प्रत्याशियों, राजनीतिक दलों व लोगों के बीच जीत-हार को लेकर कयासों का दौर शबाब पर
0 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद, फैसला तीन दिसंबर को
कोरबा। विधानसभा चुनाव होने के बाद पानठेला, सार्वजनिक व जहां चार से पांच लोग जुट जा रहे हैं, वहां केवल एक ही चर्चा हो रही है कि आखिर कौन जीत रहा है।
विधानसभा चुनाव खत्म हो चुका है। प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है। अब हर तरफ कयासों का दौर चल रहा है, कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ हर प्रत्याशी भी अपनी जीत का दावा कर रहा है। एक भी प्रत्याशी अब तक ऐसा सामने नहीं आया है, जिसने खुद को हारा हुआ बताया हो। अब दावे जो भी हो, लेकिन इन सबकी किस्मत 3 दिसंबर को ही खुलेगी। ऐसा लग रहा है कि जीत सबके करीब है और हार 3 दिसंबर तक गले से दूर है। विधानसभा चुनाव हुए एक सप्ताह बीत गए। कोरबा के चारों विधानसभाओं के 51 प्रत्याशियों के लिए जिले में 4 लाख 77 हजार 285 मतदाताओं ने ईवीएम में बटन दबाकर वोट दिया है। वोटिंग के बाद प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम मशीन में कैद हो गई। मतगणना में अभी समय है। इससे पहले हर तरफ कयासों का दौर चल रहा है। पार्टी नेताओं से लेकर आम लोग भी जीत हार के गणित लगाने में लगे हैं। प्रत्याशियों ने भी पोलिंग एजेंटो की रिपोर्ट के आधार पर खुद की जीत तय कर ली।
0 भाजपा-कांग्रेस के गढ़ वाले बूथों में बंपर वोटिंग
17 नंवबर को मतदान के बाद तीन दिसंबर को मतगणना होनी है। दोनों ही प्रमुख पार्टी भाजपा, कांग्रेस के अलावा आप पार्टी भी अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। पिछले कुुछ चुनावों में वोटिंग का ट्रेंड देखा जाए तो कांग्रेस के गढ़ में इस बार भी अधिक वोटिंग हुई तो वहीं भाजपा के गढ़ वाले बूथों में बंपर वोट पड़े हैं। हालांकि कई बूथ ऐसे भी हैं जहां वोटिंग कम हुई है। इसका नुकसान दोनों ही पार्टी को उठाना पड़ेगा। इस बार के वोटिंग को देखें तो शिक्षित और नौकरीपेशा वोटरों की तुलना में बस्तियों से अधिक वोटिंग हुई है। अब यह तीन दिसंबर को मतगणना से ही स्पष्ट हो सकेगा कि किसके खाते में वोट अधिक पड़े हैं।
0 कॉलोनी एरिया में मतदान कम
पिछले विधानसभा चुनाव में भी इन्हीं कॉलोनी एरिया में कम वोटिंग हुई थी। 65 फीसदी से कम वोटिंग वाले करीब 40 से अधिक बूथों में निर्वाचन विभाग ने महाअभियान चलाया था, ताकि वोटिंग को लेकर लोगों में रूचि बढ़े, लेकिन स्थिति ये रही कि इस बार भी सीएसईबी, बालको, एनटीपीसी और एसईसीएल के कॉलोनी में वोटिंग फीसदी कम रहा। हालांकि इसके पीछे एक यह भी वजह सामने आ रही है कि बहुत से कर्मचारी परिवार रिटायर या फिर ट्रांसफर के बाद कॉलोनी छोड़ चुके हैं। उन परिवार मतदाता सूची से नहीं हट सका था। स्वीप कार्यक्रम के तहत ग्रामीण इलाकों में भी मतदान का प्रतिशत आयोग नहीं बढ़ा सका। सभी सीटों पर पिछले विधानसभा चुनाव से कम वोट गिरे हैं।