विश्व में बचे हैं मात्र 4 हजार बाघ, करना होगा संरक्षण
0 स्याहीमुड़ी स्कूल में मनाया गया बाघ दिवस
कोरबा। भारत में बाघों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। बढ़ते शहरीकरण और सिमटते जंगलों ने बाघों से उनका आशियाना छीन लिया है। मानव ने भी बाघों के साथ क्रूरता बरतने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बाघ पारिस्थितिक पिरामिड तथा आहार श्रृंखला में सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
उक्त बातें हाईस्कूल स्याहीमुड़ी की प्राचार्य फरहाना अली ने स्कूल परिसर में भुंइया इको क्लब के तत्वावधान में आयोजित बाघ दिवस के अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि विश्व वन्यजीव कोष के अनुसार पूरे विश्व में लगभग चार हजार बाघ बचे हैं, जिनमें सबसे ज्यादा तीन हजार छह सौ बाघ भारत में हैं। इको क्लब प्रभारी प्रभा साव एवं पुष्पा बघेल की उपस्थिति में बाघ दिवस के अवसर पर बाघों के संरक्षण से संबंधित स्लोगन एवं लघु नाटिका प्रस्तुत की गई। छात्रों ने बाघ का मुखौटा एवं बाघ का ड्रेस पहनकर बाघों के साथ हो रही बर्बरता को दिखाने का प्रयास किया। इसमें गरिमा, आरती, शशांक, पीयूष, गणेश, रिमझिम, लक्ष्मी, नितिन, मंदाकिनी, दुर्गेश्वरी, जान्हवी ने सक्रिय सहभागिता निभाई। प्रभा साव ने बताया कि बाघ को दुनिया की सबसे बड़ी बिल्ली होने की प्रतिष्ठा हासिल है। उन्होंने बताया कि बाघ का वैज्ञानिक नाम पैंथेरा टाइग्रेस है। रायल बंगाल टाइगर सबसे बड़ा टाइगर है। पिछली शताब्दी में सभी जंगली बाघों में से 97 प्रतिशत गायब हो गए थे। अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस का उद्देश्य इस संख्या को बिगड़ने से रोकना है। 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया था, जिसमें आंशिक सफलता मिली है। व्याख्याता पुष्पा बघेल ने बताया कि बाघों के विलुप्त होने का कारण उनकी खाल, नाखून, दांत के लिए अवैध शिकार, वनों की अंधाधुंध कटाई, शिकार की कमी तथा उनके आवास को नुकसान पहुंचाना है।