November 25, 2024

राखड़ के शत प्रतिशत निपटान में विद्युत संयंत्र फिसड्डी

0 पर्यावरण सहित लोगों की सेहत पर पड़ रहा बुरा प्रभाव
कोरबा।
जिले के बिजली प्लांटों से निकलने वाले राखड़ का निपटारा एक बड़ी चुनौती है। इस समस्या से निपटने बिजली प्लांटों को राखड़ के शत प्रतिशत उपयोगिता सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। इसके बाद भी राख की उपयोगिता के मामले में जिले के कई बिजली प्लांट फेल हैं। इससे न सिर्फ पर्यावरण बल्कि लोगों की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
अधिकांश बिजली प्लांटों के ऐश डाइक भर चुके हैं और नए डैम के लिए जगह नहीं रही। इससे निपटने कोयला खदानों के बंद हिस्से में राख भरने की योजना पर काम शुरू हुआ है, लेकिन इसके बाद भी बिजली प्लांट राखड़ की शत-प्रतिशत उपयोगिता सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं। भविष्य में परेशानी और बढ़ेगी, जिससे निपटना मुश्किल होगा। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार बीते एक साल में जितना राखड़ जिले के बिजली प्लांटों से निकला उसका उपयोग नहीं हो पाया। जिले में 13 बिजली प्लांट हैं, लेकिन राख की उपयोगिता के मामले में प्रमुख बिजली प्लांट पीछे चल रहे हैं। इन प्लांटों से उत्सर्जित राखड़ की उपयोगिता 60 फीसदी से कम है।
बिजली प्लांटों के लिए बने सभी राखड़ डैम फुल हो चुके हैं। बिजली उत्पादन के लिए बांधों की ऊंचाई बढ़ाकर किसी तरह से काम चलाया जा रहा है। बिजली प्लांटों से निकलने वाले राख की एक तरफ जहां शत-प्रतिशत उपयोग नहीं हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ एसईसीएल की बंद खदानों में राखड़ डालने की शुरुआत की गई है। एनटीपीसी पहले से ही सुराकछार माइंस के बंद हिस्से में राख डाल रहा है। वहीं अब मानिकपुर में भी एनटीपीसी, एचटीपीपी, डीएसपीएम, कोरबा पूर्व प्लांट से राख लाकर डाला गया है। चिकित्सकों का कहना है कि राख के कारण लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। फेफड़ों में राख के कण जमने से इंफेक्शन के चलते गंभीर बीमारी का खतरा होता है। सांस लेने में दिक्कत के कारण हार्ट पर इसका असर पड़ता है। बच्चों के लिए भी यह बेहद खतरनाक है। राख व डस्ट के चलते खांसी व चमड़ी से संबंधित कई तरह की बीमारियां का खतरा भी बढ़ जाता है।

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