निरंतर प्रयासों से करेंगे सामाजिक परिवर्तन: राम
कोरबा 20 अक्टूबर। राष्ट्र और समाज के हित में अपने विशिष्ट कार्यों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आयु 96 वर्ष हो गई है। वर्ष 1925 में विजयादशमी के शुभ अवसर पर इसकी स्थापना हुई थी। इस निमित्त विजयादशमी के साथ प्रकट उत्सव मनाने की परंपरा जारी है । कोरबा में संघ के भगत सिंह उप नगर ने अपना प्रकट उत्सव मंगलवार को मुड़ापार रामलीला मैदान परिसर में आयोजित किया। उप नगर क्षेत्र से संबंधित स्वयं सेवकों की प्रत्यक्ष भागीदारी निर्धारित गणवेश के साथ इस आयोजन में सुनिश्चित हुई।
आज का यह आयोजन सिविल इंजीनियर राज कुमार अग्रवाल के मुख्य आतिथ्य में आयोजित हुआ जिसमें भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व प्रबंधक राम किशोर श्रीवास्तव मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित हुए। कार्यक्रम का शुभारंभ सनातन संस्कृति के प्रतीक भगवा ध्वज के आरोहण और मंच पर विराजित भारत माता, संघ के आद्य संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार और माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर श्रीगुरुजी के पट चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुआ। ध्वज प्रणाम के पश्चात कार्यक्रम की प्रस्तावना का पठन किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि श्री अग्रवाल ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम विपरीत परिस्थितियों में देश भर में सेवा कार्यों के लिए चर्चित है। अनुशासित संगठन के रूप में उसकी पहचान स्थापित है। राष्ट्र निर्माण के लिए इस संगठन से जुड़कर नागरिक श्रेष्ठ कार्य कर रहे है। उन्होंने राष्ट्रीय चरित्र के संदर्भ में जापान की प्रगति का उदहारण प्रस्तुत किया। श्री अग्रवाल ने श्रीराम मंदिर निर्माण को राष्ट्रीय गौरव का विषय भी बताया। अगले सोपान में भगत सिंह उपनगर के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र एसईसीएल कॉलोनी, शारदा विहार, अमरैया, मुड़ापार , ट्रांसपोर्ट नगर ,पावर हाउस रोड, मुख्य मार्ग , रामसागर पारा राताखार, सीतामढ़ी और अन्यान्य क्षेत्रों के स्वयंसेवकों के द्वारा शारीरिक अभ्यास, दंड संचालन, आसन का प्रदर्शन किया गया। इन सभी गतिविधियों को श्रेणीवार क्रम से संपादित किया गया। इसके माध्यम से स्वसुरक्षा और समाज सुरक्षा के साथ संगठन की आवश्यकता और उसके महत्व को रेखांकित करने का प्रयास किया गया। विजयादशमी के प्रकट उत्सव कार्यक्रम में भगत सिंह उपनगर के अंतर्गत निवास करने वाले बाल स्वयंसेवकों ने भी अपनी सक्रिय भागीदारी दर्ज कराई। सुभाषित अमृत वचन और एकल गीत के साथ आज के महत्वाकांक्षी आयोजन ने अपने विस्तार को प्राप्त किया। कार्यक्रम का समापन मातृभूमि की प्रार्थना के साथ किया गया।संचालन उत्तम पाठक और धन्यवाद ज्ञापन बलभद्र सिंह ठाकुर ने किया। कार्यक्रम में गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति रही।
0 निरंतर प्रयासों से करेंगे सामाजिक परिवर्तन: राम
विजयदशमी प्रकट उत्सव कार्यक्रम को मुख्य वक्ता के रूप में नगर सेवा प्रमुख और भारतीय स्टेट बैंक के रामपुर कोरबा शाखा के पूर्व प्रबंधक राम किशोर श्रीवास्तव ने संबोधित किया। उन्होंने स्वयं सेवकों से संवाद स्थापित करते हुए कहां की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के साथ से अब तक सामाजिक जीवन के श्रेष्ठ मूल्यों की प्रतिष्ठापना के लिए काम कर रहा है। इतने बरसों में हमने अपने प्रयासों से समाज में कई अच्छे परिवर्तन करने में सफलता प्राप्त की है। भारत की प्रतिष्ठा को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किस तरह चमकाया जाए यह हर भारतीय का कर्तव्य है। इसके लिए सभी को अपने स्तर पर अपनी सर्वश्रेष्ठ भूमिका का निर्वहन करना चाहिए। श्री श्रीवास्तव ने कहा कि बेहतर समाज की कल्पना निश्चित रूप से एक अनिवार्य विषय वस्तु है और इसके लिए हर किसी के मन में कल्पना होती है और इस सच को साकार करने की क्षमता भी। भारत में रहने वाले नागरिकों को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि वे प्राचीनतम देश के हिस्से हैं और जिसकी सभ्यता अत्यंत प्राचीन है। उन्होंने कहा कि जीवन में नैतिक मूल्यों की मजबूती, समरसता, सामाजिक सुदृढ़ीकरण के साथ साथ हमेशा अपने राष्ट्र के प्रति सकारात्मक चिंतन किया जाना जरूरी है । निश्चित रूप से इन मापदंडों के प्रति हम सभी की निष्ठा होनी चाहिए। अच्छे राष्ट्र की स्थापना के लिए यह सभी आवश्यक मापदंड है। और, हमारी मान्यता यह भी है कि कोई भी राष्ट्र तभी सशक्त और शक्तिशाली हो सकता है जबकि उसके नागरिक हर दृष्टिकोण से बेहतर कर पाने की इच्छा शक्ति रखते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं के वैश्विक विस्तार और सकारात्मक प्रभाव को रेखांकित करने के साथ साफ किया कि विपरीत स्थिति में हर तरह के काम करने के गुण छोटे छोटे शारिरिक, मानसिक कार्यक्रम से विकसित किये जाते है। हमारा यही गुणवत्तापूर्ण कार्य समाज व देश के प्रति जारी है। प्रकट उत्सव इसी को बताने और अधिकतम लोगों को अच्छे कार्य से जोड़ने के लिए प्रेरित करने का प्रयास है। आपने साधनों के बजाय सामर्थ्य की उपयोगिता पर जोर दिया।