November 23, 2024

हमारी सोच सफलता में खुद की प्रशंसा और असफलता निष्फलता में दूसरों को या भगवान पर दोष: जैन मुनि श्री पंथक

बिलासपुर 24 जुलाई। हम सभी किसी भी कार्य में सफलता का श्रेय अपनी काबिलियत को देते हैं और निष्फलता का दोष अपने साथीदार, परिवार और भगवान को दोषी बना देते हैं । उक्त बातें टिकरापारा स्थित गुजराती जैन भवन में चातुर्मास ऑनलाइन प्रवचन में परम पूज्य गुरुदेव पंथक मुनि श्री ने अपने व्याख्यान में कहीं ।
उन्होंने आगे कहा बस यह एक सब की मानसिकता होती है आर्थर एस नाम का एक नवयुवक अमरीकन अश्वेत था जो कि 1982 में टेनिस वर्ल्ड चैंपियन था । जिनको 1984 में हार्ट सर्जरी करते समय तब उन्हें जो ब्लड दिया गया वह संक्रमित था । जिसके कारण उन्हें एड्स नामक जानलेवा बीमारी से ग्रसित हो गया। जब वह बात पूरे विश्व में फैल गई तो उनके प्रशंसकों द्वारा पत्र के माध्यम से अपनी भावना व्यक्त करते हुए सहानुभूति दिखाई कि ऐसी जानलेवा बीमारी के लिए भगवान ने केवल आपको ही क्यों चुना ।
आर्थर एस ने जवाब में कहते हैं कि 5 करोड़ लोगों ने टेनिस खेलना शुरू किया, उसमें से 50 लाख लोग कोचिंग द्वारा खेलना चालू किया । और 5 लाख लोगों ने प्रोफेशनल खेला, 50 हजार ग्रेड में आ गए । जिससे 5 हजार ने ग्रैंड स्लैम का पद हासिल किया और 50 लोग विम्बल्डन में खेले और चार लोग सेमीफाइनल में पहुंचे । दो खिलाड़ी ही फाइनल में खेले। और अंतिम वर्ल्ड कप टेनिस चैंपियन का कप जब मेरे हाथ में तो उस समय भगवान को मैंने नहीं पूछा कि मुझे ही क्यों…। फिर आज जानलेवा बीमारी मुझे लगी तो मैं भगवान से क्यों पूछूं कि मेरे को ही क्यों यदि ऐसी गलत प्रकार की मानसिकता को बदल लेंगे तो जीवन सुखी बनेगा और मानसिक रुप में मजबूत बनेंगे । ऐसी विपदा आने पर उसका सामना करने के लिए तैयार रहेंगे ।
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