November 8, 2024

बेक़ल उत्साही की गज़ल

प्रस्तुति-सतीशकुमार सिंह

[ एक ]

वो तो मुद्दत से जानता है मुझे
फिर भी हर इक से पूछता है मुझे

रात तनहाइयों के आंगन में
चांद तारों से झाँकता है मुझे

सुब्‌ह अख़बार की हथेली पर
सुर्ख़ियों मे बिखेरता है मुझे

होने देता नही उदास कभी
क्या कहूँ कितना चाहता है मुझे

मैं हूँ बेकल मगर सुकून से हूँ
उसका ग़म भी सँवारता है मुझे

[ दो ]

जब दिल ने तड़पना छोड़ दिया
जलवों ने मचलना छोड़ दिया

पोशाक बहारों ने बदली
फूलों ने महकना छोड़ दिया

पिंजरे की सम्त चले पंछी
शाख़ों ने लचकना छोड़ दिया

कुछ अबके हुई बरसात ऐसी
खेतों ने लहकना छोड़ दिया

जब से वो समन्दर पार गया
गोरी ने सँवरना छोड़ दिया

बाहर की कमाई ने बेकल
अब गाँव में बसना छोड़ दिया

Spread the word