CG Housing Board : तालपुरी प्रोजेक्ट अब नगर निगम के हवाले..घोटालों की जाँच हुई रफा दफा
सरकार की अनदेखी से छग हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी निरंकुश और बेखौफ
होटलिंग और ट्रेवलिंग में खर्च कर देते हैं करोड़ो रुपये, प्रधान मंत्री कार्यालय भी दे चूका है जाँच के आदेश
रायपुर। हाउसिंग बोर्ड की सबसे महत्वाकांक्षी और घोटालों के लिए चर्चा में रही तालपुरी हाउसिंग प्रोजेक्ट को राज्य सरकार ने दुर्ग नगर निगम के हवाले कर दिया है। इसके साथ ही तालपुरी प्रोजेक्ट से हाउसिंग बोर्ड का नियंत्रण समाप्त हो गया है, इससे भी बड़ी बात यह है कि सरकार के इस फैसले से इस योजना में बड़े-बड़े घोटाले कर चर्चा में रहने वाले बोर्ड के अधिकारियों को भी बड़ी राहत मिल गई है। प्रोजेक्ट के निगम के नियंत्रण में चले जाने के बाद घोटालों की फाइलें हमेशा के लिए बंद हो जाएंगी और भविष्य में जांच व कार्रवाई की मांग की आवाजें नहीं उठेंगी।
बोर्ड में बरसों से जमें अधिकारियों और तत्कालिन पदाधिकारियों ने तालपुरी प्रोजेक्ट में करोड़ों का घपला किया है, कैग से लेकर विभागीय जांच में इसकी पुष्टि हुई लेकिन कार्रवाई सिफर रही। घोटाले करने वाले अधिकारी प्रमोट होकर मजे करते रहे। बोर्ड के पदाधिकारियों और अधिकारियों की सांठगांठ से तमाम अनियमितताएं की गई। पिछली और वर्तमान सरकार अनियमितताओं के सामने आने के बाद भी बोर्ड और भ्रष्ट अधिकारियों पर मेहरबान रही हैं, कारण कि इससे सरकार-प्रशासन में बैठे लोग भी उपकृत होते रहे हैं। इससे सीधी कार्रवाई और जांच की जरूरत नहीं समझी जा रही हैं। विगत 15 सालों से हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों ने मनमाने ढंग से बगैर किसी सर्वे और नोटिफिकेशन के अंधाधुन मकानों का निर्माण कराया और जहां मकान नहीं बिकने की उम्मीद थी वहां पर भी लाखों करोड़ों रुपए फंसाए और ठेकेदारों को अनाप-शनाप भुगतान किए गए। इसका परिणाम यह हुआ कि हाउसिंग बोर्ड के सभी मकान घटिया व दोयम दर्जे के बन गए और विक्रय नहीं होने से खंडहर में तब्दील हो रहे हैं।
हाउसिंग बोर्ड के मकानों को खरीददार भी नहीं मिल रहें हैं। मजबूरी में 15-20 फीसदी छूट का प्रलोभन देकर मकान विक्रय करने की जरूरत पड़ रही है। समय-समय पर हाउसिंग बोर्ड की योजनाओं में अनियमितता को उजागर किया जाता रहा है, जिसे संबंधित विभाग, जांच एंजसिंयों से लेकर बोर्ड आयुक्त तक के संज्ञान में लाया गया है बावजूद अनियमितताओं पर किसी तरह की कार्रवाही नहीं की गई। बोर्ड द्वारा कई मामलों में विभागीय जांच व कार्रवाही की जानकारी मांगने पर भी किसी तरह के दस्तावेज उपलब्ध होने से ही इंकार कर दिया गया। सूचना के अधिकार से मांगी गई जानकारी पर बोर्ड ने तालपुरी प्रोजेक्ट से संबंधित कोई दस्तावेज होने से ही इंकार कर दिया। जबकि अन्य स्रोतों से प्राप्त प्रोजेक्ट पर कैग रिपोर्ट से लेकर विभागीय जांच के दस्तावेज भी हासिल किए गए हैं जिसे बोर्ड और प्रशासन के संज्ञान में भी लाया गया, जिस पर कार्रवाही की जरूरत नहीं समझी गई। बोर्ड के घोटालों को लेकर पीएमओ से भी राज्य सरकार को कार्रवाई के लिए कहा गया है बावजूद सरकार बोर्ड पर मेहरबान हैं। हाल ही में एनएमडीसी के नियानार प्रोजेक्ट जिसे हाउसिंग बोर्ड से वापस ले लिया गया है उसके लिए भी बोर्ड के अधिकारियों ने 2.61 करोड़ रुपए खर्च कर दिये। अधिकारियों की मनमानी का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है। जिस प्रोजेक्ट को बोर्ड धरातल पर नहीं ला सका हो और हाथ छिन गया हो उसके लिए बोर्ड के अधिकारियों ने पानी की तरह पैसे खर्च किए। आरटीआई के जवाब में बोर्ड ने बताया है कि होटलिंग, ट्रेवलिंग और खाने-पीने में ही इतनी बड़ी राशि खर्च की गई है। हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों की भर्राशाही का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि बगैर किसी अनुमति और बजट के बड़ी-बड़ी रकम मनमाने ढंग से चाय-पानी, ट्रैवलिंग में खर्च किए गए और आर्किटेक्ट को बिना किसी कार्य के ही दो करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया गया।