बेशकीमती शासकीय जमीन पर चल रहा बेजा कब्जा का खेल
0 रेलवे, सिंचाई, नजूल, वन, एसईसीएल, सीएसईबी, एनटीपीसी की जमीन अतिक्रमण की जद में
कोरबा। औद्योगिक नगरी कोरबा की जमीन बेशकीमती है। सरकारी बेशकीमती जमीनों पर अतिक्रमणकारियों की हमेशा से नजर रही है। पिछले कुछ समय से उनकी सक्रियता और बढ़ गई है। चुनाव से ठीक पहले शहर में पट्टे को लेकर कुछ लोगों ने सुनियोजित तरीके से शहर और शहर के बाहर बेशकीमती जमीन पर कब्जा करने का बड़ा खेल खेला। रेलवे, सिंचाई, नजूल, वन, एसईसीएल, सीएसईबी, एनटीपीसी की खाली पड़ी जमीनों में रातोंरात राखड़ डालकर ऊपर से मिट्टी से समतलीकरण कर अपने हिस्से का रकबा तय कर लिया गया है।
बीते कुछ महीनों में अतिक्रमण तेजी से हुए हैं। 600-600 वर्गफीट के एक-एक कमरे बना लिए गए और हर कमरे के साथ 20-20 डिसमिल जमीन में बाउंड्रीवाल कर लिया गया, ताकि कमरे का पट्टा मिलने के बाद शेष जमीन को आसानी से कब्जा किया जा सके। दरअसल कांग्रेस सरकार ने वादा किया था कि हर कब्जाधारी को पट्टा दिया जाएगा। चुनाव से पहले 15 हजार पट्टे देने का दावा भी किया गया। हालांकि पट्टे बंटने से पहले ही आचार संहिता लग गई थी। पट्टे के लिए जिस तरह अतिक्रमण का खेल चला उससे यह तो साफ है कि चुनाव से पहले बड़ी संख्या में जमीनों पर कब्जे हुए। शहर में भिलाईखुर्द में नहर किनारे की जमीन पर 600-600 वर्गफीट के कई कमरे पिछले दो-तीन महीने में तैयार हुए। हर कमरे के साथ 25 से 30 डिसमिल जमीन पर कब्जा करने के लिए कहीं बड़े तो कहीं छोटे बाउंड्रीवाल तक बना लिए गए। भिलाईखुर्द के जिस जगह पर अतिक्रमण किया गया हैं वहां सामने 15 फीट ऊंची दीवार के अलावा दो तरफ से फेंसिंग कर दी गई है। इसके बाद लोगों को अंदर में अलग-अलग हिस्से में कब्जा करने दिया गया है। दरअसल कुछ बड़े सफेदपोश लोग कोरबा-चांपा मार्ग के किनारे खाली जमीन पर कब्जा के लिए बाउंड्रीवाल कर लिया। भीतर पट्टा मिलने के बाद बाकि की जमीन का सरकारी रेट पर राशि जमा कर पूरे हिस्से को कब्जा करने की रणनीति थी। अब वार्डवार सर्वे करने की जरूरत है कि कितने लोगों को पट्टा मिल चुका है। इसके बाद कितने नए अतिक्रमण हुए। भाजपा ने भी पट्टा वितरण की घोषणा की है, इसलिए लोग अभी भी धड़ल्ले से कब्जा करने के लिए सक्रिय हैं। जहां भी खाली जमीन दिख रही है वहां पर बाउंड्रीवाल बनाया जा रहा है। अतिक्रमणकारियों द्वारा दावा किया जा रहा है कि पिछले तीन-चार साल से रह रहे हैं, जबकि मौके पर न तो बिजली का कनेक्शन है न ही पानी का। ऐसे में सवाल उठता है कि बिना बिजली-पानी के इतने साल से लोग कैसे रह रहे हैं। आसपास रहने वाले लोगों का कहना है कि ज्यादातर लोग शाम होते ही दूसरी जगहों पर चले जाते हैं, सुबह फिर से लौट आते हैं।