रक्षा बंधन पर कर लीजिए ये 6 काम, पाएंगे 7 फायदे ! जानें क्या है – भद्राकाल?
वैसे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पद, नाग और किस्तुघ्न, ये ग्यारह करण होते हैं। विष्टि का ही दूसरा नाम भद्रा है। काल की गणना में इन करणों का बहुत महत्व होता है। लेकिन पुराणों के अनुसार भद्रा को सूर्य देव की पुत्री और शनि देव की बहन बताया गया है। इसे भी अपने भाई शनि की तरह क्रूर माना जाता है। इसलिए भद्राकाल में शुभ कार्यों का निषेध बताया गया है। लेकिन भद्रा काल में तंत्र आदि का अनुष्ठान शुभ माना जाता है।
लेकिन इस बार भद्रा काल राखी से अगले दिन यानी 23 अगस्त, सोमवार को सुबह साढ़े पांच बजे से सवा छह बजे तक रहेगा। इसलिए 22 अगस्त को राखी वाले दिन भद्रा का स्पर्श न होने से कोई संशय मन में नहीं रखना चाहिए। राहुकाल 22 अगस्त को शाम सवा पांच बजे से लगभग सात बजे तक रहेगा। इसलिए इन दोनों समयावधि को छोड़कर पूरा दिन अपनी सुविधानुसार राखी का पर्व मनाया जा सकता है। लेकिन फिर भी बहुत सारे लोग शुभ मुहूर्त के विषय में जानना चाहते हैं। उनकी जानकारी के लिए बता दें कि इस बार पूर्णिमा 21 अगस्त को शाम सात बजे आरंभ होगी और अगले दिन यानी 22 अगस्त की शाम साढ़े पांच बजे तक रहेगी।
ज्योतिष के विद्वानों का मानना है कि इस बार रक्षा बंधन पर घनिष्ठा नक्षत्र और कुंभ राशि में चंद्रमा और गुरु के स्थित रहने के कारण गजकेसरी योग बनता दिखाई दे रहा है। ऐसा योग बहुत वर्षों बाद बन रहा है। इसलिए इन सब शास्त्रीय योगों को ध्यान में रखते हुए राखी का शुभ मुहूर्त प्रात: 9:35 बजे से 11:07 बजे के बीच और उसके बाद 11:57 बजे से 12:50 बजे के बीच अत्यंत ही शुभ माना जाएगा। जो लोग इस अवधि में राखी न बांध पाएं उन्हें भी चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। वे सुबह 6 बजे से लेकर रात 9 बजे तक राहुकाल (शाम 5:15 से 6:59) को छोड़कर कभी भी अपनी सुविधानुसार राखी बांध सकते हैं।
रक्षाबंधन कथा
इस व्रत के संदर्भ में एक कथा प्रचलित है- प्राचीनकाल में एक बार 12 वर्षों तक देवासुर-संग्राम होता रहा, जिसमें देवताओं का पराभव हुआ और असुरों ने स्वर्ग पर आधिपत्य कर लिया। दुखी और चिन्तित देवराज इन्द्र अपने गुरु बृहस्पति के पास गए और कहने लगे कि इस समय न तो मैं यहां ही सुरक्षित हूं और न ही यहां से कहीं निकल ही सकता हूं। ऐसी दशा में मेरा युद्ध करना ही अनिवार्य है, जबकि अब तक के युद्ध में हमारा पराभव ही हुआ है। इस वार्तालाप को इन्द्राणी भी सुन रही थीं। उन्होंने कहा कि कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा है, मैं विधानपूर्वक रक्षासूत्र तैयार करूंगी, आप स्वस्ति-वाचनपूर्वक ब्राह्मणों से बंधवा लीजिएगा। इससे आप अवश्य विजयी होंगे। दूसरे दिन इन्द्र ने रक्षा-विधान और स्वस्ति-वाचनपूर्वक रक्षाबंधन करवाया। इसके बाद ऐरावत हाथी पर चढ़कर जब इन्द्र रणक्षेत्र में पहुंचे तो असुर ऐसे भयभीत होकर भागे जैसे काल के भय से प्रजा भागती है। रक्षा विधान के प्रभाव से उनकी विजय हुई। तब से यह पर्व मनाया जाने लगा। इस दिन बहनें मंगल विधान कर भाइयों की कलाई में रक्षासूत्र (राखी) बांधती हैं।