November 7, 2024

कोरबा में नौकरशाही का अजब कारनामा, दो किलोमीटर में बना दिया पांच स्टॉप डेम और वे भी बह गए पानी में धारों-धार…

कोरबा 8 अक्टूबर। जिले के वन क्षेत्र के ग्राम पंचायत केंदई में दो सरकारी विभाग ने मिलकर एक छोटे से बारहमासी नाला में पांच स्टॉप डैम बना दिए. जबकि इन पांचों स्टॉप डैम में से किसी एक में भी पानी नहीं ठहरता. प्रत्येक डैम की लागत 19 और 20 लाख रुपये के बीच है. ग्रामीणों को डैम का लाभ नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि डैम का निर्माण किसके लिए किया गया और इसका फायदा किसे पहुंचा?

आमतौर पर अंदरूनी क्षेत्रों तक लोगों की पहुंच कम है. अफसरों की नजर भी यहां तक नहीं जाती. ग्रामीणों का आरोप है कि इसी बात का फायदा उठाकर कई विभाग के अधिकारियों ने यहां भ्रष्टाचार किया है. स्टॉपडैम बरसात के पानी को बर्बाद होने से बचाने के लिए छोटी परियोजनाएं होती हैं, जिन्हें सिंचाई, कृषि और वन विभाग अपने-अपने मद से जरूरत के मुताबिक बनाते हैं. कई बार आपसी सामंजस्य के अभाव और सुनियोजित भ्रष्टाचार को अंजाम देने के लिए भी एक ही जगह पर कई विभाग स्टॉप डैम बना देते हैं. निर्माण के बाद पता चलता है कि एक ही जगह पर दोनों विभाग ने निर्माण करा दिया.

पोड़ी उपरोड़ा ब्लॉक के ग्राम पंचायत केंदई की बसाहट उदेना में भी यही हुआ है. यह पूरा क्षेत्र मिनीमाता बांगो परियोजना का डूबान क्षेत्र है. जहां से मनियारी और जात्रा नाला बहता है. यह दोनों ही नाले आगे जाकर केंदई जलप्रपात में समाहित होते हैं. यह दोनों बारहमासी बरसाती नाले हैं. जहां से ग्रामीणों को निस्तारी के लिए पर्याप्त पानी मिलता है. आसपास के खेतों की सिंचाई, वन्य प्राणियों को पेयजल के साथ ही बरसाती पानी के स्टोरेज के लिए इस नाले पर स्टॉप डैम का निर्माण किया गया है. हैरानी वाली बात यह है कि 2 किलो मीटर के फासले पर ही वन और कृषि विभाग ने जलग्रहण मिशन के तहत 5 स्टॉपडैम बना दिए हैं.

उदेना में सभी स्टाप डैम का निर्माण पिछले दो साल के दौरान ही किया गया है. लेकिन निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार का ही नतीजा है कि इनमें से कुछ डैम बह चुके हैं, तो कुछ स्टॉप डैम के ब्लॉक के बीच में गेट नहीं लगाया गया है. जिसके कारण किसी में पानी ही नहीं ठहरता. अब जिस उद्देश्य के लिए स्टॉपडैम का निर्माण किया गया है. वह उद्देश्य ही अधूरा है.

प्रत्येक डैम की लागत 19 से 20 लाख रुपय है। निर्माण कार्य 20 लाख रुपये से ज्यादा के हो तब टेंडर प्रक्रिया में जाना पड़ता है. लेकिन 20 लाख से कम के काम पंचायत स्तर पर ही कराए जाने का नियम है. इस तरह के निर्माण में जमकर भ्रष्टाचार होता है, चहेते ठेकेदारों से सांठगांठ कर उन्हें काम तो आवंटित कर दिया जाता है. लेकिन इनकी गुणवत्ता पर किसी का ध्यान नहीं जाता.

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