December 23, 2024

प्रणब मुखर्जी की अंतिम किताब: सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह पर निशाना, कहा रास्ता भटक गई कांग्रेस

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, भले ही अब दुनिया को अलविदा कह चुके हैं, लेकिन उनकी आने वाली किताब कांग्रेस के लिए और परेशानी बढ़ाने वाली है.

अपने संस्मरण में दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति ने किए कई और अहम खुलासे. मुखर्जी ने निधन से पहले लिखी थी ‘The Presidential Years’ किताब.

नई दिल्ली. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब ‘द प्रेसिडेंशियल इयर्स’ में कांग्रेस के पतन को लेकर कई खुलासे किये हैं. अगले साल बाजार में आने वाली इस किताब में 2014 में कांग्रेस को मिली हार के कारणों का भी विश्लेषण किया गया है. दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति की किताब में कहा गया है कि हार के लिए काफी हद तक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी जिम्मेदार थे. ऐसे वक्त में जब कांग्रेस नेतृत्व संकट से गुजर रही है, इस किताब में की गईं टिप्पणियों से विवाद खड़ा होने की आशंका है.

राष्ट्रपति भवन तक के सफर का भी जिक्र

प्रणब मुखर्जी अपने निधन से पहले संस्मरण ‘द प्रेसिडेंशियल इयर्स’ (The Presidential Years) लिख चुके थे. रूपा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह किताब जनवरी, 2021 से पाठकों के लिए उपलब्ध होगी. मुखर्जी का कोरोना संक्रमण के बाद हुईं स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के कारण इसी साल अगस्त में 84 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था. किताब में पश्चिम बंगाल के एक गांव से देश के राष्ट्रपति भवन तक के उनके सफर के बारे में बताया गया है. साथ ही कांग्रेस के पतन और पार्टी में उपजे मतभेदों पर भी प्रकाश डाला गया है.

गठबंधन पर था मनमोहन सिंह का ध्यान

पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी किताब में आगे लिखा है, ‘मेरा मानना है कि शासन करने का नैतिक अधिकार प्रधानमंत्री के साथ निहित है. राष्ट्र की समग्र स्थिति पीएम और उनके प्रशासन के कामकाज को प्रतिबिंबित करती है. जबकि मनमोहन सिंह को गठबंधन को बचाने की सलाह दी गई थी, वे गठबंधन को सहेजने के बारे में सोचते थे और इसका असर सरकार पर भी दिखता था. वहीं, नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में अधिनायकवादी शैली को अपनाए हुए प्रतीत हुए जो सरकार, विधायिका और न्यायपालिका के बीच तल्ख रिश्तों के जरिए दिखाई दी’.

‘यदि मैं प्रधानमंत्री होता’

अपनी किताब में मुखर्जी ने लिखा है, ‘पार्टी के कुछ सदस्यों का यह मानना था कि यदि 2004 में वह प्रधानमंत्री बनते तो 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना नहीं करना पड़ता. हालांकि इस राय से मैं इत्तेफाक नहीं रखता. मैं यह मानता हूं कि मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद पार्टी नेतृत्व ने राजनीतिक दिशा खो दी. सोनिया गाँधी पार्टी के मामलों को संभालने में असमर्थ थीं, तो मनमोहन सिंह की सदन से लंबी अनुपस्थिति के चलते सांसदों के साथ किसी भी व्यक्तिगत संपर्क पर विराम लग गया’.

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