयुक्त महोदय ने 21 मई को आदेश जारी कर दिया कि ट्राइबल डिपार्टमेंट के अधीन काम करने वाले आश्रम और छात्रावास के सभी अधिकारी और कर्मचारी कोरोना का वैक्सीन लगाकर उनके आफिस को सूचित करें और जो नहीं लगवायेगा, उसे अगले महीने का वेतन नहीं मिलेगा। आदेश को लेकर बवाल मचने पर सहायक आयुक्त साहब ने अपना कदम पीछे खींच लिया और 27 मई को आदेश को रद्द कर दिया , लेकिन सहायक आयुक्त के आदेश से कई सवाल खड़े हो गए हैं। पहला तो यह कि, जब राज्य स्तर पर कोई फैसला हुए बिना जिला स्तर का कोई अधिकारी ऐसा आदेश जारी कर सकता है क्या ? दूसरा यह कि जब प्रदेश में टीकों की कमी के चलते राज्य में कई टीकाकरण केंद्र बंद करने पड़े हैं और शेष केंद्रों में लंबी कतार लग रही तो , इस तरह की तानाशाही वाला फरमान कितना न्योचित है ? इस अफसर के आदेश से तो लोग कहने लगे हैं कि छत्तीसगढ़ में तो अफसरों का ही बोलबाला है। मनमर्जी आदेश जारी करने वाले अफसर पर कार्रवाई की जगह ट्राइबल विभाग की चुप्पी से भी सवाल उठ रहे हैं।

छत्तीसगढ़ की ओर देखते कोलकाता के मारवाड़ी

चर्चा है कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी की सरकार बनने के बाद कोलकाता के मारवाड़ी बिजनेसमैन नए ठिकानों की तलाश में लग गए हैं। कहते हैं कोलकाता के मारवाड़ी बिजनेसमैन रायपुर में रह रहे अपने संबंधियों से छत्तीसगढ़ में अपनी संभावनाओं की तलाश में लग गए हैं। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में मारवाड़ियों का झुकाव भाजपा की तरफ रहा, ऐसे में नतीजों के बाद अब मारवाड़ी बिजनेसमैन टीएमसी के कार्यकर्ताओं के निशाने पर आ सकते हैं। बताया जाता है कि कम्युनिस्टों की सरकार में भी मारवाड़ी बिजनेसमैन दबाव में रहते थे। कोलकाता में बड़ा बाजार इलाके में मारवाड़ियों के बड़े कारोबार हैं। कहा जा रहा है कि कोलकाता के मारवाड़ी बिजनेसमैन छत्तीसगढ़ का रुख करते हैं, तो यहाँ रियल इस्टेट और दूसरे धंधों में तेजी आ सकती है। अब देखते हैं आगे क्या होता है ?

चर्चित आईपीएस हुए गुमनाम

जोगी-रमन फिर भूपेश सरकार में भी कुछ समय के लिए चर्चित रहे एक आईपीएस गुमनाम बताए जा रहे हैं। इस आईपीएस के काम और रणनीति की चर्चा सार्वजनिक जगहों से लेकर अलग-अलग मंचों पर हुआ करती थी, लेकिन वह आईपीएस आजकल कहाँ हैं और क्या कर रहे हैं, लोगों को पता ही नहीं है। चर्चा यह भी है कि पिछली सरकारों और इस सरकार में भी शुरूआती दिनों में चर्चा में रहे आईपीएस आजकल लोगों के जेहन में नहीं हैं, क्योंकि वे ऐसे पदों पर बैठे हैं , जिनसे लोगों का कोई सीधा वास्ता ही नहीं है। कहते हैं न समय ही लोगों को बलवान और चर्चित बनाता है और समय ही गिराता भी है।लगता है समय ने ऐसा कुछ खेल इन अफसरों के साथ खेला है ।

फिलहाल कलेक्टर और एसपी के ट्रांसफर नहीं

छत्तीसगढ़ में कलेक्टर और एसपी के ट्रांसफर को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म रहता है। सोशल मीडिया पर तरह-तरह के कयास लगाए जाते हैं। वैसे छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार ने पिछले साल 26 मई को 21 कलेक्टरों की पोस्टिंग की थी, हालांकि इनमें से कुछ बदल गए हैं। कुछ जिलों में ढाई साल से कोई बदलाव नहीं हुआ है। इस कारण कलेक्टरों में हेरफेर की ख़बरें उड़ती रहती हैं। कई जिलों में एसपी भी डेढ़ -दो साल से यथावत हैं। कुछ के जिले बदलने और कुछ को मुख्यालय भेजे जाने की ख़बरें विधानसभा सत्र से पहले आईं थी। पर कोरोना ने हेरफेर को प्रभावित कर दिया। अब राज्य में कोरोना संक्रमण की दर 4 फीसदी रह गई और कई जिले अनलॉक हो गए हैं। इस कारण कलेक्टर-एसपी में परिवर्तन की हवा बहने लगी। कहते हैं सरकार कलेक्टर और एसपी में कुछ बदलाव के मूड में है, लेकिन जून के दूसरे हफ्ते के बाद ही मामला कुछ आगे बढ़ने की संभावना है।

(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

(डिस्क्लेमर – कुछ न्यूज पोर्टल इस कालम का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी से आग्रह है कि तथ्यों से छेड़छाड़ न करें। कोई न्यूज पोर्टल कोई बदलाव करता है, तो लेखक उसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। )

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