निरस्त हो सकती है नगर निगम कोरबा की पहली सामान्य सभा और पारित प्रस्ताव
कोरबा 9 नवम्बर। नगर पालिक निगम, कोरबा की सामान्य सभा की बैठक व पारित हुए प्रस्तावों पर निरस्त होने की तलवार लटक रही है। 12 अक्टूबर 2020 को आयोजित सामान्य सभा में नेता प्रतिपक्ष हितानंद अग्रवाल व दो अन्य पार्षदों को उनके परिजनों के कोरोना संक्रमित होने का कारण बताकर शामिल नहीं होने दिया गया था। इस मामले को लेकर इंदिरा स्टेडियम परिसर स्थित राजीव गांधी ऑडिटोरियम सभाकक्ष के बाहर विपक्ष के पार्षदों ने खासा हंगामा भी किया और बजट व एजेंडे की प्रतियां भी जलाईं। इसके उपरांत सामान्य सभा में शामिल होने के अधिकार से वंचित करने व अन्य बिंदुओं पर नेता प्रतिपक्ष ने हाईकोर्ट बिलासपुर में रिट याचिका दायर की।
रिट याचिका में नेता प्रतिपक्ष हितानंद अग्रवाल ने पार्षद के तौर पर उसे प्रदत्त अधिकारों व उसके कर्तव्यों का हनन करने का आरोप लगाया व बैठक में शामिल होने से रोकने को अनुचित ठहराया। इस याचिका का हाईकोर्ट के न्यायाधीश पी सेम कोशी के द्वारा निराकरण (डिस्पोज) किया गया।
इस संबंध में हितानंद अग्रवाल के अधिवक्ता द्वय अशोक तिवारी एवं अंशुल तिवारी ने बताया कि रिट याचिका में निगम आयुक्त, सभापति, महापौर, कलेक्टर एवं राज्य शासन को प्रतिवादी बनाया गया। याचिकाकर्ता पार्षद और नेता प्रतिपक्ष हितानंद अग्रवाल को नगर पालिका अधिनियम 1956 के तहत प्रदत्त उसके अधिकारों और कर्तव्यों का हनन प्रतिवादियों के द्वारा किया गया। अधिनियम की धारा 25-ए उसे हर बैठक में उपस्थित रहने और एजेंडे पर पक्ष-विपक्ष में मतदान का अधिकार देता है, जिससे उसे वंचित किया गया। धारा 50 उसे बहुमत द्वारा प्रश्नों का विनिश्चय करने का अधिकार देता है, जिसका भी हनन हुआ। धारा 29 का भी पालन सामान्य सभा की बैठक में नहीं किया गया, जिसमें बैठक की सूचना पार्षद को देते समय साथ में एजेंडे की प्रति भी दिया जाना था किंतु एजेंडे की प्रति नहीं दी गई। यह भी कहा गया कि यदि याचिकाकर्ता के घर में एक सदस्य कोरोना पॉजीटिव था तो याचिकाकर्ता के लिए बैठक में पृथक से व्यवस्था की जाती या सामान्य सभा निरस्त कर वैकल्पिक व्यवस्था की जानी थी किंतु ऐसा नहीं किया गया। इस तरह याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वय ने अपनी बात प्रमुखता से रखी, वहीं प्रतिवादियों के अधिवक्ता ने सफाई दी कि सामान्य सभा की बैठक में शामिल होने से इनको नहीं रोका गया था।
अधिवक्ता अशोक तिवारी ने बताया कि वर्चुअल सुनवाई में न्यायाधीश ने अधिकारों के हनन पर महापौर, सभापति एवं निगम आयुक्त को कड़ी फटकार लगाई। न्यायाधीश ने राज्य शासन को याचिकाकर्ता का पक्ष सुनने एवं उसके अधिकारों का हुए हनन को ध्यान में रखते हुए उसकी उपस्थिति तय कराने के निर्देश दिए हैं। यह भी कहा है कि धारा 421 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर शासन स्तर पर तय करें कि याचिकाकर्ता को उपस्थिति से रोकने और उसके अधिकारों व कर्तव्यों का हनन हुआ है, गलत हुआ है तो सामान्य सभा की बैठक व पारित सभी प्रस्तावों को निरस्त करें।