November 22, 2024

कही-सुनी ( 26 SEPT-21)

रवि भोई

दो की लड़ाई में तीसरे को फायदे की आस

भूपेश बघेल ही मुख्यमंत्री बने रहते हैं या फिर टीएस सिंहदेव को कमान मिलेगी? इसको लेकर राज्य में अभी भारी ऊहापोह की स्थिति है। पर पंजाब में जिस तरह दो की लड़ाई में तीसरे को फायदा हो गया, उसको देखते हुए छत्तीसगढ़ के कांग्रेस विधायकों और नेताओं में नई आस जग गई है और वे मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हो गए हैं। कहा जा रहा है कि दो मंत्री और दो विधायक दिल्ली दरबार में हाजरी दे आए हैं। यह तो साफ़ है कि छत्तीसगढ़ में नेतृत्व को लेकर कांग्रेस में नूरा-कुश्ती का खेल चल रहा है। दो की लड़ाई में तीसरे को फायदे की आस में यहां भी मंत्री- विधायक जुगाड़ देख रहे हैं , जैसा कि पंजाब में हुआ। कहते हैं राज्य के दो मंत्री और एक विधायक पार्टी के बड़े नेताओं के सामने दावेदारी भी पेश कर आए हैं, यह अलग बात है कि उनकी गांधी परिवार के किसी सदस्य से मुलाक़ात नहीं हो पाई है। परिणाम जो भी सामने आए। फिलहाल तो नेता-जनता सभी लोग कांग्रेस हाईकमान की तरफ टकटकी लगाए हुए हैं।

भाजपा नेता की रणनीति

खबर है कि भाजपा अगले विधानसभा चुनाव में सभी 90 विधानसभा सीटों पर नए चेहरे उतारने की रणनीति पर काम कर रही है। कहते हैं भाजपा संगठन ने अपने पुराने नेताओं को इसका संकेत भी दे दिया और उन्हें नए चेहरों को जितवाने के लिए काम करने को कहा है। सत्ता में आने पर उनकी सेवाओं के सम्मान की बात कही जा रही है। कहते हैं शीर्ष संगठन की नई रणनीति को भांपकर भाजपा के एक विधायक अभी से अपनी जगह अपने बेटे को प्रोजेक्ट करने में लग गए हैं। कहा जा रहा है कि वे अपने पुत्र को अपने विधानसभा क्षेत्र में भी अपने साथ घूमाने लगे हैं। कहते हैं ऐसे ही भाजपा के और कई नेता भी अपनी सीट बचाने की जुगत में लगे हैं। अब देखते हैं आगे क्या होता है ?

प्रत्याशी तलाशते कांग्रेस नेता

कहते हैं कांग्रेस के एक बड़े नेता गुपचुप तरीके से अपने इलाके में अगले विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की तलाश में लग गए हैं। कहा जा रहा है कि अपने इलाके में कांग्रेस नेता की पकड़ जबरदस्त है और उनके सहयोग के बिना कांग्रेस उम्मीदवारों की नैया पार होना संभव नहीं है। इसे कांग्रेस के दूसरे नेता भी जानते हैं, फिर भी, सत्ता में आने के बाद उनके इलाके के कुछ नेता उनसे दूर हो गए या पाला बदल लिया । उनके बदले में वे नए चेहरों की तलाश में लग गए हैं। अब विधानसभा चुनाव के वक्त ही नया गणित और समीकरण नजर आएगा ?

बिलासपुर बना कांग्रेस की गुटबाजी का अखाडा

कहते हैं बिलासपुर में शराब माफिया की जगह अब कांग्रेस नेताओं ने ले लिया है। जब राज्य में शराब के धंधे में ठेकेदारों का बोलबाला था, तब बिलासपुर में शराब कारोबारियों में आपसी रंजिश चलती थी और उनके पंडों के बीच गोलीबारी होती थी। अब बिलासपुर में कांग्रेस के नेताओं में आपसी रंजिश चरम पर पहुंच गई है। यहां विधायक शैलेश पांडे और पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव की लड़ाई जगजाहिर है। जिला कांग्रेस कमेटी ने अपने ही विधायक को छह साल के लिए निष्कासित करने का प्रस्ताव पारित कर मर्यादा ही लांघ ली है। इस पर तो खूब राजनीति हो रही है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस की गुटबाजी में कानून-व्यवस्था तार-तार हो गई। न्यायधानी में एक-दूसरे के समर्थक लगातार टकरा रहे हैं।

पीठाधीश्वर की शरण में कांग्रेस नेता

चर्चा है कि राज्य में राजनीतिक उठापटक के बीच रायपुर आए निरंजनी अखाड़े के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशनंद गिरी जी महाराज की शरण में कांग्रेस के कुछ बड़े नेता पहुंचे। महाराज जी रायपुर से जगदलपुर भी गए। वहां भी उनसे कुछ नेता मिले। बाद में महाराज जी को एक कांग्रेसी नेता के साथ विशेष विमान से जगदलपुर से प्रयागराज भेजा गया।कहते है महाराज जी की सेवा में सरकारी विमान अर्पित कर दिया गया, जबकि सरकारी विमान में मुख्यमंत्री और मंत्री ही सफर कर सकते हैं या फिर सरकारी अधिकारी। महाराज जी से कांग्रेसी नेताओं की मेल-मुलाकात से लेकर उन्हें विशेष विमान में प्रयागराज भेजना सुर्ख़ियों में है।

अरविंद नेताम की पूछपरख

कहते हैं कांग्रेस के आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम को राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति चयन समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया है। राज्यपाल ने श्री नेताम को संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय सरगुजा के लिए कुलपति चयन की कमेटी में भी रखा था। कहते हैं कि इंदिरा गांधी के कैबिनेट में कृषि राज्य मंत्री रह चुके श्री नेताम को भूपेश राज में न तो सत्ता में और न ही संगठन में खास महत्व मिल पा रहा है। कहा जा रहा है सिलगेर कांड के बाद तो और भी दूरी बढ़ गई है। अच्छी बात है कि बुजुर्ग आदिवासी नेता को राजभवन याद कर रहा है और उनके अनुभव का लाभ कुलपति चयन में ले रहा है। पर बताते हैं दो-दो विश्वविद्यालयों के कुलपति चयन में नेताम का नाम सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोगों के गले नहीं उत्तर रहा है।

नेता का नीयत डोला

कहते हैं एक राष्ट्रीय पार्टी से जुड़े पूर्व पार्षद की अपने राजनीतिक आकाओं के धन पर नीयत ख़राब हो गई है। खबर है कि नोटबंदी के दौरान पूर्व पार्षद ने अपने राजनीतिक आकाओं के करीब 50 लाख रुपए को व्हाइट में बदलने की खातिर लिए थे। कुछ राशि तो पार्टी फंड का भी बताया जा रहा है। पर अब तक पूर्व पार्षद ने पैसे नहीं लौटाए हैं। कहा जा रहा है कि पूर्व पार्षद अपने राजनीतिक आकाओं को खूब छका रहा है लेकिन उसे राजनीतिक आका कुछ बोल नहीं पा रहे हैं । बताते हैं पूर्व पार्षद एक पूर्व विधायक के खासमखास हैं। पूर्व विधायक पार्टी संगठन में जिम्मेदारी के पद पर हैं, माना जा रहा है इस कारण भी पूर्व पार्षद के हौसले बुलंद हैं ।

वरिष्ठता पर जुगाड़ भारी ?

लगता है वन विभाग में जुगाड़ के सामने वरिष्ठता बौना साबित हो गया। तभी तो सीनियर के रहते जूनियर एसडीओ फारेस्ट संजय त्रिपाठी को मरवाही का प्रभारी डीएफओ बना दिया गया है। इससे सीनियर अधिकारी जूनियर के अधीन हो गया है। इसको लेकर बवाल मचा है । पीड़ित गोरेला उपवनमण्डल के एसडीओ केपी डिण्डोरे हल्ला मचाए हुए हैं। मरवाही के विधायक डॉ. केके ध्रुव और गोरेला-पेंड्रा- मरवाही जिले के कांग्रेस अध्यक्ष मनोज गुप्ता ने त्रिपाठी को हटाने के लिए वन मंत्री को पत्र लिखा है। डिण्डोरे 2018 में एसडीओ प्रमोट हुए, जबकि त्रिपाठी जनवरी 2020 में एसडीओ बने हैं। कहते हैं त्रिपाठी के खिलाफ शिकायतें भी पेंडिग हैं। अब देखते हैं कौन किस पर भारी पड़ता है?

(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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