एनटीपीसी के भू-विस्थापितों के आंदोलन को 2 माह पूरे, मांग नहीं हुई पूरी
कोरबा। एनटीपीसी का भू-विस्थापितों के प्रति रवैया पूरी तरह संवेदनहीन बना हुआ है। परियोजना के लिए दी गई लोगों की जमीन के बदले उनके सामने कुल मिलाकर परेशानियां खड़ी कर दी गई हैं। स्थिति यह है कि अपने अधिकार को प्राप्त करने के लिए विस्थापितों को दो-चार दिन नहीं बल्कि 2 महीने से सड़क की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। विस्थापित कह रहे हैं कि उन्हें खुदकुशी के लिए मजबूर किया जा रहा है।
एनटीपीसी कोरबा परियोजना से प्रभावित चारपारा के विस्थापित लोग तानसेन चौक में अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। 22 अप्रैल से शुरू हुआ इनका प्रदर्शन 62 दिन पूरे कर चुका है, लेकिन नतीजा शून्य है। विसंगतियों की ओर अधिकारियों का ध्यान आकर्षित किया है। विस्थापितों ने बताया कि 17 अगस्त 1981 में नौकरी संबंधित सूचना एनटीपीसी ने जारी की। 1981 से 1986 तक केवल 21 लोगों को नौकरी दी गई और पहले के 3 लोगों को मिलाकर 24 लोगों को ही लाभान्वित किया गया, जबकि 12 फरवरी 1987 को नौकरी और अन्य संबंधित सूचना जारी की गई। इसमें किसी को भी नौकरी का लाभ नहीं दिया गया। विस्थापितों ने भारत सरकार के सक्षम अधिकारियों और राजनेताओं को अवगत कराया है कि एनटीपीसी कोरबा ने अपनी क्षमता 2100 मेगावाट से बढ़ाकर वर्ष 2010 में 2600 मेगा वाट कर ली, लेकिन इतना सब कुछ होने और भारी-भरकम लाभ अर्जित करने के बाद भी क्षेत्र के विस्थापितों और जन सामान्य को किसी प्रकार का लाभ नहीं दिया गया। इस तरह से लोगों के नागरिक अधिकारों की लगातार अनदेखी की जा रही है। अपनी उचित मांगों को लेकर जिला मुख्यालय कोरबा में धरना प्रदर्शन कर रहे विस्थापित पूछते हैं कि क्या हम लोगों ने देश के लिए बिजली उत्पादन करने वाली संस्था एनटीपीसी को अपनी पुश्तैनी जमीन देकर कोई अपराध कर लिया, जो कि हमें इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। विस्थापितों का साफ तौर पर कहना है कि या मामला नागरिक अधिकारों से जुड़ा हुआ है इसलिए इस पर ध्यान दिया जाए।