सिटी कोतवाली में दर्ज 11 लाख 70 हजार की लूट का मामला पुलिस जाँच में निकला फर्जी।
- एक माह पूर्व दर्ज कराई गई थी एफ आई आर।
- प्रार्थी ने स्वीकारा शराब के नशे में दर्ज कराई थी रिपोर्ट।
शुभांशु शुक्ला/मुंगेली। जिले के सिटी कोतवाली थाना में करीब 1 माह पूर्व में 11 लाख 70 हजार रुपये की लूट का मामला दर्ज किया गया था जो कि पुलिस जाँच में फर्जी पाया गया है। दिनांक 26 जून 2020 को ग्राम जुझारभाटा निवासी आशीष दुबे के द्वारा मुंगेली के सिटी कोतवाली थाना में 11 लाख 70 हजार रुपए की लूट होने की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी जिस पर पुलिस द्वारा अपराध क्रमांक 353/2020 धारा 392 भादवि कायम कर जाँच शुरू की गई थी। घटना की सूचना मिलने पर पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया था,जिसके बाद मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस अधीक्षक डी. श्रवण ने तत्काल अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक कमलेश्वर चंदेल एवं मुंगेली एसडीओपी तेजराम पटेल के नेतृत्व में टीम गठित कर पतासाजी शुरू कर दी थी। जांच टीम ने साइबर सेल की मदद से अनेकों लोगों से तथा लूट व चोरी के पुराने आरोपियों से तस्दीक की। विवेचना के दौरान कई विरोधाभासी बातें सामने आने पर जाँच टीम अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंची कि पूरा मामला ही फर्जी है।
इन विरोधाभासों को लेकर जब प्रार्थी से पूछताछ की गई तो प्रार्थी ने घटना के दिन शराब के नशे में होना तथा ऑफिस से ही पैसे लेकर नही निकलना स्वीकार किया। प्रार्थी ने स्वीकारा कि उसके साथ कोई लूट की घटना नहीं घटित हुई है तथा इस संबंध में प्रार्थी द्वारा शपथ पत्र भी दिया गया है। इस मामले में पुलिस प्रशासन ने बताया कि प्रार्थी द्वारा घटना की रिपोर्ट घटना घटित होने के 3 से 4 घंटे बाद दर्ज कराई गई थी जिसमें प्रार्थी ने खुद के साथ मारपीट होने की बात कही थी परंतु प्रार्थी के शरीर में ना ही कोई चोट के निशान थे ना ही उसके कपड़े में धूल मिट्टी लगी हुई थी। प्रार्थी के द्वारा घटना का समय शाम 7:00 बजे होना बताया गया था, जब वह ऑफिस से लौट रहा था इसी बीच अंधेरे का फायदा उठाकर उससे लूट की घटना को अंजाम दिया जाना बताया गया था परंतु जांच में शाम 7:00 बजे तक अंधेरा नहीं होने की बात सामने आई। इसी प्रकार विवेचना करने पर प्रार्थी के मुनीम व अन्य वर्करों ने बताया कि ऑफिस बंद करने के समय प्रार्थी ने कोई बैग नहीं रखा था, जाँच करने पर पुलिस को ऑफिस में ही रखे बैग में 1,46,000 रुपये मिले थे। जाँच में सामने आए इन सभी तथ्यों के मद्देनजर पुलिस इस निष्कर्ष में पहुंची कि प्रार्थी द्वारा झूठी एफ आई आर दर्ज कराई गई थी।