November 22, 2024

बोधघाट परियोजना का जबरदस्त विरोध, आदिवासियों ने सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा, विरोध कर रहे आदिवासियों के विरुद्ध मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

जगदलपुर 26 जनवरी। छत्तीसगढ़ के बस्तर में इन दिनों दशकों पुरानी बोधघाट परियोजना को लेकर आदिवासियों का आक्रोश लगातार बढ़ते जा रहा है। बस्तर के सैकड़ों गांव में बोधघाट परियोजना के खिलाफ आदिवासी एकजुट हो रहे है। शहरों से लेकर गांव तक इस योजना के खिलाफ आदिवासियों ने सड़कों पर उतरना भी शुरू कर दिया है। कांग्रेस की आत्मा कही जाने वाली पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गाँधी ने अपने कार्यकाल में बोधघाट परियोजना का विरोध कर इसे बंद करवा दिया था।

छत्तीसगढ़ गठन के बाद 2001 में सत्ता में आई कांग्रेस ने भी तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के नेतृत्व में दिल्ली को दो टूक कह दिया था कि इस परियोजना से आदिवासियों को लाभ कम और नुकसान ज्यादा होगा। लिहाजा वे किसी भी हाल में बोधघाट परियोजना शुरू नहीं होने देंगे। जोगी के जीवित रहते बोधघाट परियोजना दम तोड़ चुकी थी। हालांकि बीजेपी ने अपने तीसरे कार्यकाल 2013-14 में इस योजना को दोबारा शुरू करने के लिए हाथ-पांव मारा। लेकिन आदिवासियों के विरोध के चलते योजना तो प्रगति पर नहीं आ पाई, लेकिन बस्तर से बीजेपी का सफाया हो गया।

पार्टी से जुड़े बीजेपी के कई आदिवासी नेताओं ने दावा किया था कि बोधघाट परियोजना का समर्थन करने से आदिवासियों ने उनकी राजनीति पर विराम लगा दिया है, वे चुनाव हार गए। नतीजतन बीजेपी के आदिवासी नेता इस योजना को लेकर चुप्पी साधे हुए है। लेकिन कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद एक बार फिर बोधघाट परियोजना की फाइल खोल दी गई है। इन दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खुद बोधघाट परियोजना की वकालत कर रहे है। इसका कारण खोजा जा रहा है। इलाके के कांग्रेस के आदिवासी नेता मुख्यमंत्री के इस कदम से हैरत में है। उन्हें तो उस वक्त आश्चर्य हुआ जब मुख्यमंत्री बघेल ने अरविन्द नेताम को निशाने पर ले लिया।

हालांकि बीजेपी नेताओं की तर्ज पर कांग्रेस के कई महत्वपूर्ण आदिवासी नेता इस परियोजना के विरोध में है। इनमे बड़ा नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान में कांग्रेस की समन्वय समिति के सदस्य अरविंद नेताम का है। बस्तर के राजनीति और आदिवासियों के बीच अरविदं नेताम की पैठ आज भी बेजोड़ मानी जाती है। बोधघाट परियोजना के खिलाफ आवाज उठा रहे अरविन्द नेताम को अब राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का सामना करना पड़ रहा है।दरअसल मुख्यमंत्री बघेल के नेताम के खिलाफ मोर्चा खोल देने से बस्तर की राजनीति गरमा गई है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता अरविंद नेताम को आड़े हाथों लिया है। बोधघाट परियोजना के विरोध से बिफरे मुख्यमंत्री बघेल का नेताम पर निजी हमला चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल बघेल ने उन पर निशाना साधते हुए कहा कि वे अपनी पूरी जिंदगी जी चुके हैं और पूरा लाभ ले चुके हैं। आज उनके पास पेट्रोल पंप है, खेत है और उनके परिवार में सभी के पास सरकारी नौकरी है।

सीएम ने कहा कि मैंने उनसे पहले ही पूछा था कि बोधघाट परियोजना का विरोध क्यों कर रहे हैं, नेताम ने कहा कि यह हाइड्रो प्रोजेक्ट है, जिस पर मुख्यमंत्री ने साफ किया कि यह केवल सिंचाई के लिए बन रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि वह चाहते हैं कि बस्तर का प्रत्येक आदिवासी अरविंद नेताम, सांसद दीपक बैज और विधायक राजमन बेंजाम जैसे आर्थिक रूप से मजबूत बने. इसके लिए उनके खेतों तक पानी पहुंचना जरूरी है. यदि इसके अलावा अरविंद नेताम के पास कोई और रास्ता है तो बताएं ?

उधर पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम और सर्व आदिवासी समाज बस्तर ने प्रस्तावित बोधघाट सिंचाई परियोजना का जमीनी स्तर पर विरोध शुरू कर दिया हैं। अरविंद नेताम की दलील है कि बस्तर के गांव इस परियोजना से उजड़ जाएंगे।उनका कहना है कि बस्तर का भला न हो ऐसी परियोजना की जरूरत ही क्या है | अरविंद नेताम ने सरकार से सवाल करते हुए कहा कि 40 साल पहले कांग्रेस की ही सरकार ने इस परियोजना को मंजूरी देने से मना कर दिया था | अब कांग्रेस की ही सरकार इसे मंजूरी दे रही है | नेताम ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार जमीनी स्तर के पहलुओं से अनजान है. क्योंकि जो बस्तर पहले था, आज भी उसकी भौगोलिक बनावट वैसी ही है | आदिवासियों की पैरवी करते हुए अरविंद नेताम ने कहा कि बस्तर का आदिवासी अपनी जमीन के लिए जान दे सकता है. वह अपनी जमीन छोड़कर नहीं जा सकता है. नेताम ने कहा कि ऐसा नहीं है कि बोधघाट से पहले और भी कई परियोजना पर विचारों की फाइल चली लेकिन कुछ समय के बाद उनका कोई भी नाम भी नहीं ले सका है |

ये है बोधघाट परियोजना :

ये परियोजना दंतेवाडा जिले के गीदम विकासखंडके बारसूर से लगभग आठ किलोमीटर दूर और जगदलपुर जिला मुख्यालय से लगभग 10 किमी की दूरी पर है. इसकी लागत 22 हजार 653 करोड़ के आसपास है. इसमें तीन लाख 66 हजार हेक्टेयर सिचाई और 300 सौ मेगावाट विद्युत उत्पादन किया जाना प्रस्तावित है. इस परियोजना से आंधप्रदेश – तेलंगाना को जबरदस्त फायदा होगा | जबकि डुबान वाले दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जिले में सिंचाई की आंशिक सुविधा मिलेगी |

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