नगर निगम कोरबा का मामला: कमिश्नर साहब !भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध पुलिस एवं ई ओ डब्ल्यू में एफआईआर कराइये
कोरबा 30 अक्टूबर। नगर पालिक निगम कोरबा के सहायक ग्रेड 3 प्रदीप सिकदर के निलंबन की कार्रवाई अधूरी है। इस मामले में क्लर्क सहित निविदा समिति के सदस्य भ्रष्ट और लापरवाह वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ पुलिस और ई ओ डब्ल्यू में एफ आई आर दर्ज होना चाहिए। साथ ही इस बात की भी जांच होना चाहिए कि इस धोखाधड़ी के पीछे कोई राजनीतिक दबाव या प्रभाव तो नहीं था।
राजेन्द्र पटेरिया कन्स्ट्रक्शन कम्पनी को आशय पत्र जारी करने के मामले में तथ्य छुपाने के आरोप में क्लर्क प्रदीप सिकदर को नगर निगम आयुक्त ने बुधवार को निलंबित किया है। लेकिन यह अधूरी कार्रवाई है। दरअसल इसके लिए पूरी प्रक्रिया को जानना होगा। कोई भी टेंडर होने के बाद टेंडर समिति उसकी समीक्षा करती है। इस समिति में वरिष्ठ अधिकारी और आयुक्त स्वयं होता हैं। राजेन्द्र पटेरिया के टेंडर के समय पूर्व आयुक्त राहुलदेव ने अभियंता ग्यास अहमद को अपना पावर डेलीगेट कर रखा था। समिति में चर्चित एकाउंट ऑफिसर पी आर मिश्र सहित अन्य अधिकारी भी थे। प्रक्रिया के अनुसार यह समिति सभी दस्तावेजों का बारीकी से निरीक्षण करती है और टेंडर को स्वीकृत करती है। फिर फ़ाइल अकाउंट सेक्शन से गुजरती है। इसके बाद आशय पत्र जारी होता है। इस बीच फ़ाइल दो बार वरिष्ठ अधिकारियों के हाथों से आगे बढ़ती है। कहना न होगा कि राजेन्द्र पटेरिया के मामले में भी यह प्रक्रिया पूरी की गई। सवाल ये है कि फिर क्लर्क की धोखाधड़ी पकड़ी क्यों नहीं गई? इसके दो कारण हो सकते हैं। या तो नगर निगम के अधिकारी निष्ठापूर्वक और पूरी ईमानदारी के साथ अपने कर्तब्यों का पालन नहीं करते और घोर लापरवाही पूर्वक काम करते हैं या फिर वे महाभ्रष्ट हैं और रिश्वतखोरी कमीशनखोरी के लिए कानून को ताख पर रखकर काम करते हैं। कुल मिलाकर दोनों ही स्थिति में निगमहित और जनहित की बलि चढ़ाते हैं।
इस सम्बंध में राज्य के वरिष्ठ हाईकोर्ट एडवोकेट अशोक तिवारी से चर्चा की गई तो उन्होंने ने कहा कि क्लर्क का निलंबन कोई सजा नहीं है बल्कि एक कार्यालयीन प्रक्रिया है। न्याय तो तब होगा जब FIR से जांच होकर दोषियों को दण्ड मिले। उन्होंने कहा कि निगम को सभी सम्बंधित लोगों के विरुद्ध पुलिस और आर्थिक अपराध शाखा (ई ओ डब्ल्यू )में एफ आई आर दर्ज कराना चाहिए।