July 7, 2024

ये डाक्टर हैं या डकैत? शासन और प्रशासन की भूमिका भी हुई शर्मनाक

कोरबा 28 सितम्बर। हाल ही में कई वीडियो और मेडिकल बिल सोशल मीडिया में वायरल हुए। सभी का विषय वस्तु निजी अस्पतालों में बेहिसाब-बेइंतेहा उपचार व्यय थे। आये दिन मृत्यु के बाद पैसों के लिए मृतकों के शव को बंधक बनाने की खबरें सामने आती हैं। कोरोना संकट काल में चौदह दिन में दस से पन्द्रह लाख रूपये व्यय पर कोरोना का उपचार किये जाने की जानकारी भी सामने आती रही हैं। इन तमाम विवरणों ने आम आदमी को यह पूछने पर विवश कर दिया है कि छत्तीसगढ़ के ये डाक्टर वास्तव में डाक्टर हैं या डकैत?

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लेकर पॉवर हब कोरबा तक के डाक्टरों का यही हाल है। कुछ वर्ष पूर्व तक जिस डाक्टर को भगवान का दूसरा रूप माना जाता था, अब उनको लेकर आम आदमी की राय बदल गयी है। डाक्टरों को लुटेरा से लेकर यमराज तक कहा जाने लगा है। पिछले दिनों नगर के बंछोर नर्सिंगहोम में हुई मारपीट की घटना इसका उदाहरण है। इसका दूसरा बड़ा उदाहरण कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन के दौरान कोरबा के डाक्टरों द्वारा अपनी फीस डेढ़ से दो गुना तक बढ़ा देना है। यह ऐसा संकट का समय है, जब हर माह लाखों रूपयों की कमाई करने वाले चिकित्सकों को निशुल्क जांच और परामर्श (ओ पी डी) सुविधा देकर पीड़ित मानवता की सेवा का उदाहरण पेश करना था, तब उन्होंने अपनी अर्थ पिपासा का निर्लज्ज प्रदर्शन कर बता दिया कि वे सेवा के लिए नहीं हराम की मेवा के लिए इस पेशे में आये हैं।

कोरबा में तो धंधेबाज डाक्टरों ने कोरोना आपदा को सुनहरा अवसर बना लिया है। अब होटल किराये पर लेकर कोविड अस्पताल खोले जा रहे हैं। जिस सिंगल रूम का किराया एक हजार से भी कम है, उसका किराया छः हजार रूपये और डेढ़ हजार रूपये के डबल बेड रूम का किराया दस हजार रूपये वसूला जा रहा है। जिला प्रशासन की भूमिका भी विवेकहीनता का परिचायक कहा जा सकता है। प्रशासन को विभिन्न छात्रावास और विद्यालय भवनों को कोविड सेन्टर बनाकर न्यूनतम व्यय पर संचालन हेतु इच्छुक निजी चिकित्सकों को प्रदान करना चाहिये, लेकिन वह भी होटलों को कोविड सेन्टर बनवा रहा है। इस नई व्यवस्था में होटल का धंधा भी चमक रहा है, जो कोरोना काल में ठप्प था। निजी कोविड सेन्टर की इस लूट में किसकी किसकी कितनी हिस्सेदारी है, यह भी समय के साथ सामने आ आयेगा। खेद जनक यह है कि इस लूट और डकैती के करोबार में दो नंबरी लोगों पर तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। उन्होंने आपराधिक रास्ते से अर्थोपार्जन किया है और उन्हें कोई पीड़ा नहीं होती। लेकिन आम आदमी या तो अपनी उपचार कराते- कराते सड़क पर आ जायेगा या उसे अस्पताल से सीधा श्मशान जाना पड़ेगा। शासन और प्रशासन तंत्र का आचरण भी बेहद शर्मनाक महसूस होता है, जो इस डकैती पर नियंत्रण पाने में विफल साबित हो रहा है।

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