November 22, 2024

सरिता सिंह की कविताएं…..….

बारिश

गिरते बारिश की गति और धरती से
उसका ताल मिलाना
अभी रूको
ओ बारिश……
धरती के तपन का
जायजा लेना बाकी है
बाकी हैं मिट्टी का भीगना
पत्तो का हरियाना
बाकी हैं डाल में बैठ
कोयल का गुनगुना
और
मेरी अँजुरी भर
पानी का होना
…………………………………………
छोटी बूँदे बरसात की

छोटी-छोटी बूँदे बरसात की
भरोसा हैं
मिट्टी का
बीज का
भरोसा ही दिलायेगा उसे
पौधें से पेड बनने का
साहस
…..………………………………..
अभी जब

जब धान पक रहा होगा
बालियों के बीच
जब मचान में बैठा किसान
अगंडाई ले खेतो को निहारेगा
जब नदी के घाट पर
मटकी टकरायेगी पानी से
जब गहरी नींद से जागेगा
सोमारू और याद करेगा पेड पर
लटके गुलेल.को
जब धरती
उठ चुकी हैं पूरे असबाब के साथ
उठो तुम भी… हाँ उठो
अपने होने के संपूर्ण
एहसास के साथ ।
………………………………………………
वेग

पूरे वेग में बह रही हैं
इंद्रावती
आज गई हैं
तुम्हारे व्दार
हिसाब माँगने
नालो
के विषाक्त कचडों का
घाटो के अतिक्रमण का
पानी में हुये कर्मकांडों का
विकास नाम पर कटे पेड़ो का
सुनों……
क्यो मुँह छिपा, चढे बैठो
हो
अटारी में
………………………………………………….
कांधों के बीच

जिंदगी के कशमकश
के बीच
थोड़ी सी जगह बचाना होगा
मनुष्यता के लिए
ये वो जगह है
जहां से लंबी सड़कें
नाप रहे होते हैं
पैर, छालों के साथ
और कांधो के बीचों
बीच लटकी मुनिया
उसे फिर भी रुकने नहीं देती !
……………………………………..
सरिता सिंह
बंद टाकीज के सामने, जगदलपुर, बस्तर, छत्तीसगढ़
Spread the word