November 21, 2024

कहाँ चली गई बोधघाट के सर्वेक्षण की फाइल?

बोधघाट सिंचाई परियोजना भले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए महत्वाकांक्षी परियोजना हो और वे अपने कार्यकाल में इस परियोजना को हर-हाल में मूर्त रूप देना चाहते हों , लेकिन लगता है सिंचाई विभाग के अफसर ऐसा चाहते नहीं हैं। कहा जा रहा है कि बोधघाट सिंचाई परियोजना के सर्वेक्षण से संबंधित फ़ाइल सिंचाई विभाग के दफ्तर में मिल नहीं रही है। मुख्यमंत्री की प्राथमिकता वाली परियोजना की फ़ाइल गुम होने का क्या मतलब निकाला जाए ? जलसंसाधन विभाग ने करीब छह महीने पहले “वेपकास लि” को लगभग 45 करोड़ रुपए में सर्वेक्षण का काम बिना टेंडर के दे दिया था। इस पर भी सवाल उठ रहा है। हालांकि वाटर और पावर कंसल्टेंसी वाली यह कंपनी सरकारी है, लेकिन कहा जा रहा है कि ओपन टेंडर होता तो राज्य सरकार के पास कई विकल्प होते। वैसे यह संस्था पहले भी राज्य में वाटर प्लानिंग को लेकर कंसल्टेंसी दे चुकी है। बोधघाट परियोजना के लिए जनवरी 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने भूमिपूजन किया था। 1986 में वन एवं पर्यावरण संबंधी क्लीयरेंस न मिलने से परियोजना का काम रोकना पड़ा था। भूपेश सरकार ने नए सिरे से परियोजना को शुरू करने का निर्णय लिया है। करीब 25 हजार करोड़ की लागत से इंद्रावती नदी पर बनने वाली इस परियोजना से दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जिले में 3 लाख 66 हजार हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा बढ़ने और 300 मेगावाट बिजली उत्पादन का अनुमान है, लेकिन इस परियोजना के खिलाफ आदिवासियों का एक समूह फिर खड़ा हो गया है।

फाल्के अवार्ड्स कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ की आईएएस

मुंबई में 20 फरवरी को आयोजित दादा साहब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवॉर्ड्स कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ की एक महिला आईएएस के गेस्ट बनने पर फिर सवाल उठने लगा है कि ऐसे फंक्शन में ब्यूरोक्रेट्स को जाना चाहिए या नहीं ? कुछ साल पहले रायपुर में कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम में एक सीनियर ब्यूरोक्रेट्स ने अभिनेता अमिताभ बच्चन के साथ स्टेज शेयर कर लिया था , तो काफी बवाल हुआ था। आमतौर पर ब्यूरोक्रेट्स सार्वजनिक कार्यक्रमों से बचते हैं । कहते हैं अवार्ड्स फंक्शन के लिए छत्तीसगढ़ का देश -विदेश में चेहरा दिखाने वाले एक सरकारी उपक्रम ने आर्थिक मदद भी की है, जिस उपक्रम की तरफ से सहायता की गई है, उसकी माली हालत कोई अच्छी नहीं है। आलम यह है कि वहां अस्थायी तौर से काम करने वाले कर्मचारियों को तीन महीने से वेतन नहीं मिल पा रहा है। कइयों का भुगतान पेंडिग है, फिर छत्तीसगढ़ पर भी तो 66 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज है।

बैलेंसिंग पावर वाला आईएफएस

छत्तीसगढ़ के वन विभाग में भाजपा राज में पदस्थ कई अधिकारी कांग्रेस राज में इधर से उधर हो गए, लेकिन 1991 बैच के आईएफएस अधिकारी डॉ. वी. श्रीनिवास राव भाजपा शासन में अगस्त 2018 में कैम्पा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी बनाये गए थे और कांग्रेस सरकार में भी उसी पद पर बने हैं। कैम्पा को वन विभाग में शहद का भंडार माना जाता है। कैम्पा मद में भरपूर पैसा आता है, इतना कि हर साल खर्च ही नहीं हो पाता। जानकारी के अनुसार अभी कैम्पा फंड में 400 करोड़ राशि पिछले दस साल में खर्च न हो पाने के कारण इक्कठी हो गई है, वहीँ 2021-22 के लिए वार्षिक कार्ययोजना के अंतर्गत एक हजार 534 करोड़ रूपए का प्रस्ताव तैयार किया गया है। चर्चा है जो काम किसी दूसरे मद से नहीं हो सकता, वह सभी कैम्पा से हो जाता है। इस कारण मंत्री-विधायक और दूसरे नेताओं की सीधी नजर कैम्पा पर होती है। शक़्कर के ढेर पर बैठकर संतुलन साधना भी कलाबाजी का खेल जैसा है,इस खेल में अब तक तो श्रीनिवास राव को कुशल माना जा रहा है। शायद यही वजह है कि उन्होंने कांग्रेस राज में सवा दो साल बिना बाधा के काट लिया है । वैसे कैम्पा फंड से लाकडाउन काल में नई गाड़ियां खरीद कर जिलों में भेजे जाने का मामला तूल पकड़ रहा है।

मंत्री पुत्र की वसूली से अफसर परेशान

कहते हैं राज्य के एक आदिवासी मंत्री के पुत्र की वसूली से अधिकारी बड़े परेशान हैं। कहा जा रहा है मंत्री ने अपने बेटे को हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के एक विंग का अध्यक्ष बनवा दिया है। पद मिलने के साथ मंत्री पुत्र ने अपने इलाके के साथ राजधानी में जगह-जगह पोस्टर चिपकवा दिए होर्डिंग्स और कियोस्क भी लगवाए। कुछ कार्यक्रम का आयोजन भी किया। इस सब के लिए पैसा तो लगता है। चर्चा है कि पिता के प्रभाव और नाम के सहारे मंत्री पुत्र धन संग्रह के लिए अफसरों के यहां धावा बोला। एक नहीं, कई बार के धावे से अफसर भी सिर खुजाने लगे हैं। सत्ता और पद है, अफसर मांग भी पूरी कर रहे हैं। मजबूरी में उनके नखरे झेलते और चोचले उठाते समय का इंतजार कर रहे हैं।

पुरन्देश्वरी का भय

कहते हैं न “भय बिन प्रीत न होय” , ऐसा कुछ आजकल भाजपा में देखने को मिल रहा है। दो साल तक विधानसभा में सदन के भीतर बिखरी-बिखरी दिखने वाली भाजपा इस बजट सत्र में आक्रामक, सक्रिय और कई मौकों पर सरकार को मुसीबत में डालने में कामयाब भी दिखी। चर्चा है कि भाजपा की प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव श्रीमती डी. पुरन्देश्वरी ने विधायक दल की बैठक में दो टूक कह दिया – “वी वांट रिजल्ट।” माना जा रहा है परिणाम न दिखने पर गाज का भय भाजपा विधायकों को सक्रिय और आक्रामक बना दिया है।

भाजयुमो में नहीं थम रहा बवाल

35 साल के ऊपर वालों को भारतीय जनता युवा मोर्चा में पदाधिकारी बनाए जाने पर भाजपा के भीतर बवाल मचा है। चर्चा है कि गड़बड़ी को लेकर प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव श्रीमती डी. पुरन्देश्वरी ने बैठक लेकर जिम्मेदार लोगों को फटकार लगाईं , फिर भी कहते हैं कि बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। अमित मैशरी और गौतम सोनकर को भाजयुमो का मंत्री बनाए जाने पर अंदर ही अंदर आग सुलग रहा है। कहा जाता है अमित 35 साल की सीमा को पार कर गया है , लेकिन एक पूर्व मंत्री की जिद से उन्हें पद मिल गया। मौका देखकर एक नेता ने गौतम को भी पद दिला दिया। कांकेर के एक पदाधिकारी को लेकर भी नाराजगी की बात कही जा रही है।

गोपाल वर्मा को आईएएस का तमगा

वाणिज्यिक कर विभाग के ज्वाइंट कमिश्नर गोपाल वर्मा का छत्तीसगढ़ कोटे से एलाइड सर्विसेस से आईएएस चुने जाने की कयास काफी पहले से लगाई जा रही थी। कहते हैं गोपाल वर्मा की फील्डिंग काफी मजबूत थी। वे राज्य के एक पावरफुल कांग्रेस नेता के रिश्तेदार हैं । भाजपा राज में भी नेता के रिश्तेदार एलाइड सर्विसेस से आईएएस बने हैं। पर राज्य के वाणिज्यिक कर विभाग से आईएएस बनने वाले गोपाल वर्मा छत्तीसगढ़ के पहले अफसर हैं। राज्य गठन के बाद पहले जनसंपर्क विभाग से अलोक अवस्थी को आईएएस अवार्ड हुआ। इसके बाद ट्राइबल से शारदा वर्मा और उद्योग विभाग से अनुराग पांडे आईएएस बने।

राज्यपाल का सरकार को ठेंगा

अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर का कुलपति आरएसएस की पृष्ठभूमि वाले अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी को बनाकर राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके ने राज्य सरकार को ठेंगा दिखा दिया। अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी की नियुक्ति पर कांग्रेस मौन रही, जबकि बलदेवभाई शर्मा को कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कुलपति बनाए जाने पर कांग्रेसियों ने बवाल खड़ा किया था। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री वाजपेयी जी के नाम पर स्थापित विश्वविद्यालय के कारण कांग्रेस ने मुंह बंद कर लिया या फिर तूफ़ान के पहले की शांति है।

(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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