दीपका विस्तार परियोजना में मुआवजा और रोजगार की धीमी रफ्तार
0 51 फीसदी से अधिक रोजगार एवं 62 फीसदी से ज्यादा लंबित मुआवजा प्रकरण
कोरबा। एसईसीएल दीपका विस्तार परियोजना में भी नौकरी की आस में अपने पुरखों की बेशकीमती जमीन देने वाले प्रभावित पात्र भू-विस्थापित परिवार भू-अर्जन के बाद भी रोजगार, मुआवजा के लिए भटक रहे हैं। जहां 51 परिवार रोजगार की राह तक रहे, वहीं 384 परिवार मुआवजा वितरण के लिए की आस लगाए बैठे हैं। 51 फीसदी से अधिक रोजगार एवं 62 फीसदी से अधिक लंबित मुआवजा प्रकरण के आंकड़ों ने प्रबंधन की धुलमुल कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
सूचना के अधिकार के तहत एसईसीएल दीपका परियोजना से लंबित रोजगार एवं मुआवजा को मिले दस्तावेज प्रबंधन की नाकामी साबित करने के लिए काफी है। उपलब्ध जानकारी अनुसार एसईसीएल दीपका विस्तार परियोजना क्षेत्रांतर्गत कोयला उत्खनन हेतु सुवाभोड़ी, मलगांव एवं रेंकी की भूमि का अर्जन के एवज में रोजगार के लिए जिला पुनर्वास समिति की अनुशंसा से लागू कोल इंडिया पुनर्वास नीति के प्रावधानों के तहत ग्रामों की सकल निजी भूमि के प्रति 2 एकड़ के हिसाब से कुल सृजित रोजगार को कलेक्टर कोरबा द्वारा अनुमोदित अथवा संशोधित अर्जित भूमि के खातों की घटते क्रम की सूची के कट ऑफ प्वॉइंट तक रोजगार दिए जाने का प्रावधान रखा गया है। एसईसीएल दीपका परियोजना की ओर से उपलब्ध कराई गई जानकारी अनुसार परियोजना से प्रभावित इन गांवों में कुल 99 भू-विस्थापित रोजगार (नौकरी) के लिए पात्र पाए गए थे। प्रबंधन ने इनमें से 48 को नौकरी तो दे दी, लेकिन 51 भू-विस्थापित अभी भी नौकरी की आस में संघर्ष कर रहे। हालांकि इनमें से 27 प्रकरण प्रकियाधीन हैं। वहीं बात करें मुआवजा की तो 614 प्रभावित खातेदार मुआवजा के लिए पात्र पाए गए थे। इनमें से बड़ी ही विडंबना कहें कि महज 230 प्रभावित खातेदारों को ही मुआवजा मिला। अभी भी 384 मुआवजा प्रकरण लंबित हैं। इस तरह देखें तो रोजगार के जहां 51 फीसदी प्रकरण तो मुआवजा के 62 फीसदी प्रकरण लंबित हैं। प्रभावितों ने लंबित नौकरी, मुआवजा की आस में एसईसीएल प्रबंधन के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। दफ्तर मुख्यालयों की दौड़ लगाई। इस बीच तमाम जनआंदोलन के बीच प्रशासन के मध्यस्थता के बीच प्रभावितों को शीघ्र लंबित नौकरी, मुआवजा दिए जाने का आश्वासन मात्र मिला, लेकिन तमाम आश्वासन के बाद भी नतीजे सिफर रहे। भू-विस्थापित आज भी ठगा सा महसूस कर रहे। कई पात्र परिवार आज संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे।